कर्म के लिए मनुष्य स्वतंत्र है। वह चाहे शुभ करे या अशुभ, इसकी उसे पूरी छूट है। शुभ का फल सदा श्रेष्ठ होता है और अशुभ का निकृष्ट। इस शुभाशुभ के भेद के लिए भगवान ने मनुष्य में विवेक-बुद्धि का समावेश किया, ताकि जो उदात्त हो उसे अपनाये और अनुदात्त का परित्याग करे। इतने पर भी न जाने क्यों वह निम्न और निकृष्ट कर्मों में निरत रहकर दैव-दुर्विपाक, दुर्भाग्य एवं दंड का भागी बनता है। संवेदनहीन बनकर वह नरपिशाच जैसा जीवन जीता, अनेकों को कष्ट देता व प्रतिफल भी पाता है।
एलागा बेल्स रोम का सम्राट था। यों आयु की दृष्टि से वह अभी किशोर था ; किंतु अतिथि सत्कार का उसका तरीका बड़ा ही विभत्स और क्रूर था, इतना क्रूर की कई बार तो नाम की घोषणा के साथ ही अतिथि की हृदय-गति रुक जाती और प्राणाँत हो जाता। एक बार उसके मंत्री बेल्फास ने मंत्री होने के नाते सलाह देने के अपने अधिकार का प्रयोग करते हुए राजा को राय दी-” इन क्रूर कर्मों में संलग्न रहने की तुलना में यदि आप प्रजाहित के कार्य में तत्पर रहे होते तो आज सर्वत्र आपकी यश गाथा गायी जाती और लोगों के हृदय में आप निवास करते”। इतना कहना था कि दरबार में बेल्फास के नाम की घोषणा कर दी गई ; बताया गया कि आज के शाही मेहमान राजमंत्री होंगे। अपना नाम सुनते ही मंत्री बेहोश होकर गिर पड़ा पर ; इतने से ही उस निर्दय सम्राट का मन पसीजने वाला न था। मेहमान के स्वागत करने की तैयारी का आदेश दिया गया। भोजन परोसने के बाद उसे मेहमान खाने में लाया गया। सामने तीक्ष्ण कीलों वाली एक लोहे की कुर्सी रखी थी। बैठने के साथ ही एक हृदय विदारक चीत्कार उभरी और फर्श रक्तरंजित हो गया। अब तक मंत्री बेहोश हो चुका था। उसे यों ही छोड़ दिया गया। बाद में उसी हालत में उसकी मृत्यु हो गयी।
यह बात नहीं कि हर अतिथि को स्वादिष्ट भोजन ही परोसे जाते। भोजन का स्तर व्यक्ति के स्तर पर निर्भर करता और प्रायः बदलता रहता। कभी खाने में लोहे की छोटी-छोटी कतरन, काँच के टुकड़े सम्मिलित होते, तो कभी थालियों को बिच्छू और साँप के टुकड़ों से सजाया जाता। जो कोई इन्हें खाने से इन्कार करता, उसकी सजा दर्दनाक मौत होती उन्हें जहरीले साँपों के घरों में बंद कर दिया जाता, जंगली जानवरों के आगे छोड़ दिया जाता। कई बार उनके हाथ-पैर काट लिए जाते और व्यक्ति को जंजीरों में कस कर जलाशय में कमर तक पानी खड. होने का आदेश मिलता। प्रहरी उसकी निगरानी करते। कई दिनों बाद जब भूख से निर्बल होकर पैर शिथिल हो जाते और शरीर का वजन सहन करने में अक्षम बनते, तो देह पानी में लुढ़क पड़ती और दंडित छटपटाते हुए सदा के लिए शाँत हो जाता।
नृशंस नरेश को जब यह तरीके पुराने पड़ते दिखे, और विशेष मनोरंजक न रह गये तो उसने मृत्युदंड का एक दूसरा उपाय निकाला। इसमें एक चिता जलायी जाती चिता की अग्नि जब अपनी प्रखरता पर होती, तो अपराधी को कुछ लोग उठाकर उसमें जिंदा फेंक देते। अभियुक्त जब बचने के लिए उससे बाहर आने का प्रयास करता, तो अग्नि को चारों ओर से घेरे संतरी अपनी बल्लम घोंप कर उसे वहीं गिरा देते। इस प्रकार जल्द ही उसकी मृत्यु हो जाती। राजा को इस क्रीड़ा में असीम आनंद मिलता।
यदा-कदा राजा स्वयं भी मेहमान बनता और दरबारियों के यहाँ भोजन में सम्मिलित होता। इसका अर्थ भी मौत था। देखा जाता कि सम्राट जिस अधिकारी के यहाँ भोजन करता, दूसरे दिन उसके परिवार के किसी सदस्य को वह भी अपने यहाँ बुलाता, उसकी आरती उतारता, स्वागत-सत्कार करता, ठीक उसी प्रकार जिस प्रकार स्वयं उसका होता था। फिर उसकी आंखें निकाल कर उसे भटकने के लिए छोड़ दिया जाता और यह मुनादी पिटवा दी जाती कि कोई उसे भोजन न दे। अंत में भूख-प्यास से उसके प्राण निकल जाते।
क्रिया की प्रतिक्रिया और ध्वनि की प्रतिध्वनि प्रसिद्ध है। गेंद को जिस वेग से दीवार पर मारा जाता है, उसी गति से वह वापस लौट आती है। जितने बल से किसी वस्तु पर प्रहार किया जाता है, वह भी हमें उसी शक्ति से उलटे आघात करती है। यह केवल भौतिक नियम नहीं है, वरन् कर्म फल के सूक्ष्म सिद्धान्त पर भी समान रूप से लागू होता है। कई बार तो वह इतना प्रबल होता है कि हाथोंहाथ उसका परिणाम इसी जीवन में प्रत्यक्ष हो जाता है। इतिहास साक्षी है, जिसने भी अति बरती उसका अंत भी अंततः वैसी ही क्रूरता से हुआ।
एलागा बेल्स के मामले में यही हुआ। जब उसने अपनी दादी को निमंत्रित किया, तो उसके अंगरक्षकों ने उसकी बड़ी निर्ममता पूर्वक बोटी-बोटी काटकर वैसी ही दुर्गति की, जैसी की उसके द्वारा अनेकों की हुई थी। उसके शरीर के टुकड़े-टुकड़े कर उसी के समक्ष गिद्धों को खिलाए जाते रहे व वह तब तक देखता रहा जब तक कि बेहोश होकर उसका जीवन समाप्त न हो गया। नर पिशाच होते हैं, इसका साक्षी था बेल्स, किंतु क्या न्यूनाधिक मात्रा में मानव मात्र में ऐसे वृत्ति वाले नहीं है ऐसा नहीं माना जा सकता। दहेज के लिए अपने हाथों, अपने सामने, अपने घर की बहू को नृशंसतापूर्वक जलाने वाले भी नर पिशाच हैं। कर्मों के फल से वे भी न बच सकेंगे।
एलागा बेल्स के मामले में यही हुआ। जब उसने अपनी दादी को निमंत्रित किया, तो उसके अंगरक्षकों ने उसकी बड़ी निर्ममता पूर्वक बोटी-बोटी काटकर वैसी ही दुर्गति की, जैसी की उसके द्वारा अनेकों की हुई थी। उसके शरीर के टुकड़े-टुकड़े कर उसी के समक्ष गिद्धों को खिलाए जाते रहे व वह तब तक देखता रहा जब तक कि बेहोश होकर उसका जीवन समाप्त न हो गया। नर पिशाच होते हैं, इसका साक्षी था बेल्स, किंतु क्या न्यूनाधिक मात्रा में मानव मात्र में ऐसे वृत्ति वाले नहीं है ऐसा नहीं माना जा सकता। दहेज के लिए अपने हाथों, अपने सामने, अपने घर की बहू को नृशंसतापूर्वक जलाने वाले भी नर पिशाच हैं। कर्मों के फल से वे भी न बच सकेंगे।