बिना तपे सिद्धि मिले तो कैसे ?

January 1994

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भर देने से वह कुछ ही देर में गीला होकर बिखर जाता है। पर यदि आंवे में पका लिया जाय तो मजबूत होकर मुद्दतों काम देता है। यह तपाने का चमत्कार है। धातुओं का शोधन भी इसी प्रकार होता है। वे जमीन में से मिट्टी मिली हुई स्थिति में ही निकलनी है। उस स्थिति में वे किसी काम में लाए जाने योग्य नहीं होतीं। उन्हें भट्ठी में डालकर पिघलाया जाता है जब शुद्ध धातु सामने आ पाती है। कचरा जल कर अलग हो जाता है। यदि इस प्रक्रिया से डरा या बचा जाय तो धातुओं का विशाल कार्य परिकर निकम्मा ही पड़ा रहेगा और उनसे कोई उपयोगी उपकरण बन न सकेगा।

कच्ची मिट्टी से बने मकान बरसात आने पर घुल या बह जाते हैं। पर यदि उन ईंटों को पका कर इमारत बनाई जाय तो वह मुद्दतों यथावत् खड़ी रहती है। व्यंजन, मिष्ठान चूल्हे की अग्नि पर चढ़ने के बाद ही बनते हैं। आयुर्वेदीय औषधियों में रस, भस्में, अग्नि संस्कार से ही बनते हैं। अर्क, अवलेह आदि का निर्माण भी अग्नि सान्निध्य से ही होता है।

सूर्य ग्रीष्म में तपता है तो समुद्र से बादल बनते हैं और घनघोर घटाएँ बन कर भूमि को मखमली हरीतिमा से भरते हैं। तपस्वी योग साधते हैं और पत तितिक्षा के आधार पर प्रसुप्त शक्ति केन्द्रों को जाग्रत करते हैं। गुरुकुलों में छात्रों को कठोर जीवन की संयम साधना कराई जाती है। इसी के बल-बूते वे प्रचंड पराक्रम करने में समर्थ नर रत्न बनते हैं।

तप की महिमा अपार है। कष्ट, सहिष्णुता का अभ्यास जब महान तो उसे तपस्या कहते हैं। यह भौतिक प्रयोजनों के लिए भी की जा सकती है और अध्यात्म प्रयोजनों के लिए भी। जो वृक्ष कठोर परिस्थितियों में उगते और बढ़ते हैं वे पर्वत शिखरों पर भी हरियाते हैं। आँधी तूफानों से टकराते हैं किंतु बगीचों की शोभा बढ़ाने वाले फूल तनिक सी सर्दी-गर्मी की प्रतिकूलता आते ही छुई-मुई की तरह कुम्हला जाते हैं। अमीरों की सुविधाएँ उन्हें निष्क्रिय दुर्व्यसनी बनाती हैं। पर जो खदानें खोदते हैं उन श्रमिकों की कलाइयाँ मजबूत और छातियाँ तनी रहती हैं। कठिनाइयों में पलने वाले बड़े पराक्रम करते देखे जाते हैं। पर जिनका पालन फूलों के पालने में हुआ है उन्हें जमीन पर पैर रखते ही चुभन होती है। कठिनाइयों का सामना कर सकने का तो उनमें दम ही नहीं होता। हर मौसम उनके प्रतिकूल पड़ता है। मौसमी बीमारियाँ एक प्रकार से उन्हें अपना स्थायी यजमान बना लेती है। श्रम से दूर रहने वाली महिलाओं को प्रसव के समय प्राणलेवा कष्ट सहना पड़ता है। कई बार तो वे इस प्रसंग में अपने प्राण तक गवाँ बैठती हैं। जब कि गाड़ियाँ लुहारों की लोहा पीटने वाली महिलाएँ इस प्रकार बच्चे प्रजनन करती हैं मानो कुछ असाधारण जैसा हुआ ही न हो। दो चार दिन की इस बड़े काम से छुट्टी तक नहीं लेतीं। तुलनात्मक अध्ययन करने पर पता चलता है कि निरोगता और दीर्घ जीवन की कुँजी श्रम शीलता के साथ जुड़ी है। वनवासी कोल, भील तीर से चीते को गिरा देते हैं जब कि उन्हें न तो पौष्टिक भोजन मिलता है और न सुविधा भरे साधनों को व उपलब्ध कर पाते हैं।

प्रगति पथ पर अग्रसर होने वाले प्रत्येक व्यक्ति को अपने-अपने ढंग का कठोर श्रम करना पड़ता है। पहलवान, विद्वान, वैज्ञानिक, नाविक, कलाकार अनायास ही अपने विषयों में प्रवीण नहीं हो जाते। उन्हें कृषक मजदूर की तरह व्यस्त रहना और कठोर काम करना पड़ता है।

प्रतिकूलताएँ अनायास ही नहीं हट जातीं उनसे कठोर संघर्ष करना पड़ता है। वैज्ञानिकों को मोर्चा जोड़ने में कठिनाई के साथ जूझना और प्रचंड साहस का परिचय देना पड़ता है। आत्म-शोधन के लिए अभ्यस्त अनुपयुक्त आदतों को उखाड़ फेंकने में निरत होना पड़ता है। यह प्रसंग धोबी के द्वारा कपड़े धोए जाने के सदृश्य है। मैला कपड़ा जब गरम भट्ठी में उबलता है और डंडे की पिटाई सहता है तभी उसे भकाभक चमकने का अवसर मिलता है। मात्र पानी निचोड़ देने पर सफाई कहाँ से आती है। बर्तनों पर पत्थरों पर घिसाई से ही चमक आती है। अनीति से जूझने वालों को अनेक प्रहार सहने पड़ते हैं जिनसे निहित स्वार्थों को चोट पहुँचती है। सुधारकों में से अनेकों को शहीद होना पड़ा है। देव, दानव युद्ध में प्रथम आक्रमण करने वाले दैत्य जीतते और देव हारते रहे हैं। क्षति देवताओं को ही अधिक उठानी पड़ती रही है। भले ही अंत में सत्य की विजय होने वाली उक्ति सार्थक हुई हो और देवत्व को जीतने का श्रेय मिला हो। आक्रमण से भयभीत होकर यदि देवताओं ने पीठ दिखाई होती तो फिर उनका कोई ठिकाना न रहता सदा सर्वदा के लिए पराजित होकर रहना पड़ता।

भ्रूण को उदर से बाहर निकलने के समय प्रचंड पुरुषार्थ करना पड़ता है। इस समय का सारा दृश्य खून खच्चर से भरा होता है। इसके बिना स्वच्छ हवा और उन्मुक्त आकाश के नीचे विकसित होने का ही सुयोग न मिलता भ्रूण की स्थिति में पड़ा-पड़ा ही सड़ जाता। मुर्गी के अंडों में बंद चूजे जब थोड़ी सामर्थ्य अर्जित करते हैं तो बाहर निकलने के लिए हलचल मचाना आरंभ करते हैं। ऊपर के कठोर कलेवर में इसी आधार पर दरार पड़ती है और चूजा निकल कर बाहर आता है। अन्य जीवधारियों की तरह अपने स्वतंत्र अस्तित्व का परिचय देता है। यह संघर्ष अध्यात्म की भाषा में तप कहा जाता है। तप का अर्थ है तपना। तपने पर हर वस्तु निखरती है। सोने को तपाए जाने पर ही उसके खरे-खोटे होने की परख होती है। चाकू को पत्थर की चरखी पर घिसते हैं तभी उसकी तेज धार निखरती है।

कीर्तिमान स्थापित करने वाले पर्वतारोही, घुड़सवार, जान की बाजी लगाते हुए कदम बढ़ाते हैं। प्रतियोगिता जीतने वाले खिलाड़ी भी अपने पौरुष का चरम परिचय देते हैं। विजय श्री का वरण कर सकना उन्हीं के लिए संभव हुआ है जिनने अपने साहस के स्तर पर वरिष्ठता का परिचय दिया है। डरते रहने वाले, कायरता अपनाने वाले, भयभीत लोग अपेक्षाकृत अधिक हानि उठाते हैं। आक्रमणकारी उनकी मनः स्थिति ताड़कर अधिक निश्चिंततापूर्वक अधिक गहरा आक्रमण करते हैं। तन कर खड़े हो जाने वाले रीछ-वानरों ने लंका के दुर्दांत, दैत्यों को परास्त करके रख दिया था।

यमराज ने एक बार मौत को एक क्षेत्र से पाँच हजार आदमी मारकर लाने के लिए भेजा। वह जब झोली भर कर लाई तो गिनने पर वे पंद्रह हजार निकले। जवाब तलब हुआ कि इतने अधिक क्यों? मौत ने सबूत समेत सिद्ध किया कि बीमारी से तो पाँच हजार ही मरे हैं। शेष तो डर के मारे बिना मौत ही मर गए और परलोक आने वाली भीड़ के साथ जुड़ गए। कहा जाता है कि साहसी जीवन में एक बार मरता है पर कायर तो भयभीत रहकर पग-पग पर पल-पल पर मरता रहता है।

हीरा एक प्रकार से कोयला ही है। खदान में जिसे अधिक तापमान सहना पड़ता है वही कोयला हीरा बन जाता है। सच्चाई और बहादुरी की यथार्थता जाँचने की एक ही कसौटी है कि प्रलोभन और दबाव के आगे झुका गया या नहीं। जो तनकर खड़ा हो जाता है उसकी हिम्मत देखकर मुसीबत भी डर कर वापस लौट जाती है।

योगी जन तपश्चर्या के बल पर ही ऋद्धि-सिद्धियों को वरण करते हैं। सप्तऋषि इतने ऊंचे पद पर इसी आधार पर पहुँचे थे। भगीरथ ने गंगा को भूमि पर लाने और पार्वती ने शिव से विवाह करने में सफलता पाई। देवताओं को तपस्वी दधीचि की हड्डियां माँग कर इन्द्र-वज्र बनाना पड़ा। तपस्वी देवताओं से बड़े होते हैं वरदान देने के लिए उन्हें ही स्वर्ग से धरती पर आना पड़ता है।

विशेष प्रयोजन के लिए विशिष्ट व्यक्ति विशेष प्रकार की तप साधना करते हैं पर सर्व साधारण के लिए उसका सरल उपाय एक ही है कि उच्च उद्देश्यों की पूर्ति के लिए संयम साधना एवं परमार्थ प्रयोजनों के लिए कष्ट सहने, पुरुषार्थ करने के लिए समग्र साहसिकता के साथ प्रयत्नशील रहें। अनीति के साथ संघर्ष में आपत्ति सहने के लिए भी। तभी कुछ उच्चस्तरीय उपलब्धि किसी को मिल सकती है। श्रेयार्थी बनने के लिए कुछ कीमत चुकानी पड़ती है एवं वह है ही तप-साधना के माध्यम से, अतः इस राजमार्ग पर चलकर ही सिद्धि-लब्धि का प्रमाद किया जाना चाहिए।


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