आत्म-विश्वास जगायें- सफलता पायें

April 1984

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स्वामी रामतीर्थ कहते थे- “धरती को हिलाने के लिए धरती से बाहर खड़े होने की आवश्यकता नहीं है, आवश्यकता है आत्मा की शक्ति को जानने-जगाने की।” इस उक्ति में आत्म शक्ति की उस महत्ता का प्रतिपादन किया गया है, जिसका दूसरा नाम आत्म-विश्वास है। जिसका साक्षात्कार करके कोई भी व्यक्ति अपने परिवार में तथा अपने आशातीत परिवर्तन कर सकता है। विवेकानन्द, बुद्ध, ईसा, सुकरात और गान्धी की प्रचण्ड आत्मशक्ति ने युग के प्रवाह को मोड़ दिया। अभी हाल के स्वतन्त्रता संग्राम में महात्मा गान्धी ने सशक्त ब्रिटिश साम्राज्य की नींव उखाड़ दी। उन्होंने अपने दृढ़ संकल्प शक्ति तथा आत्मविश्वास के सहारे अंग्रेजों को भारत छोड़ने पर विवश किया। स्वामी विवेकानन्द एवं रामतीर्थ जब संन्यासी का वेष धारण कर अमेरिका गये तो उपहास के पात्र बने किन्तु बाद में उन्होंने अपने आत्मविश्वास के सहारे विश्वास को जो कुछ दिया वह अद्वितीय है।

आत्मविश्वास के समक्ष विश्व की बड़ी से बड़ी शक्ति झुकती है और भविष्य में भी झुकती रहेगी। इसी आत्मविश्वास के सहारे आत्मा और परमात्मा के बीच तादात्म्य उत्पन्न होता है तथा अजस्र शक्ति के स्त्रोत का द्वार खुल जाता है। कठिन परिस्थितियों एवं हजारों विपत्तियों के बीच भी मनुष्य आत्मविश्वास के सहारे आगे बढ़ता जाता है तथा अपनी मंजिल पर पहुँच कर रहता है।

मानव जाति की उन्नति के इतिहास में महापुरुषों के आत्म-विश्वास का असीम योगदान रहा है। भौतिक दृष्टि से तात्कालिक असफलताओं को शिरोधार्य करते हुए भी उन्होंने विश्वास न छोड़ा और अभीष्ट सफलता प्राप्त की। आत्मविश्वास का जीवन में महत्वपूर्ण स्थान है। लौकिक एवं अलौकिक सफलताओं का आधार यही है। उसके सहारे ही निराशा में भी आशा की झलक दीखती है। दुःख में भी सुख का आभास होता है। इससे बड़े से बड़े कार्य सम्पन्न किए जा सकते हैं, किए गए हैं। चीन की दीवार पिरामिड, पनामा नहर एवं दुर्गम पर्वतों पर विनिर्मित सड़कें व भवन इसका प्रत्यक्ष प्रमाण देते हैं।

वस्तुतः समस्त शारीरिक और मानसिक शक्तियों का आधार आत्मविश्वास ही है। इसके अभाव में अन्य सारी शक्तियाँ सुप्तावस्था में पड़ी रहती हैं। जैसे ही आत्मविश्वास जागृत होता है अन्य शक्तियाँ भी उठ खड़ी होती हैं और आत्मविश्वास के सहारे असम्भव समझे जाने वाले कार्य भी आसानी से पूरे हो जाते हैं।

वैयक्तिक जीवन में भी आत्मविश्वास ही सम्पूर्ण सफलताओं का आधार है। विश्वास के अभाव में ही श्रेष्ठतम उपलब्धियों से लोग वंचित रह जाते हैं असफलताओं का कारण है- अपनी क्षमता को न पहचान पाना और अपने को अयोग्य समझना। जब तक अपने को अयोग्य, हीन, असमर्थ समझा जायेगा, तब तक सौभाग्य एवं सफलता का द्वार बन्द ही रहेगा।

व्यक्ति जब अपने अन्दर छिपी हुई शक्तियों के स्रोत को जान लेता है तो वह भी देव तुल्य बन जाता है। विश्वास के जागृत होने ही आत्मा में छुपी हुई शक्तियाँ प्रस्फुटित हो उठती हैं। हमारे अन्दर के श्रेष्ठ विचार महत्वपूर्ण कार्य के रूप में परिणत हो जाते हैं। इसके विपरीत अपने प्रति अविश्वास से तो शक्ति के स्रोत सूख जाते हैं और लोग भण्डार के होते हुए भी दीन तथा दरिद्र ही बने रहते हैं।

अपने विषय में जैसी मान्यता बनायी जाती है, इसके द्वारा भी वैसा ही व्यवहार किया जाता है। जो व्यक्ति अपने को मिट्टी समझता है, अवश्य कुचला जाता है। धूल पर सभी पाँव रखते हैं किन्तु अंगारों पर कोई नहीं रखता। जो व्यक्ति कठिनतम कार्यों को भी अपने करने योग्य समझते हैं, अपनी शक्ति पर विश्वास करते हैं, वे चारों ओर अपने अनुकूल परिस्थितियाँ उत्पन्न कर लेते हैं। जिस क्षण व्यक्ति दृढ़ता पूर्वक किसी कार्य को सम्पन्न करने का निश्चय कर लेता है तो समझना चाहिए आधा कार्य पहले ही पूर्ण हो गया। दुर्बल प्रकृति के व्यक्ति शेखचिल्ली के समान कोरी कल्पनाएँ मात्र किया करते हैं किन्तु मनस्वी व्यक्ति अपने संकल्पों को कार्य रूप में परिणत कर दिखाते हैं।

विराट् वृक्ष की शक्ति छोटे से बीज में छुपी रहती है। यही बीज खेत में पड़कर उपयोगी खाद पानी प्राप्त करके बड़े वृक्ष के रूप में प्रस्फुटित होता है उसी प्रकार मनुष्य के अन्दर भी समस्त सम्भावनाएँ एवं शक्तियाँ बीज रूप में छुपी हुई हैं जिनको विवेक के जल से अभिसिंचित कर तथा श्रेष्ठ विचारों की उर्वरा खाद देकर जागृत किया जा सकता है। यदि व्यक्ति अपने अन्दर की अमूल्य शक्ति एवं सामर्थ्य को जान लेने में सफल हो जाय तो वह सामान्य से असामान्य और असामान्य से महान हो सकता है।

मनुष्यों की संगठित शक्ति यदि श्रेष्ठ मार्ग पर चल पड़े तो विश्व का काया-कल्प ही पलट सकती है। शक्ति के उदित होते ही असम्भव समझे जाने वाले कार्य भी सम्भव हो जाते हैं जिनको पूर्ण हुए देखकर आश्चर्य का ठिकाना नहीं रहता।

मानव जीवन ईश्वर का दिया हुआ सर्वोपरि उपहार है। इसका महत्व एवं गरिमा तभी है जब व्यक्ति इन पंगु विचारों को अपने मन में स्थान न दे। उनसे शक्ति का प्रवाह बन्द हो जाता है। ईश्वरीय अनुदान एवं दी हुई शक्ति का महत्व जीवन के सदुपयोग में है। अपने को उठाना तथा दूसरों को भी ऊँचा उठाने में सहयोग करने में ही मानव जीवन की सार्थकता है।

जब तक हम किसी कार्य में अपनी समस्त शक्तियाँ लगा नहीं पाते, मन एकाग्र नहीं करते तब तक वह कार्य पूर्ण नहीं हो सकता। कार्य जितना कठिन है उसके लिए उतने ही दृढ़ विश्वास एवं योगी की तरह तन्मय होकर निरन्तर प्रयत्न की आवश्यकता होती है। ईश्वरीय सत्ता भी उन्हीं की सहायता करती है जो स्वयं प्रयत्नशील हैं।

आत्मविश्वास, सतत् परिश्रम एवं दृढ़ निश्चय के समक्ष कुछ भी असम्भव नहीं है। इन्हीं गुणों के प्रकाश में ऐतिहासिक कार्य संसार में सम्पन्न हुए हैं। विद्वानों महापुरुषों धर्म प्रवर्तकों, योद्धाओं, सृजेताओं, शोधकर्ताओं के ज्वलन्त उदाहरण इस बात के साक्षी हैं कि उन्होंने आत्मविश्वास के आधार पर क्या नहीं कर दिखाया?

छोटी-छोटी बैटरियों की शक्ति शीघ्र ही समाप्त हो जाती है किन्तु जिन बत्तियों का सम्बन्ध पावर हाउस से होता है वह निरन्तर जलती रहती हैं। आत्मविश्वास वह सम्पर्क माध्यम है जिसके सहारे अकूत शक्ति के भण्डार परमात्मा के साथ सम्बन्ध स्थापित किया जा सकता है। मनुष्य को चाहिए कि वह अपने विचारों को कार्य रूप में परिणति करे। स्वार्थ से दूर रहकर अपनी दृष्टि का विकास करें। सद्गुणों को धारण कर इसी जीवन में गौरवान्वित एवं सम्मानास्पद बना सकता है।

श्रेष्ठ मार्ग पर नियोजित व्यक्तियों की शक्तियाँ श्रेयस्कर परिणाम उपस्थित करती हैं, जिसे लोग भाग्य चमत्कार समझते हैं। वास्तव में वे व्यक्ति की दृढ़ निष्ठा एवं आत्मविश्वास का परिणाम ही होती हैं। मनुष्य अपने भाग्य का निर्माण स्वयं कर सकता है। यदि वह अपनी प्रसुप्त शक्तियों को प्रयत्न पूर्वक जगा सके। जिस दिन मनुष्य इस तथ्य को समझ लेगा, वह अनन्त शक्ति का भण्डार बन जायेगा। सुख एवं सफलता का मूल आधार एक ही है- उसका आत्मविश्वास।


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