धर्म रक्षा का भार (Kahani)

January 1994

Read Scan Version
<<   |   <   | |   >   |   >>

समाज में सर्वोपरि पद पर होने के कारण उनके दायित्व भी बड़े-चढ़े हैं। जिन पर धर्म-संस्कृति की रक्षा का भार है, उन्हें तो और भी सतर्क होना चाहिए।

बोधिसत्व एक दिन सुन्दर कमल के तालाब के पास बैठे वायु सेवन कर रहे थे। नव-विकसित पंकजों की मनोहारी छटा ने उन्हें अत्यधिक आकर्षित किया, तो वे चुप बैठे न रह सके, उठे और सरोवर में उतर कर निकट से जलज गंध का पान कर तृप्ति लाभ करने लगे।

तभी किसी देव कन्या का स्वर सुनाई पड़ा- तुम बिना कुछ दिए ही इन पुष्पों की सुरभि का सेवन कर रहे हो। यह चोर कर्म है। तुम गंध चोर हो। तथागत उसकी बात सुनकर स्तंभित रह गये। तभी एक व्यक्ति आया और सरोवर में घुसकर निर्दयतापूर्वक कमल-पुष्प तोड़ने लगा, बड़ी देर तक उस व्यक्ति ने पुष्पों को तोड़ा-मरोड़ा पर रोकना तो दूर, किसी ने उसे मना तक भी न किया।

तब बुद्धदेव ने उस कन्या से कहा- देवि! मैंने तो केवल गंधपान ही किया था। पुष्पों का अपहरण तो नहीं किया था, तोड़े भी नहीं, फिर भी तुमने मुझे चोर कहा और यह मनुष्य कितनी निर्दयता के साथ पुष्पों को तोड़कर तालाब को अस्वच्छ तथा असुन्दर बना रहा है, तुम इसे कुछ नहीं कहती ? तब वह देव कन्या गंभीर होकर कहने लगी- तपस्वी ! लोभ तथा तृष्णाओं में डूबे संसारी मनुष्य, धर्म तथा अधर्म में भेद नहीं कर पाते। अतः उन पर धर्म रक्षा का भार नहीं है। किंतु जो धर्मरत है, सद्-असद् का ज्ञाता है, नित्य अधिक-से-अधिक पवित्रता तथा महानता के लिए सतत् प्रयत्नशील हैं। उसका तनिक-सा पथ भ्रष्ट होना एक बड़ पातक बन जाता है।

बोधिसत्व ने मर्म को समझ लिया और उनका सिर पश्चाताप से झुक गया।


<<   |   <   | |   >   |   >>

Write Your Comments Here:


Page Titles






Warning: fopen(var/log/access.log): failed to open stream: Permission denied in /opt/yajan-php/lib/11.0/php/io/file.php on line 113

Warning: fwrite() expects parameter 1 to be resource, boolean given in /opt/yajan-php/lib/11.0/php/io/file.php on line 115

Warning: fclose() expects parameter 1 to be resource, boolean given in /opt/yajan-php/lib/11.0/php/io/file.php on line 118