गोताखोर (kahani)

April 1984

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समुद्री यात्रा से लौटे हुए एक यात्री ने एक गोताखोर से पूछा- “बन्धु! मैं तो हजार मील यात्रा कर आया पर मुझे तो कहीं, एक भी मोती न मिला, तुम तो एक दिन में ही ढेरों मोती ढूँढ़ लेते हो?”

गोताखोर ने डुबकी लगाने से पूर्व कहा- “भाई! मैं अपने जीवन को संकट में डालकर गहरे में उतरता भी तो हूँ, तुम्हारी तरह चलता ही नहीं रहता।”


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