सन्त ज्ञान देव कहते थे- “माली जिधर ले जाय, उधर ही चुपचाप चले जाने वाले पानी की तरह बनो।” माली जिन फूल और फलों के पौधों को चाहता है, उन्हें पानी देता व बढ़ाता है। इसी प्रकार यदि भगवान को हम माली मान लें तो हमारे हाथों जो कुछ होना है, वह उसी के द्वारा तय होना चाहिए। जीवन की सारी हलचल, नाच कूद, फलना-फलाना सब कुछ अन्त में परमात्मा ही तो होना है। हमारे जीवन का ‘वह’ महेश्वर बन जाय, यह समर्पण भाव आए बिना अहंता के पर्दे का हटना सम्भव नहीं।