विचार शक्ति का पेड़ पौधों पर प्रभाव

January 1983

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विचारों एवं कृत्यों से दृश्य के अतिरिक्त एक अदृश्य सूक्ष्म वातावरण भी तैयार होता है जो चिरकाल तक बना रहता है, अपने भले-बुरे प्रभावों से जुड़े परिकर को प्रभावित करता है। मानवी चिन्तन एवं क्रिया-कलाप तत्काल प्रतिक्रिया दिखाकर समाप्त नहीं हो जाते वरन् एक सूक्ष्म वातावरण का भी निर्माण करते हैं। जिसे थोड़े प्रयत्नों से अनुभव किया जा सकता है। स्थानों की महत्ता सर्वविदित है। वे अदृश्य किन्तु जीवन्त व्यक्तित्व होते हैं। देवालय, तीर्थ मदिरालय, बूचड़खाना, अपने-अपने स्तर के वातावरण बनाते, प्रभाव छोड़ते तथा प्रेरणा देते हैं। नदी के तीव्र प्रवाह में खर-पतवार ही नहीं विशालकाय वृक्ष तक बहते देखे जाते हैं। भीड़ के प्रवाह के साथ जन-मानस मुड़ता बहता देखा जाता है। सूक्ष्म वातावरण का भला-बुरा प्रभाव भी लगभग इसी स्तर का होता है।

विचारों की प्रतिक्रिया जीवंत प्राणियों पर ही नहीं वृक्ष वनस्पतियों पर भी पड़ती देखी गयी है। भारतीय वैज्ञानिक जगदीश चन्द्र बोस से लेकर विश्व के मूर्धन्य वनस्पति शास्त्रियों ने इस तथ्य की पुष्टि की है- वृक्ष वनस्पतियां भी विचारों एवं सम्वेदनाओं को उसी तरह ग्रहण करते हैं, जिस प्रकार कि प्राणी समुदाय न्यूयार्क के प्रसिद्ध वनस्पति शास्त्री वेक्स्टर के पौधों पर किये गये अनुभूतिजन्य प्रयोगों से अमरीकी प्रोफेसर मार्केल वोगल विशेष प्रभावित हुए। एक वनस्पति शास्त्र के प्राध्यापक होने के कारण उन्होंने पेड़-पौधों पर प्रयोग करने में गहरी रुचि ली। अपनी एक शोध सहायिका को उन्होंने सम्बद्ध विषय की रूपरेखा समझाकर आवश्यक निर्देश दे दिया।

विवियन विले उद्यान के पेड़ से दो हरी पत्तियाँ तोड़ लायीं। एक पत्ती उन्होंने अपने ड्राइंग रूम में, दूसरी को अपने सोने के कमरे में बिस्तर के निकट एक मेज पर रख दिया। पलंग के पास रखी पत्ती को वह नित्य स्नेह भरी निगाहों से देखती, अपनत्व उड़ेलती जैसी कोई व्यक्ति अपने अत्यन्त स्नेह पात्र के प्रति बखेरता है। मन में वह पत्ती को हरा भरा बने रहने की कामना करती। दूसरे कमरे में रखी पत्ती को उन्होंने जान-बूझकर उपेक्षित रखा। एक माह बाद उन्होंने अपने मित्र बोगल को एक विशिष्ट प्रकार के फोटो कैमरे के साथ आने को आमन्त्रित किया। बोगल ने दोनों पत्तियों का अलग-अलग फोटो लिया। दोनों ने फोटो का अध्ययन किया। यह देखकर उन्हें भारी आश्चर्य हुआ कि जो पत्ती ड्राइंग रूम में उपेक्षित रखी थी उसका चित्र मुरझाया हुआ आया, किन्तु दूसरी पत्ती का चित्र हरा-भरा तथा ताजा लग रहा था।

इस निष्कर्ष को और पुष्ट करने के लिए उन्होंने प्रयोग क्रम को आगे बढ़ाया। पौधों की संवेदनशीलता जानने के लिए उन्होंने एक दूसरा प्रयोग किया। एक पौधे का सम्बन्ध गैल्वेनोमीटर के तार से जोड़ दिया। अपनी स्नायुओं को शिथिल करके लम्बी-लम्बी साँस खींचते हुए पौधे के ऊपर हाथ फेरने लगे। उस समय उनके मन में पौधे के प्रति स्नेह भाव उमड़ रहे थे। पीलीग्राफ पर उन्होंने देखा कि तरंगों की रेखा अंकित हो गयी है। विचारों का क्रम चार मिनट तक चलता रहा। वह टूटते ही यन्त्र में तरंगों का अंकन बन्द हो गया। गैल्वेनो मीटर का सम्बन्ध पौधे से विच्छेद करके थोड़ी देर के लिए उन्होंने विश्राम दिया। पुनः गैल्वनो मीटर से जोड़कर पहले वाली विचार शृंखला का प्रयोग आरम्भ किया। पोलीग्राफ पर उसी प्रतिक्रिया की पुनरावृत्ति हुई। इस प्रयोग से निष्कर्ष निकला कि पौधे में न केवल संवेदनशीलता होती है वरन् उनसे संचार सम्बन्ध भी स्थापित किया जा सकता है।

एक अन्य प्रयोग में डा. वोगल ने अपने एक मिल को प्रयोगशाला में बुलाया। कमरे में रखे पौधे का सम्बन्ध पोलीग्राफ से जोड़कर उन्होंने मित्र से किसी विषय पर गम्भीरता से सोचने के लिए कहा। निरन्तर अठारह सेकेंड तक यन्त्र ने पोलीग्राफ पर अपनी प्रतिक्रिया अंकित की। एकाएक अंकन रुक गया। डा. ने मित्र से पूछ- ‘क्या उन्होंने सोचना बन्द कर दिया है। मित्र ने स्वीकारात्मक उत्तर दिया यह देखने के लिए कि बीच में प्रयोग रोक देने तथा पुनः आरम्भ किये जाने पर प्रतिक्रियाओं में क्या अन्तर आता है, उन्होंने थोड़ी देर के लिए प्रयोग रोक दिया। कुछ समय बाद पौधे को गैल्वेनो मीटर से जोड़कर मित्र को पुनः उसी विषय पर सोचने का निर्देश दिया। उनके आश्चर्य का कोई ठिकाना नहीं रहा कि दुबारा अंकित तरंगों तथा पहले की तरंगों में थोड़ा भी अन्तर न था। डा. बोगल ने इस निष्कर्ष के बाद घोषणा की कि पौधे न केवल संवेदनशील होते हैं, बल्कि उनमें स्मृति की भी विशेषता पायी जाती है।

प्रख्यात रूसी मनोवैज्ञानिक वी. यन पुश्किन का एक रोचक प्रयोग विवरण वैज्ञानिक पत्रिका ‘कोनियासिला’ में प्रकाशित हुआ जो इस प्रकार था-

तान्या नामक एक सुन्दर युवा लड़की को सम्मोहित किया गया। पौधे का सम्बन्ध यन्त्र से जोड़ा गया। डा. पुश्किन ने लड़की से पूछा क्या तुम सचमुच ही एक सुन्दर लड़की हो? लड़की ने प्रसन्नता व्यक्त करते हुए सकारात्मक उत्तर दिया। उन्होंने लड़की के व्यक्तिगत जीवन के संदर्भ में भी अनेकों प्रश्न पूछे। जब तक वह प्रश्नों का सही उत्तर देती रही पोलीग्राफ पर कोई प्रतिक्रिया नहीं अंकित हुई, पर जैसे ही प्रश्नों के बौछार से झल्लाकर उसने गलत उत्तर देना शुरू किया गैल्वेनोमीटर की सुई घूमने लगी तथा पोलीग्राफ पर तरंगें अंकित होने लगीं। लड़की के सामान्य अवस्था में आने पर डा. ने गलत उत्तरों के विषय में दुबारा पूछा। उसने स्वीकार किया कि जिन प्रश्नों के उत्तर में यन्त्र ने प्रतिक्रिया दर्शायी वे गलत थे। पुश्किन ने कहा कि पौधे तथा मनुष्य ने नाड़ी संस्थान में कहीं न कहीं सूक्ष्म सम्बन्ध है तथा वे झूँठ को पकड़ने में भी सक्षम हैं।

न्यूयार्क के डा. कल्यू ने एक विचित्र तथ्य का उद्घाटन किया है कि पौधे मात्र विचारों को ग्रहण करने में ही नहीं मनुष्य के कृत्यों की गवाही देने में भी समर्थ हैं। एक प्रयोग में उन्होंने दो पौधों को पोलीग्राफ से जोड़ा। छह व्यक्तियों को कमरे में बुलाकर छह मिली हुई कागज की पर्चियाँ रखीं तथा उनमें से प्रत्येक को कहा कि एक पर्ची उठा लें तथा जैसा निर्देश पर्ची पर लिखा है उसका बिना बताये पालन करें। उन पर्चियों में से एक पर लिखा था कि अवसर देखकर चुपके से कमरे में रखे पौधों में से एक को नष्ट कर दें। यह जानकारी किसी को नहीं थी कि उक्त निर्देशों वाली पर्ची किसके पास है। जिस व्यक्ति को वह पर्ची मिली उसने चुपके से एक पौधे को नष्ट कर डाला।

एक सप्ताह बाद डा. ने उन छह व्यक्तियों को पुनः बुलाया तथा शेष एक पौधे के सामने से गुजारा। पाँच व्यक्ति पौधे के सामने से होकर निकल गये पर गैल्वेनोमीटर में कोई प्रतिक्रिया नहीं हुई। छठे व्यक्ति के आते ही यंत्र की सुई तेजी से घूमने लगी तथा पोलीग्राफ पर तरंगें अंकित होने लगीं। डा. क्ल्यू ने उस व्यक्ति से पूछताछ की तो मालूम हुआ कि उसने ही एक पौधे को नष्ट कर डाला था। गैल्वेनोमीटर की सुई घूमने का यही कारण था।

एक दूसरे प्रयोग में उन्होंने ड्रेकेनामे सेंजियाना नामक पौधे की एक शाखा को पोलीग्राफ लाइटिरेक्टर के तार से जोड़ दिया। पौधे की जड़ में थोड़ा पानी डाला तथा गल्वेनोमीटर में हल्की विद्युत तरंगें छोड़ दी। गैल्वेनोमीटर की सुई में गति आरम्भ हो गयी। यह जानने के लिए पौधे के ऊपर सुखद प्रतिक्रिया हुई या यह मात्र एक संयोग था। उन्होंने पौधे की एक शाखा को जलाने का विचार किया। एकाएक उनकी दृष्टि पौधे से जुड़े गैल्वेनोमीटर पर पड़ी। वेक्स्टर यह देखकर विस्मित रह गये कि पौधे को जलाने का विचार आते ही गैल्वेनोमीटर की सुई विपरीत दिशा में नीचे ग्राफ पर ऊर्ध्ववक्र रेखा में तेजी से गति करने लगी। यह प्रतिक्रिया विचारों से हुई अथवा किन्हीं और कारणों से। यह परखने के लिए वेकस्टर ने माचिस की एक तीली जलायी तथा पौधे की ओर इस प्रकार बढ़ाया जैसे जलाने जा रहे हों, पर उनके मन में पौधे को जलाने का कोई विचार न था। जो पौधा पहले जलाये जाने के भय की प्रतिक्रिया गैल्वेनोमीटर में तेजी से दे रहा था विचार के उलटते ही शान्त पड़ गया। वेक्स्टर ने निष्कर्ष निकाला कि मन में चलने वाले विचारों को पौधा पकड़ने में पूर्णतया सक्षम है।

एक अन्य प्रयोग में उन्होंने पोलीग्राफ को एक पौधे से जोड़कर उसका सम्बन्ध एक व्यक्ति से कर दिया। उस व्यक्ति ने व्यक्तिगत जीवन से सम्बन्धित उन्होंने अनेकों प्रश्न पूछे। प्रश्न का उत्तर सही आने पर गैल्वेनोमीटर में कोई गति नहीं होती थी, पर जिस प्रश्न का उत्तर वह हड़बड़ाकर गलत देता था गैल्वेनोमीटर की सुई एकाएक घूमने लगती थी प्रयोग के उपरान्त उस व्यक्ति ने स्वीकार किया कि जिस प्रश्न का उत्तर उसने गलत दिया। गैल्वेनोमीटर ने उसी पर प्रतिक्रिया व्यक्त की।

विचार व्यक्त हो अथवा अव्यक्त उनका भला-बुरा प्रभाव पड़ना सुनिश्चित है। सूक्ष्म वातावरण में वे बने रहते हैं तथा अनायास ही दूसरों को जाने अनजाने प्रभावित करते रहते हैं। परिवार इसका प्रत्यक्ष उदाहरण है। प्रायः बच्चों को सत्याचरण के लिए अभिभावक- माता-पिता शिक्षा देते रहते हैं, पर उन बच्चों की संख्या अत्यल्प होती है जो उन शिक्षाओं का पालन करते हैं। उन्हें झूँठ बोलने की कोई ट्रेनिंग नहीं मिलती पर देखा यह जाता है कि अधिकाँश बच्चे झूँठ बोलने में पारंगत हो जाते हैं। कारणों की खोज करने पर पता चलता है कि अभिभावकों के आन्तरिक विचार उनकी कथनी के विपरीत होते हैं। अव्यक्त होते हुए भी उसका दुष्प्रभाव बच्चे पर पड़ता है। पेड़-पादप तक जब विचारों का भली-बुरी प्रतिक्रियाओं को ग्रहण करने में समर्थ होते हैं तो भला चेतना सम्पन्न बच्चा उनसे कैसे अछूता रह सकता है।

न केवल विचारों को अपितु विगत कृत्यों को पकड़ने की भी सामर्थ्य पौधों में विद्यमान होती है। अपने प्रयोग शृंखला में डा. वेक्स्टर को एक रोचक किन्तु विचित्र रहस्य हाथ लगा। एक कनाडा की महिला उनके प्रयोगों का अध्ययन करने आयी। वह स्वयं भी पौधों पर कार्य कर रही थी। डा. की प्रयोगशाला में गैल्वेनोमीटर से जुड़े पौधे का निरीक्षण करती वह गुजर रही थी। एक पौधे के समक्ष पहुंचते ही गैल्वेनोमीटर की सुई में एकाएक तीव्र गति आरम्भ हो गयी। ग्राफ पर एक विशेष प्रकार की तरंगें अंकित होने लगी जो यह बताती थी कि पौधे भयभीत हो गये। डा. वेक्स्टर ने उस महिला से पूछा कि क्या वह पौधों को प्रयोग के दौरान नष्ट भी करती है। महिला को भारी अचरज हुआ। उसने बताया कि ठीक उसी समय वह अपने एक प्रयोग के विषय में सोच रही थी जिसमें पौधे की टहनी तोड़कर भट्टी में भूनती थी। डॉक्टर ने गैल्वेनोमीटर की सुई में गति का कारण स्पष्ट करते हुए बताया कि मस्तिष्क में उक्त महिला के चल रहे आक्रामक विचारों को पौधे ने पकड़ लिया।

इन आश्चर्यजनक निष्कर्षों से वैज्ञानिकों को यह विश्वास हो चला है कि जड़ चेतन के बीच ऐसा कोई सूक्ष्म सम्बन्ध है, जो परस्पर एक-दूसरे को प्रभावित करता है। यह विचार भारतीय दर्शन की उस मान्यता की पुष्टि करता है जिसमें ऋषि कहता है-

यो देवो अग्नो यो अप्सु, यो विश्वं भुवनमाविवेश। य औषधीषुयो वनस्पतिषु तस्मै देवाय नमोनमः। -श्वेताश्वतरोपनिषद

अर्थात्- जो चेतना अग्नि में, जल में, सम्पूर्ण ब्रह्माण्ड, औषधियों एवं वनस्पतियों आदि में संव्याप्त है, उसको नमस्कार है।

ये सभी उदाहरण विचारों की असाधारण महत्ता पर प्रकाश डालते हैं। वे इस बात की प्रेरणा देते हैं कि विचार स्वयं में शक्ति पुँज हैं। अपनी भली-बुरी प्रतिक्रियाओं से समीपवर्ती समूचे वातावरण को प्रभावित कर सकते हैं। रेडियो विकिरण की विषाक्तता जिस तरह दीर्घकाल तक वातावरण में बनी रहती है तथा अनेकों प्रकार के प्रत्यक्ष अप्रत्यक्ष समस्याओं को जन्म देती है, उसी तरह विचार भी सूक्ष्म रूप से अदृश्य वातावरण में बने रहते हैं और अपने स्तर के अनुरूप प्रेरणा देते- प्रभाव छोड़ते हैं। तत्काल ही नहीं, दूरगामी परिणामों की दृष्टि से भी श्रेष्ठ, उदात्त विचारों की महत्ता असाधारण है। शुभ एवं कल्याणकारी सोचने में ही मनुष्य एवं समाज सबका ही हित है।


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