जागीर का स्थान (Kahani)

April 1994

Read Scan Version
<<   |   <   | |   >   |   >>

महाराज बड़े सज्जन, उदार और दयालु हैं उनके दरबार में कोई खाली हाथ नहीं लौटता। बात फैलने लगी। उदारता का अनुचित लाभ उठाने के लिए चालकों की भीड़ भी जुटने लगी। चतुर मंत्री ने बात ताड़ ली और एक दिन घोषणा कर दी कि महाराज बीमार हैं, उन्हें पाँच व्यक्तियों का रक्त चाहिए तभी उनके प्राणों की रक्षा की जा सकती है। पूरा एक सप्ताह बीत गया किन्तु एक भी शुभचिंतक अथवा याचक आगे नहीं आया। राजा को बड़ी निराशा हुई। तभी चतुर मंत्री ने भावुक हृदय राजा को संसार की रीति नीति बताते हुए कहा महाराज आप व्यथित न हों। आप तो बहुत छोटे राज्य के राजा हैं। प्रजाजनों ने आपको ठग लिया तो कौन सी बड़ी बात है। किन्तु परमात्मा के दरबार में तो यह नित्य होता है उसके भक्तगण उसे दिन रात भ्रमित करते और ठगते रहते हैं किन्तु कष्ट सहने, त्याग करने और काम करने में कोई बिरला ही आगे आता है।

यूनान का जमींदार सुकरात के सामने अपनी संपत्ति व जागीर और वैभव का बखान बड़े गर्व से करने लगा। सुकरात पहले तो चुपचाप सुनते रहे फिर उन्होंने दुनिया का नक्शा मंगवाया और उसे फैलाकर जमींदार को दिखाया व पूछा इस विश्व के नक्शे में देखकर वह यह बतायें कि उसका देश यूनान कहाँ स्थित है। जब उसे यूनान मिल गया तो पूछा अब उस जागीर को खोजो। जमींदार ने कहा “ महाराज आप भी कैसी बात करते हैं। इतने बड़े विश्व में मेरी छोटी सी जागीर की क्या बिसात ? यह भला इसमें कहाँ दिख पायेगी। तब सुकरात ने कहा “ भाई इतने बड़े नक्शे में जिस जागीर के लिए एक बिन्दु भी न रक्खा जा सके उस जरा सी जमीन पर तुम इतना गर्व करते हो। फिर अखिल ब्रह्मांड में तुम्हारी उस जागीर का स्थान तो अत्यन्त क्षुद्र होगा फिर इतनी अल्प क्षुद्रता पर गर्व कैसा ?”


<<   |   <   | |   >   |   >>

Write Your Comments Here:


Page Titles






Warning: fopen(var/log/access.log): failed to open stream: Permission denied in /opt/yajan-php/lib/11.0/php/io/file.php on line 113

Warning: fwrite() expects parameter 1 to be resource, boolean given in /opt/yajan-php/lib/11.0/php/io/file.php on line 115

Warning: fclose() expects parameter 1 to be resource, boolean given in /opt/yajan-php/lib/11.0/php/io/file.php on line 118