स्मरण शक्ति की न्यूनता से चिन्तित न हों।

April 1984

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आयु के साथ स्मरण शक्ति में न्यूनता आने की शिकायत प्रायः सुनने को मिलती है। अनेकों व्यक्ति अपनी स्मरण शक्ति में वृद्धि करने के लिए प्रयत्नशील देखे जाते हैं। स्मरण शक्ति में वृद्धि लाने हेतु हजारों पुस्तकें लिखी गई हैं किन्तु उनका आधार मनोवैज्ञानिक न होने के कारण उनका अपेक्षित प्रभावी उपयोग न हो सका। इस पर 50 वर्षों से भी अधिक समय से शोध कार्य किया जा रहा है किन्तु फिर भी किसी सर्व सम्मत निर्णय पर वैज्ञानिक नहीं पहुँच पाये हैं।

यदि आप प्रतिदिन टेलीफोन के नम्बरों को याद करने के लिए दस मिनट का समय व्यय करते रहेंगे तो कुछ दिनों बाद आपको अनेकों टेलीफोनों के नम्बर याद हो जाएँगे। किन्तु इससे आपकी लोगों के चेहरे पहिचानने की, उनके नाम को याद रखने की, और आपके व्यस्तता के दिनों की सूची को याद रखने की शक्ति में वृद्धि नहीं होगी। कहा जाता है कि एक प्रकार के कार्य में दीक्षित होने पर दूसरे कार्य को करने क्रियाशीलता में वृद्धि होती है। किन्तु यह तभी सम्भव होता है जबकि उन कार्यों में समानता के लक्षण अधिक हों। उनमें जितनी विभिन्नता होगी उनके प्रशिक्षण की कार्य विधि भी भिन्न होगी। स्मरण शक्ति को बढ़ाने के लिए कभी-कभी शारीरिक एवं मानसिक व्यायाम करने की सलाह दी जाती है। यह उचित नहीं है क्योंकि कोई व्यायाम किसी के लिए हानिकारक भी हो सकता है। व्यायाम का चुनाव भी शारीरिक स्थिति के अनुसार ही किया जाता है।

फ्रायड का मत है कि जिन बातों को हम याद रखना नहीं चाहते उन्हें भुला देते हैं। यदि मनुष्य की समस्या कुछ भुगतान किये जाने वाले बिल, पत्रों और सामाजिक नियुक्ति से सम्बन्धित स्मरण शक्ति से है तो उसमें सुधार आने की संभावना क्षीण ही है। इस हेतु कुछ चिन्हों को अपनाना होगा जो कि मनुष्य को समय-समय पर सुझाने का काम करें। इसके लिए वह किसी अन्य पर विश्वास न करें कि कोई आपको उचित समय पर स्मरण करवाने में सहायता करेगा। संभव है कि उसका सहायक स्वयं ही उस बात को भुला दे। अतः व्यक्ति को अपना उत्तरदायित्व स्वयं ही संभाल लेना चाहिए। दूसरों पर अपना भार डालना उचित नहीं कहा जा सकता। यदि भूलने की आदत में कोई सुधार नहीं होता है, तो इसके लिए कुछ प्रयोगों का सहारा लिया जा सकता है। मनोवैज्ञानिक बताते हैं कि आप एक कागज पर पूर्ण विवरण अपने को ही सम्बोधित कर लिखिये और किसी विशेष स्थान पर पिन लगाकर उसे टाँग दीजिये। पश्चिम में कुछ लोग स्नान गृह के शीशे पर लिपस्टिक से कुछ चिन्ह बनाकर अपनी स्मृति को ताजा बना लेते हैं। कुछ लोग दीवार घड़ी पर एक बड़ा कागज लगाकर अपनी भूलने की आदत से त्राण पाते हैं। वास्तव में इसका अर्थ नहीं कि आपकी स्मरण शक्ति का लोप हो गया है। यह स्थिति तो उसके प्रेरक तत्वों के अभाव के कारण है।

जन्म दिन की तिथियाँ, पते, नाम आदि को याद रखने में असमर्थ होने पर भी व्यक्ति को अपनी स्मरण शक्ति के प्रति निराश नहीं होना चाहिए। क्योंकि यह एक सहज स्वाभाविक प्रक्रिया है जो किसी के भी साथ घट सकती है। आप किसी स्थान पर दुबारा जाने में भटकने के डर से जाना पसंद नहीं करते क्योंकि वहाँ आप केवल एक बार ही गये हैं और मार्ग आपको ठीक से मालूम नहीं। ऐसा इस कारण संभव हुआ है क्योंकि आपने मार्ग को ध्यान देकर नहीं देखा था। अब जब आप वहाँ दुबारा जाएँ तो उन मार्गों को और नामों को याद रखने का प्रयास करें। आपकी स्मरण शक्ति में इससे पर्याप्त सुधार होगा। जब आप कुछ नये व्यक्तियों से मिलें तो उन्हें गौर से देखें। और उनके नामों को मन ही मन दौहरा लें। यदि आपने उनका नाम ठीक से नहीं सुना है तो उनसे फिर से दौहराने को कहिये जिससे आप उसे न भूल सकें। जटिल सूचनाओं को आप देर तक अपनी स्मृति में नहीं बनाये रख सकते क्योंकि उनकी आवश्यकता बहुत ही कम रहती है और आप उसको एकाग्रता से याद रखने का प्रयास भी नहीं करते।

मानव अपनी स्मृतियों का संग्रह वर्णनात्मक और द्रव्यात्मक रूप से करता है। किन्तु कुछ लोग ही इन दोनों विधियों में निपुणता प्राप्त कर पाते हैं। अधिकाँश लोग इनमें से किसी एक में ही प्रवीण होते हैं। यदि आप स्थानों और चेहरों को देखकर पहिचान लेते हैं और नाम याद रखने में कठिनाई का अनुभव करते हैं तो आप बहिरंग दृष्टिकोण से अधिक योग्य हैं। आप अपनी इस योग्यता का उपयोग अपनी स्मरण शक्ति को सशक्त बनाने में कर सकते हैं। आप जिस व्यक्ति का नाम भूल जाते हैं उसका नाम लिखे चित्र का फोटोग्राफ पास रख लें। इससे आपको नाम याद रखने में पर्याप्त सहायता मिलेगी। कुछ नामों के आप कूट संकेत भी बना सकते हैं। यह भी एक प्रभावशाली विधि है और वर्णनात्मक विधि से स्मृति संग्रह करने वालों के द्वारा इसका प्रयोग वाँछनीय है।

आप किसी कविता को अथवा नाटक के एक अंश को याद करना चाहते हैं। यह तो संभव नहीं होता कि आप सारे को एक बार के प्रयत्न में ही याद कर लें विशेषकर जबकि वे अंश अधिक बड़े हों। किन्तु आप उसको एक बार तो पूरा पढ़ ही लीजिये और उसकी शब्द रचना को विशेष रूप से ध्यानपूर्वक देख लें। इससे आपकी उसे स्मरण रखने में सहायता मिलेगी। अभ्यास अथवा काम के पश्चात् विश्राम, इस प्रक्रिया को दौहराते रहिये। याद करने के पश्चात् यदि आप उसकी स्मृति बनाये रखना चाहते हैं तो सबसे बढ़िया उपाय है कि आप सो जाइये। नयी जानकारियों को याद रखने के लिए उन्हें दौहराना उचित होगा। यदि आप उनको नहीं दौहरायेंगे तो समय पर वे विस्मृत हो जायेंगे और उन्हें स्मरण करना कठिन होगा। हाँ आप उन्हें कभी पढ़ेंगे तो आपको याद आ जायेगा किन्तु आपकी स्मरण शक्ति के द्वारा उनको मस्तिष्क में से प्राप्त करना एक जटिल समस्या होगी।

आयु की वृद्धि के साथ स्मरण शक्ति में न्यूनता का होना एक मानवी प्रवृत्ति है। इसका एक कारण यह भी है कि जैसे-जैसे आयु बढ़ती जाती है, हमारे मस्तिष्क पर भी स्मरणीय संग्रहों का बोझ बढ़ता जाता है और उनमें भी भिन्न-भिन्न प्रकार की स्मृतियाँ रहती हैं जिनमें कई परस्पर विरोधी भाव की भी होती हैं। यदि कुछ मस्तिष्कीय विकृति और मस्तिष्क सम्बन्धी दुर्घटना वाले व्यक्तियों को छोड़ दें तो व्यक्तियों की स्मरणीय संग्रह क्षमता को बड़ी प्रभावशाली पायेंगे। किन्तु जब इस संग्रह की परतों पर और अधिक परतें मस्तिष्क में बढ़ती जाती हैं तो मस्तिष्क की योग्यता का ह्रास होना स्वाभाविक है। यदि उन सूचनाओं को, जो कि हमारे मस्तिष्क में संग्रहित है, बीच-बीच में प्रेरित करने का प्रयास किया जाय तो विस्मृति के अवसर क्षीण ही होंगे। कभी-कभी लोग भूल जाने का बहाना बनाकर अनुचित लाभ अथवा अपनी अयोग्यता छुपाने का प्रयास करते हैं। यह किसी भी स्थिति में उचित नहीं ठहराया जा सकता। लोग ऐसे व्यक्ति पर विश्वास खो देते हैं।

स्मरण शक्ति बढ़ा सकने के मानसोपचार सम्बन्धी कुछ अभ्यास बड़ी जल्दी सीखे जा सकते हैं। वस्तुतः यह एक मानसिक व्यायाम है, जिसे सतत् करते रहने से स्मरण शक्ति कभी भी क्षीण नहीं होती। यह एक भ्रान्ति भर है कि सठियाने के साथ-साथ स्मृति भी मंद पड़ जाती है। यदि आहार-विहार का व्यतिक्रम न हो, स्वाध्यायशीलता का अभ्यास जारी रखा जा सके तो कोई कारण नहीं कि अपने मस्तिष्कीय भण्डार में स्मरण शक्तियों की अकूत सूचना सामग्री एकत्र रखी जा सकती है। कोई औषधि नहीं, मानसिक व्यायाम ही इसमें सहायक हो सकते हैं।


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