परिवर्तन की प्रसव पीड़ा

April 1994

Read Scan Version
<<   |   <  | |   >   |   >>

बुझता दीपक पूरी लौ को उभार कर जलता है। मरते समय मनुष्य की लंबी साँसें चलती हैं। चींटी के मरते समय पंख उगते हैं। रात्रि के अंतिम पहर में अंधियारा अत्यधिक सघन होता है। हारा जुआरी बढ़-चढ़कर दाँव लगाता है। “ मरता क्या न करता” वाली उक्ति बहुत बार चरितार्थ होकर देखी जाती है। भ्रष्ट चिंतन और दुष्ट आचरण वाले असुर तत्व अपने सिंहासन के पदच्युत होते समय यदि कुछ असाधारण उपद्रव खड़े करें तो इसे आश्चर्यजनक नहीं माना जाना चाहिए।

महर्षि विश्वामित्र ने अपने समय में नई दुनिया बनाने का प्रचंड यज्ञ किया था। जिसमें हरिश्चंद्र जैसी कितनी ही उच्च आत्माओं ने भरपूर सहयोग भी किया। उनके प्रयास को असफल बनाने के लिए युग यज्ञ में विघ्न डालने वाले अनेकों उभरे और उछले। मारीच, सुबाहु और ताड़का इनमें अग्रणी थे। दशरथ पुत्रों ने आगे बढ़कर आसुरी आक्रमण से लोहा लिया और दिव्यशक्ति प्राप्त कर लंका का दमन तथा सतयुगी रामराज्य के संस्थापन का प्रबल प्रयत्न किया।

अनाचरण से कुपित प्रकृति का प्रकोप इन दिनों पुनः बरस सकते हैं। पिछले दिनों अपनाये गये अनाचरण का दंड अथवा समय का प्रायश्चित भी इसे कह सकते हैं।

परिवर्तन काल में प्रसव पीड़ा की तरह कष्ट भी सहने पड़ते हैं। यदि बीसवीं सदी की अंतिम अवधि में कुछ ऐसे ही अप्रिय प्रसंग दिख पड़ें तो इसे परीक्षा की घड़ी ही समझना चाहिए। पैनापन लाने के लिए शस्त्रों को पत्थर की सान पर घिसा ही जाता है। बलिदानों से सुषुप्त न्याय-निष्ठा में नया उभार भी आता है। बलिदानों की घटनाएं नये बलिदानी उत्पन्न करती हैं। आक्रोश से उभरने के लिए अनीति भरे आचरण की ऐसी पहल होती है जो उसे जड़मूल से उखाड़कर फेंक सके। महा चंडी का अवतरण ऐसी अनीति को निरस्त करने के लिए ही सम्पन्न हुआ था।

सूरज डूबते-डूबते संध्या काल को रक्तरंजित कर देता है। ऐसी ही विडंबनायें यदि युग परिवर्तन की बेला में उभरें तो उनके लिए पहले से ही तैयार रहा जाय। स्वयं को अवरोधों से निपटने हेतु सक्षम, आत्मबल, सम्पन्न बनाया जाय।


<<   |   <  | |   >   |   >>

Write Your Comments Here:


Page Titles






Warning: fopen(var/log/access.log): failed to open stream: Permission denied in /opt/yajan-php/lib/11.0/php/io/file.php on line 113

Warning: fwrite() expects parameter 1 to be resource, boolean given in /opt/yajan-php/lib/11.0/php/io/file.php on line 115

Warning: fclose() expects parameter 1 to be resource, boolean given in /opt/yajan-php/lib/11.0/php/io/file.php on line 118