मनुष्येत्तर प्राणियों में पाई जाने वाली अतीन्द्रिय क्षमताएँ

April 1984

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मनुष्य सहित हर प्राणी में उससे कहीं अधिक क्षमता विद्यमान है जितना कि वह अपने शरीर और मन के द्वारा कार्यान्वित कर पाता है। शक्तियों का स्वरूप ऐसा है जिसमें जब जिन्हें काम में लाया जाता है तब वे उतनी मात्रा में सक्षम रहती हैं और जब उनका प्रयोग-उपयोग नहीं होता तो वे फिर ऐसे ही निरर्थक पड़ी-पड़ी प्रसुप्त स्थिति में चली जाती हैं। बीज नाश तो नहीं होता किन्तु क्रियान्वित न किये जाने पर उनका शिथिल या विस्मृत हो जाना स्वाभाविक है। साथ ही यह भी सम्भव है कि यदि उन्हें प्रयत्नपूर्वक जगाया जाय तो वे सजीव सक्रिय ही नहीं प्रखर भी हो उठती है। अभ्यास इसी का नाम है। साधन भी इसी प्रयत्नशीलता को कहते हैं।

मनुष्यों की अतीन्द्रिय क्षमता का आभास समय-समय पर मिलता रहता है। जो कार्य प्रत्यक्ष इन्द्रियों के द्वारा नहीं हो सकता उसे अतीन्द्रिय क्षमता जागृत होने पर किया जा सकता है। दूर श्रवण, दूरदर्शन, विचार संचालन, भविष्य कथन, पूर्वाभास, जैसी अनेक अतीन्द्रिय क्षमता को मनुष्य में पाया गया है। उनका कारण ढूँढ़ने तथा जगाने का उपाय ढूँढ़ने में विज्ञजन संलग्न हैं। आशा की गई है कि निकट भविष्य में मनुष्य उसी प्रकार चेतनात्मक रहस्यों से भी लाभान्वित होने लगेगा। जिस प्रकार पदार्थ विज्ञान की सहायता से कुछ दिन पूर्व तक के अविज्ञात प्रकृति शक्तियों का भरपूर लाभ उठ रहा है।

अब प्रमाण मिल रहे हैं कि मनुष्य की तरह विभिन्न प्राणियों में भी अतीन्द्रिय क्षमता पाई जाती है और वे भावी सम्भावनाओं का बहुत कुछ पूर्वाभास प्राप्त कर लेते हैं। मनुष्य की तरह उन्हें भी प्रशिक्षित किया जाय तो वे इन सामर्थ्यों को विकसित कर सकते हैं और उस का लाभ मनुष्य को दे सकते हैं। इस प्रकार सिद्ध पुरुषों की श्रेणी में मनुष्येत्तर प्राणी भी सम्मिलित हो सकते हैं। इस सफलता का लाभ उठा सकने में मनुष्य समाज की भी हिस्सेदारी हो सकती है। जबकि अभी इस विशेषता का लाभ वे अपनी ही आत्मरक्षा के लिए उठा पाते हैं।

अन्यान्य पशु-पक्षियों में पाई जाने वाली अतीन्द्रिय क्षमता का आभास, प्रमाण समय-समय पर मिलता रहता है।

प्रकृतिगत दुर्घटनाओं तथा अशुभ सम्भावनाओं के सम्बन्ध में अब एक भी ऐसा माध्यम निकल कर नहीं आया है जो सही भविष्यवाणी कर सके। किन्तु पशु-पक्षियों द्वारा दी गई पूर्व सूचनाओं में से एक भी अवसर ऐसा नहीं गया जो मिथ्या सिद्ध हुआ है। चीनी विशेषज्ञों ने पिछले दिनों हुए 11 भूकम्पों के विवरण प्रस्तुत करते हुए कहा है कि ऐसी भविष्य वाणियों जहाँ भी- जिन दिनों भी दी गई वे सभी सही सिद्ध हुईं। इस सम्बन्ध में पांडा (विशेष किस्म की बिल्ली) याक (सुरागाय) जैसे जानवरों ने तो न केवल चिल्लाना आरम्भ किया था वरन् भूखे होने पर भी चारा लेने से इन्कार कर दिया था। यहाँ तक कि चींटियाँ भी अपनी हलचलें बन्द करके स्तब्ध हो गई थीं।

चीन के तांग शान क्षेत्र में सन् 1976 में भयंकर भूकम्प आया था। जिसमें लाखों व्यक्ति मारे गये। किन्तु साथ ही यह भी सच है कि मात्र पशु पक्षियों द्वारा दी गई चेतावनी के आधार पर प्रायः 10 लाख व्यक्तियों ने भाग में अपनी जाने बचा ली थी।

स्टेन फोर्ड अनुसंधान संस्थान के अध्यक्ष डॉ. विलियम काट्स का निष्कर्ष है कि भूकम्प तूफान जैसी घटनाओं से एक दो दिन पूर्व वायुमण्डल में विद्युतीय सूक्ष्म परिवर्तन होते हैं। उन्हें मशीनें तो नहीं पकड़ पाती पर अधिक संवेदनशील इन्द्रियों वाले प्राणी पकड़ लेते हैं। क्योंकि श्रेष्ठ से श्रेष्ठ मशीन की तुलना में इन प्राणियों को संवेदन शक्ति प्रायः एक हजार गुनी अधिक पाई गई है।

सन् 1963 में यूगोस्लाविया के स्कोटजी क्षेत्र में भयानक भूकम्प आया था। उस दुर्घटना में प्रायः वह सारा नगर ही नष्ट-भ्रष्ट हो गया। इसका पूर्व अनुमान किसी को भी नहीं था किन्तु देखा गया था कि दुर्घटना से कई घन्टे पूर्व उस क्षेत्र के जानवर बुरी तरह स्थान छोड़कर सुरक्षित दिशा में भग चले थे। जो रस्सियों से बँधे थे या चिड़ियाँ घर में कैद थे उन्होंने कुहराम मचा रखा था और बन्धन से छूटने का प्राणपण से प्रयत्न कर रहे थे। उनने बुरी तरह चिल्लाना आरम्भ करके सभी को हैरान कर दिया था। उस समय तो इस कुहराम का कारण न समझा जा सका किन्तु बाद में जाना गया कि इन प्राणियों को भूकम्प की सूचना उनकी अतीन्द्रिय क्षमता ने बता दी थी और वे आत्मरक्षा के लिए न केवल प्रयत्नशील थे वरन् दूसरों को भी चेतावनी दे रहे थे।

जर्मनी फ्री वर्ग इन्स्टीट्यूट के इन्स्टीट्यूट ऑफ पैरासाइकालोजी के अध्यक्ष हेन्स बैण्डर ने प्राणियों में पाई जाने वाली अतीन्द्रिय क्षमता अनेकों प्रमाणों का उल्लेख किया है। उसमें दूसरे महायुद्ध काल की उस घटना को भी उद्धत किया गया है जिसमें भयानक बमबारी से पूर्व एक बतख ने फ्री वर्ग पार्क में गलाफार्ड कुहराम मचाया था। उसे नागरिकों ने विपत्ति की पूर्व सूचना समझा और इतनी देर में बचाव का जो उपाय सम्भव था वह उनने कर लिया। बतख मरते दम तक शोर मचाती रही और अन्ततः उसी बमबारी की शिकार हो गई। बाद में वहाँ के नागरिकों ने उसे कृतज्ञतापूर्वक स्मरण रखा और एक दर्शनीय स्मारक बनाया।

शेप्यूलिन (फ्रांस) में जीन ड्यूजी नामक व्यक्ति का एक पालतू कुत्ता था- स्पेवियल। ड्यूजी पर डाकुओं ने आक्रमण किया और उसे मारकर लाश को पास की नदी में फेंक दिया। ढूँढ़ खोज होती रही। पर ड्यूजी का कहीं पता न चला। पर कुत्ते ने अपने मरे हुए मालिक की लाश को खोज निकाला। उसने छह दिन और छह रात गाँव के परिचित लोगों के पकड़े खींचकर नदी तट तक ले जाने का प्रयत्न किया। कई दिन तक तो इस विचित्र व्यवहार का कोई कारण न समझा जा सका पर जब लोग कुत्ते के आग्रह पर वहाँ तक गये तो उन्होंने नदी में डूबी हुई लाश को निकाल लिया।

अपराधियों की खोज में कुत्तों की भूमिका सर्वविदित है। इस प्रयोजन के लिए पुलिस विभाग के लिए उन्हें विशेष रूप से प्रशिक्षित किया जाता है। वे जासूसी के लिए मनुष्य की तुलना में अधिक सुयोग्य पाये गये हैं। यह कठिन कार्य वे अपनी घ्राण शक्ति की विशेषता के कारण ही कर पाते हैं। इस ढूँढ़ खोज में उनकी आँखों का- सूझबूझ का प्रयोग नहीं होता वरन् वे अपराधी के शरीर से निकलने वाली एक विशेष गन्ध की दिशा का अनुसरण करते हुए पीछा करते हैं और वहाँ जा पहुँचते हैं जहाँ अभीष्ट व्यक्ति रह रहा होता है। स्मरण रहे हर व्यक्ति की अपनी एक विशेष गन्ध होती है। जैसे किसी का चेहरा किसी दूसरे से नहीं मिलता उसी प्रकार यह गन्ध भी हर किसी की अलग-अलग होती है। कुत्ते को सर्वप्रथम उस गंध से परिचित कराया जाता है जिसका कि उसे पीछा करना है। यह कार्य अपराध हुए स्थान पर कुछ समय ठहर कर यह प्रशिक्षित कुत्ते भली प्रकार का लेते हैं और अपराधी की खोज पर टेड़े-मेड़े रास्तों को पार करते हुए निकल पड़ते हैं।

बुलन्द शहर (उ.प्र.) के निकटवर्ती गाँव मनरेजपुर में दीवार ढहने के कारण एक व्यक्ति उसके नीचे दब गया। उसके पालतू कुत्ते को यह जानकारी सबसे प्रथम प्राप्त हुई और उसने वहाँ कुहराम मचाना आरम्भ कर दिया। जब तक लोग पहुँचे और खोद कर लाश निकाली तब तक कुत्ता धाड़ मार कर रोता रहा और जब देखा कि उसका मालिक मर चुका तो उसने भी उस दृश्य को देखकर छटपटाते हुए प्राण त्याग कर दिये।

‘दि साइकिक पावर आफ एनीमल्स’ ग्रन्थ के लेखन विलशूल ने ऐसी अनेकों घटनाएँ उद्धृत की हैं जिनसे प्रतीत होता है कि पशुओं में बुद्धिमत्ता भले ही कम हो पर वे अतीन्द्रिय क्षमताओं की दृष्टि से मनुष्य की तुलना में कहीं आगे होते हैं। पुस्तक में 1929 की उस घटना का उल्लेख जिसमें सड़क पर सटपट दौड़ता हुआ घोड़ा यकायक ठिठका और बहुत धमकाने पर भी एक कदम आगे न बढ़ा। बाद में कुछ ही मिनट बाद उसी सड़क पर आकाश से बिजली गिरी और पेड़ पौधे तक जल गये। यदि घोड़ा बढ़ गया होता तो उसे सवार समेत दुर्घटना का शिकार होना पड़ता है।

ऐसी ही एक और घटना का उस पुस्तक में उल्लेख है। सिंगसिंग की जेल में एक कोठरी के सामने वहाँ रहने वाला कुत्ता बेतरह चिल्लाने लगा। बार्डरों ने आकर देखा तो पाया कि एक कैदी आत्म हत्या कर रहा था। कुत्ते ने सूचना देकर उस दुर्घटना को होते-होते बचा दिया।

शूल ने चूहों में भी यह क्षमता पाई है। उन्होंने मैन हटन की एक विशालकाय पुरानी कोठी का उल्लेख करते हुए लिखा है कि उसमें से चूहे झुण्ड बना कर तीन किश्तों में भागे और सैकड़ों की संख्या में अपना पुराना निवास छोड़कर एक समय पलायन कर गये। इसके उपरान्त उस कोठी में रहने वालों पर लगातार अप्रत्याशित विपत्तियाँ आईं और किसी न किसी कारण बड़ी संख्या में एक-एक करके मौत के मुँह में चले गये।

जलयानों में अब से कुछ समय पूर्व चूहे पाले और खुले रखे जाते थे। इसलिए कि तूफान आने की पूर्व सूचना वे दे सकें। जब कभी तूफान आने को होते हैं चूहों को उसकी पूर्ण जानकारी मिलती है और वे अन्यत्र भाग जाने का उपक्रम करते हैं। इस आधार पर जलपोतों के संचालक सावधान हो जाते थे और बचाने का प्रयत्न करते थे।

पशुओं की विशिष्ट क्षमताओं का अनुसंधान करने वाले अमेरिकी वैज्ञानिक जे.वी. राईन ने ऐसे अनेकों प्रमाण एकत्रित किये हैं जिनमें वे इन प्राणियों को अतीन्द्रिय क्षमता सम्पन्न मानते हैं। उनने अपने अनुसंधान प्रकाशन में कैलीफोर्निया के प्रिंसिपल स्टेसी वुड्स की बिल्ली का उल्लेख किया है। जो मालिक से बिछुड़ जाने पर उन्हें 24 महीने लगातार खोजती रही और एण्डरसन से ओकलाहोमा के बीच की 2400 मील दूरी को पार कर किसी प्रकार भटकते-भटकाते उन तक जा पहुँचने में सफल हुई थी। मालिक को स्वप्न में भी इसकी आशा नहीं थी कि द्रुतगामी बहनों द्वारा सफर करने पर भी बिल्ली उन्हें खोज निकालेगी और संकट भरे रास्ते पार करने का तथा सही स्थान ढूँढ़ निकालने में सफल होगी।

मेड फोर्ड में मकान की अदला बदली के सिलसिले में मार्टिन रास की लूपी बिल्ली कहीं गायब हो गई। बिल्ली कहीं इधर-उधर होगी कि मालिक अपना असवाव बाँध कर घर से बहुत दूर नये मकान में चला गया। बिल्ली ने मालिक को और मालिक ने बिल्ली को खोजा, पर कोई किसी का पता न पा सका।

बिल्ली ने आखिर मालिक को खोज ही निकाला। सैकड़ों मील दूर सर्वथा अपरिचित इलाके में वह वहीं जा पहुँची जहाँ मालिक ने नया मकान लिया था। उसने किस प्रकार पता पाया और इतना लम्बा अपरिचित रास्ता किस प्रकार पार किया, इस पर मार्टिन आश्चर्यचकित रह गया।

राइन ने ऐसी ही एक और घटना एक कबूतर की अंकित की है। वर्जीनिया के समर्सबिले नगर के एक पकिन्स नामक लड़के ने एक कबूतर पाला था। पहचान के लिए उसके पैर में एक छल्ला पहना दिया जिस पर ‘186’ लिखा था। कबूतर पलता रहा। एक बार लड़का दुर्घटनाग्रस्त हुआ और उसे 120 मील दूर अस्पताल में आपरेशन के लिए भर्ती कराना पड़ा। कई दिन बीतने पर जिस समय बाहर घोर बर्फ पड़ रही थी। एक कबूतर अस्पताल कर्मचारियों के प्रतिरोध की परवाह न करता हुआ लड़के के बिस्तर पर जा बैठा। ऐसा वहाँ पहले कभी नहीं हुआ था- सभी स्तब्ध थे। लड़के ने हाथ बढ़ाकर देखा तो यह उसका वही पालतू कबूतर था जिसके पैर में ‘186’ अंकों वाला छल्ला पहना रखा था।

वर्षा आने से पूर्व काली चींटियाँ अपने अण्डे लेकर ऊँचे या छाया वाले ऐसे स्थानों की ओर चल पड़ती हैं जहाँ सुरक्षा सम्भव हो सके। मेंढ़कों का लगातार टर्राना भी वर्षा के आगमन की पूर्व सूचना है।

विभिन्न प्राणियों में पाई जाने वाली अतीन्द्रिय क्षमता को देखते हुए लगता है कि वे भी अपने क्षेत्र में अपने किस्म के सिद्ध पुरुष हैं। यह विशेषताएँ उनके लिए तो उपयोगी हैं ही, यदि मनुष्य चाहे तो वह भी उनका इन विशेषताओं से अब की अपेक्षा भविष्य में कहीं अधिक लाभ उठा सकता है।


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