भौतिक दुःखों की पीड़ा (Kahani)

April 1994

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संत फरीद के पास एक व्यक्ति आया और बोला !” सुना है, मंसूर को काट डाला गया तब भी मंसूर हंसता रहा। ईसा को सूली पर लटकाया जा रहा था तब भी वे कहते रहे कि लटकाने वाले अंजान हैं इन्हें क्षमा करना प्रभु। समझ में नहीं आता बात जंचती नहीं कि कोई मुझे पत्थर मारे, गर्दन काटे और मैं अनदेखा कर दूँ, क्षमा कर दूँ।” फरीद उठे और उस व्यक्ति को एक कच्चा नारियल दिया और कहा इसे तोड़कर लाओ और देखो ध्यान रखना इसकी अंदर की गरी साबुत निकलनी चाहिए। व्यक्ति ने नारियल पत्थर पर दे मारा। परिणाम तो स्पष्ट था ही कच्ची गिरी टूटनी थी ही। व्यक्ति फरीद के पास गया और बोला कि क्षमा करें मैं गिरी बचा नहीं पाया। क्योंकि वह ऊपरी खोल से जुड़ी हुई थी। सूखा था। कहा इसे तोड़कर लाओ। व्यक्ति ने देखा नारियल सूखा है। इसकी गिरी तो अलग बज रही है। उसने नारियल तोड़ा देखा गिरी साबुत निकली है। फरीद बोले-”देखा बस तुम्हारी ओर मंसूर की, तुम्हारी और ईसा की समझ में कच्ची और पक्की गरी का ही जितना अंतर है। क्योंकि जिनका शरीर और मन इकट्ठा ही बना रहता है उन्हें शरीर के दुःख, कष्ट-क्लेश महसूस होते हैं। ऐसे मनस्वी लोगों को भौतिक दुःखों की पीड़ा कभी सताती है ?”


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