पंडा जी ने श्रोताओं को स्वर्ग के बारे में लंबी चौड़ी तारीफों के पुल बाँधते हुए समझाया, तो श्रोता सदेह जाने को तैयार हो गये। वे बोले “ हमें अभी भिजवा दो। यदि इतनी सुविधाएँ हैं। सब वस्तुएँ सुलभ हैं, कोई परेशानी ही नहीं है तो अभी भिजवा दीजिए” पुरोहित ने ऊंचे स्वर में कहा “ जो भी स्वर्ग जाने के इच्छुक हों वे खड़े हो जायँ” सभी खड़े हो गये। किंतु एक श्रोता बैठा ही रहा। पुरोहित ने पूछा “ तुम क्यों बैठे रह गये? “ श्रोता बोला। मुझे ऐसे स्वर्ग में नहीं जाना जहाँ खड़े-खड़े जाना पड़ता है। और जहाँ मुफ्त में सुविधाएँ ही सुविधाएँ मिलती हों, ऐसे स्वर्ग की मुझे कतई भी आकाँक्षा नहीं है। इससे तो अकर्मण्यता ही बढ़ेगी, जो मेरे भविष्य की ओर भी बिगाड़ेगी। सही भी तो है। व्यक्ति अपना स्वर्ग या नरक अपने कर्मों से स्वयं बनाता है।