सेण्टपीटर पहले मछुआरे थे। मछली पकड़ना और पेट भरना यही उनका धंधा था। एक दिन उनकी नाव में ईसा मसीह उस पार जाने के लिए बैठे। रास्ते में वार्तालाप होता रहा। इस वार्ता का इतना गंभीर प्रभाव हुआ कि मछलीमार उसी दिन संत बन गया और ईसा मसीह के साथ रहने लगा। उनकी सेवा-शैली और प्रवचन पद्धति उसने पूरी तरह हृदयंगम कर ली।
ईसा को फाँसी हो गई, पर सेण्टपीटर न निराश हुए न भयभीत । अपने अपने गुरु के पीछे छोड़े काम को आगे बढ़ाने का निश्चय किया और विरोधियों की परवाह किये बिना निर्भीकतापूर्वक प्रचार कार्य करने लगे। पुरानी रूढ़ि मान्यताओं को बदलने के लिए लोग मुश्किल से ही तैयार होते थे, फिर भी उनने अपना कार्य पूरे उत्साह के साथ जारी रखा।
सेण्टपीटर पर विरोधियों ने आक्रमण किये, जेल में डाला, उपहास किया और सताने के लिए जो कुछ कर सकते थे, किया, पर पीटर के प्रयासों में रत्ती भर अंतर न आया। उनकी प्रखर निष्ठ ने उन्हें ईसाई धर्म में ऊंचा स्थान दिलाया। वे अभी भी असाधारण श्रद्धा के साथ ईसाई समाज में स्मरण किये जाते हैं। समयानुकूल परिवर्तन सदा सराहनीय रहे हैं।
आचार्य महीधर का मत है कि मुहूर्तों में सुविधा एवं अवसर ही प्रधान कारण है। जैसे वर्षा ऋतु आवागमन में असुविधाजनक होती है, इसलिए उन दिनों विवाह नहीं होते। किंतु जिन देशों में वर्षा के दिन अन्य महीनों में होते हैं, उन दिनों वहाँ कोई अड़चन नहीं।
दिशाशूल, योगिनी, कलराज, चन्द्रमा आदि का विचार करके यात्रा करना या रोकना उपहासास्पद है, यह भी शकुन विचार की तरह अंधविश्वास है।
विवादों में वर के लिए सूर्य, कन्या के लिए बृहस्पति और दोनों के लिए चन्द्रमा देख कर मुहूर्त निकालना ऐसे ही अँधेरे में लट्ठ मारना है।
वर-कन्या का मंगली होना। इतने गुण मिलना न मिलना यह ऐसी बातें हैं, जिनके लिए वर कन्या का व्यक्तित्व देखा-परखा जाना चाहिये। न कि पंचांगों के सहारे किसी को दोषी, किसी को भाग्यहीन ठहराना। इस झंझट में कितने ही अच्छे विवाह-संबंधों से हाथ धोना पड़ता है और अनावश्यक विलंब करना पड़ता है। इन मान्यताओं को विशुद्ध भ्रम-जंजाल समझकर त्यागना ही बुद्धिसंगत है।
मूल आदि नक्षत्रों को अशुभ मानकर पिता, भाई आदि के लिये अनिष्टकर मानकर जन्मे बच्चे के प्रति घृणा भाव रखना सर्वथा अनुचित है।
ऋषि बालखिल्यो को उनके पिता ने इसी कारण पानी में बहा दिया था, पर बड़े होने पर वे सबके लिए मंगलमय और प्रतिभावान् निकले।