जीवन स्थिर नहीं। उसके साथ जुड़ी सुविधाओं का कोई ठिकाना नहीं। हंसता बचपन बोझिल जवानी की ओर बढ़ता और कराह भरे बुढ़ापे में बदल जाता है। संपदा ने किसका साथ दिया है, मित्र-सहयोगी पानी के बबूले की तरह उछलते और समय के साथ आगे चले जाते हैं। स्थिर है तो सिर्फ धर्म और ईश्वर। जिनकी स्थिरता-सुदृढ़ता को संसार का कोई अंधड़ डगमगाने में समर्थ नहीं। मानव समय रहते इनकी शरण लो।