लोक लोकान्तरों का पारस्परिक आदान प्रदान

January 1983

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मनुष्यों का किन्हीं अदृश्य लोकों तक पहुँचना और लोक-लोकांतरों के बुद्धिमान प्राणियों का मनुष्य लोक के साथ संपर्क बनाने के लिए दौड़ लगाना आश्चर्यजनक तो लगता है, पर सर्वथा अविश्वस्त नहीं है।

कुछ दिन पहले मनुष्य ने चन्द्रमा के धरातल पर पैर रखा था और वहाँ की परिस्थितियों की जानकारी विस्तारपूर्वक दी थी। अन्तरिक्ष में इन दिनों सैकड़ों यान पृथ्वी की परिक्रमा लगा रहे हैं। इनमें से कितनों में ही मनुष्य उड़े और अभीष्ट जाँच-पड़ताल के उपरान्त वापस लौटे हैं। सौर मण्डल के समीपवर्ती ग्रहों तक मानव रहित यान पहुँच चुके हैं। अगले दिनों वहाँ तक मनुष्य समेत यान भेजने की योजना है। हो सकता है यह प्रयास किसी दिन आगे बढ़ते-बढ़ते लोक-लोकान्तरों तक यात्रा कर सकने वाले वाहनों का विकास करते और उनमें बैठकर वैज्ञानिक ब्रह्माण्ड की, अभीष्ट ग्रह-तारकों की खोज-खबर लेने के लिए चल पड़ें।

जब समर्थ जलयानों का आविष्कार नहीं हुआ था तब सुविस्तृत समुद्रों को पार कर सकना सम्भव नहीं था। उन दिनों महाद्वीप भी एक प्रकार से अविज्ञात लोक ही बने हुये थे। कोलम्बस ने अमरीका को इसी स्थिति में खोजा था। समर्थ जलयानों ने जिस प्रकार भूलोक के विभिन्न खण्डों को आपस में जोड़ दिया, हो सकता है अगले दिनों अन्तरिक्ष यान दूरवर्ती लोक-लोकान्तरों के बीच भी आवागमन का आदान-प्रदान का रास्ता खोलें।

पौराणिक गाथाओं में धरती और स्वर्ग के बीच आवागमन की अनेकों चर्चाएँ सम्मिलित हैं। देवर्षि नारद धरती से विष्णुलोक और विष्णुलोक से धरती पर दौड़ लगाते रहते थे। अर्जुन और दशरथ के सशरीर देव लोक पहुँचने, अभीष्ट प्रयोजन की पूर्ति के उपरान्त वापस लौटने की कथाएँ कहीं-सुनी जाती हैं। समय-समय पर देवता भी धरती की समस्याओं को सुलझाने के लिए आते, ठहरते एवं अवतार धारण करते रहे हैं। लोक-लोकान्तरों के मध्य चलने वाले आवागमन सूत्रों का यह पौराणिक उल्लेख है। आज के वैज्ञानिक प्रयत्नों का पौराणिक गाथाओं के साथ तालमेल बिठाने पर सम्भावना यह उभरती है कि आज की स्थिति में यह कठिन भले ही हो, पर असम्भव नहीं है। कम-से-कम सैद्धान्तिक दृष्टि में तो उसे मान्यता दी ही जा सकती है।

इस चर्चा में एक कड़ी उड़न तश्तरियों और विद्युत जेटों की भी जुड़ती है। वे इतनी अधिक संख्या में प्रामाणिक व्यक्तियों द्वारा प्रत्यक्ष देखा जा चुका है कि उनका अस्तित्व झुठलाया जाना सम्भव नहीं। वैज्ञानिक इस संदर्भ में कुछ ठीक से बता नहीं पाते। अब तक अन्तरिक्ष ज्ञान द्वारा कोई निश्चित निष्कर्ष निकला नहीं। ऐसी दशा में उन्हें लोक-लोकान्तरों के साथ आवागमन का एक सूत्र होने की बात सोची जाय तो उसे उपहासास्पद नहीं कहा जाना चाहिए।

उड़न तश्तरियों को अन्तरिक्षयान समझा जा सकता है। विद्युत गेदें किसी अन्य लोक के सुविकसित जीवधारी हो सकते हैं। यदि वे दोनों प्रकृति के कोई विशिष्ट आधार हैं तो पता चलना चाहिए कि इनके आकस्मिक प्रकटीकरण और विलुप्तीकरण के पीछे किन शक्तियों एवं सिद्धान्तों का रहस्य सन्निहित हो सकता है। दोनों में से कोई भी कारण हो, यह हर दृष्टि से विचारणीय और अनुसंधान की दृष्टि से महत्वपूर्ण समझा जाने योग्य है।

ब्राजील के दो युवा इंजीनियर मिगले बायना और मैनुअल क्रूज उड़न तश्तरियों के रहस्य ज्ञात करने के प्रयोग कर रहे थे। इसके लिए दोनों ने मिलकर एक प्रयोगशाला बनायी थी और उसमें विभिन्न प्रकार के प्रयोग करते थे।

अगस्त 1966 की बात है। दोनों इंजीनियर सुबह ही विन्टेम पहाड़ी पर चढ़ने के लिए चल पड़े। यह पहाड़ी घने जंगलों में भरा है और पिछले 25 वर्षों से वहाँ अक्सर उड़न तश्तरियाँ देखी जाती रही हैं। वहाँ प्रायः प्रतिदिन कोई विचित्र वस्तु आकाश से उतरती और कुछ देर ठहर कर चली जाती है। समझा जाता है कि अन्तरिक्षवासियों ने ब्राजील की इस पहाड़ी को धरती की परिस्थितियों का अध्ययन करने के लिए स्टेशन बनाया है।

जैसे ही दोनों पहाड़ी पर चढ़े, कोई उड़नतश्तरी के आकार की वस्तु पहाड़ी पर उतरती दिखाई दी। नगर के अनेक प्रामाणिक व्यक्तियों ने इसकी पुष्टि की।

दूसरे दिन प्रातःकाल कुछ लड़के शिकार खेलने के उद्देश्य से उस पहाड़ी पर चढ़े तो वहाँ दोनों इंजीनियर मृत पाये गये। सूचना पुलिस को दी गई। पुलिस आयी, पर मृत्यु का कारण का पता नहीं लगा सकी, क्योंकि उनके हाथ कोई ऐसा सुराग नहीं लगा जो मृत्यु का कोई ठोस कारण बता सके। शव परीक्षा में भी उनके शरीर में किसी प्रकार के विष का कोई प्रभाव नहीं पाया। इसी शृंखला की एक दूसरी कड़ी है- ‘आग की गेंद’। यह अनेक स्थानों पर प्रकट और लुप्त होती देखी गई है। उनके प्रत्यक्षदर्शियों में ऐसे प्रामाणिक व्यक्ति हैं, जिनकी साक्षियों पर अविश्वास नहीं किया जा सकता है। उन्हें मनगढ़न्त अफवाहें फैलाने वाले बचकाने लोगों में भी किसी प्रकार गिना नहीं जा सकता।

15 मार्च सन् 1963 की बात है। न्यूयार्क से वाशिंगटन जाने वाले ‘ईस्टर्न एयर लाइन’ फ्लाइट नं. 539 विमान में सुबह पाँच बजे एक आग की गेंद घूमती हुई देखी गई। वह एक छोर से प्रविष्ट हुई और दूसरे छोर में शौचालय के पास जाकर अदृश्य हो गईं। देखा तो उसे अनेकों ने पर किसी का कोई नुकसान न हुआ। मात्र गंधक या नाइट्रोजन आक्साइड जैसी गन्ध भरी पायी गई।

यह घटना विश्व विख्यात वैज्ञानिक पत्रिका ‘नेचर’ में छपी। विश्लेषणकर्ताओं ने उसके सम्बन्ध में अनेक कारणों और सम्भावनाओं का प्रस्तुतीकरण किया, पर निश्चित कुछ भी नहीं कहा जा सका। आग या बिजली की गेंद का आखिर कुछ तो प्रभाव होना ही चाहिए था।

अन्यत्र भी बहुत स्थानों पर इन विद्युत गेंदों को देखा गया है। वैज्ञानिक संस्था ‘नासा’ के इस संदर्भ में एकत्रित उदाहरणों की संख्या 600 से भी अधिक है। इनके आकार 1 सेन्टीमीटर से लेकर 1 मीटर तक देखे गये हैं। इनके अस्तित्व को सिद्ध करने वाली 4000 साक्षियाँ उपलब्ध हैं, पर यह नहीं कहा जा सका कि वे आखिर हैं क्या, और क्यों इस प्रकार उछलती-कूदती दौड़ती प्रकट और लुप्त होते हुए भी किसी वस्तु को अपना दृश्यमान ऊर्जा से प्रभावित नहीं करती।

उड़नतश्तरियों की तरह इन विद्युत गेंदों ने भी उन मनुष्यों को कोई हानि नहीं पहुँचाई जिनके समीप से वे निकलीं या सटकर अपनी ऊर्जा अस्तित्व का छोटा-मोटा प्रमाण देती गईं।

अधिक सम्भावना इसी बात की है कि यह किन्हीं विकसित सभ्यता वाले लोकों के निवासियों द्वारा धरती वालों के साथ संपर्क साधने और यहाँ की परिस्थितियाँ समझने का प्रयत्न है। एक ओर से बढ़ाये गये हाथ के उत्तर में दूसरी ओर से भी हाथ बढ़ाना चाहिए और ब्रह्माण्डव्यापी चेतना के घटकों को मिल-जुलकर किसी बड़े लक्ष्य की पूर्ति के लिए सहयोगपूर्वक आगे बढ़ना चाहिए।

इस संदर्भ में प्रकृति के एक रहस्य का कुछ दिन पूर्व ही पता चला है कि ब्रह्माण्ड में ऐसे अनेकों अरबों-खरबों मील लम्बे-चौड़े छिद्र हैं जहाँ विद्यमान चुम्बकत्व के सहारे पदार्थों या प्राणियों का एक क्षेत्र से दूसरे क्षेत्र की दूरी पार कर लेना नितान्त सरल है। इन मार्गों को ‘अन्ध छिद्र’ कहते हैं। अन्ध इसलिए कि उसमें प्रकाश का सर्वथा अभाव रहने के कारण यह पता नहीं चलता है कि इस मार्ग पर दौड़ाने वाले किस दिशा में कितनी तेजी से दौड़ रहे हैं और वे अन्ततः कब कहाँ पहुँचने वाले हैं। इस अनिश्चय की स्थिति के कारण ही उसे अन्ध तमिस्रा कहा गया है। यह राह अपने आप यात्री को घसीटती-धकेलती है। उस पर चलने वाले को तनिक भी श्रम नहीं करना पड़ता। समझा जाता है कि मार्ग पर प्रकाश गति की तुलना में कहीं अधिक तेजी से चलने वाले पदार्थों का प्रमाण है।

‘ह्वाइट होल’ अन्तरिक्ष में पाये जाने वाले ऐसे सुविस्तृत क्षेत्र हैं जहाँ न तारे होते हैं न आकाश गंगाएँ। यह ब्लैक होल से गुण और प्रकृति में पूर्णतः भिन्न होते हैं। इनमें न तो उनकी जैसी विलक्षण आकर्षण क्षमता होती है, और न उसके समतुल्य कोई अन्य गुण। हाँ, विस्तार में ये अवश्य काफी बड़े होते हैं। अब तक इस प्रकार की करीब दस होलों की गवेषणा की जा चुकी हैं जिनमें अन्तिम होल क्षेत्रफल में सबसे बड़ा है। इसका आयाम 30 करोड़ लाख प्रकाश वर्ष है।

अमरीका शोधकर्ताओं ने आकाश में जब एक प्रकाश बम फेंका तो पाया कि 50 करोड़ लाख प्रकाश वर्ष दूर भी अन्तरिक्ष में बहुत सारी आकाश गंगाएँ हैं। इसी प्रकार 80 करोड़ लाख प्रकाश वर्ष दूर भी आकाश गंगाएँ पायी गईं, किन्तु इन दानों के बीच का 30 करोड़ लाख प्रकाश वर्ष का विस्तृत क्षेत्र तारा एवं आकाश गंगा से पूर्णतः रहित था। इसे ही ह्वाइट होल की संज्ञा दी गई।

इन छिद्रों में होकर वारमूडा स्थानों से कितने ही जलयान, वायुयान गायब हो चुके हैं। इसके अतिरिक्त जहाँ-तहाँ ऐसी भी घटनाओं का पता चला है जहाँ से मनुष्य या कोई पदार्थ देखते-देखते गायब होते हैं। इन्हें उड़न तश्तरियों या विद्युत गेंदों के समतुल्य समझा जा सकता है। इनका अस्तित्व यह बताता है कि अदृश्य लोकों के साथ अपनी धरती का सम्बन्ध अविज्ञात रूप से जुड़ता रहा है और जुड़ा हुआ है।

जुलाई 1768 की घटना है। इंग्लैंड के सिफ्टन मैलेट नामक गाँव में 70 वर्षीय दर्जी, पारफिट अपनी बड़ी बहन के साथ रहता था। युद्ध के दौरान वह लंगड़ा हो गया था अतः आजीविका के लिए उसने दर्जी का काम आरम्भ किया। वह इतना कमजोर था कि चलना-फिरना तो दूर स्वयं बिस्तर से भी नहीं उठ सकता था। एक दिन प्रातः उसने दरवाजे के पास बैठने की इच्छा प्रकट की। पड़ौस की एक लड़की तथा उसकी बहन ने मिलकर उसे दरवाजे के पास कुर्सी पर बिठाया। फिर दानों अपने-अपने काम में लग गईं। उसकी बहन ऊपर की मंजिल में काम करने चली गई। पारफिट के घर का दरवाजा मुख्य सड़क की ओर खुलता था। उसी दरवाजे पर वह बैठा था। 15 मिनट बाद जब उसकी बहन वहाँ पहुँची तो पारफिट गायब था। दूर-दूर तक उसकी खोज-बीन की गई पर कहीं उसका पता न चला, न ही कोई ऐसा सुराग मिला जिससे लापता का कारण जाना जा सके।

यह घटना उस व्यक्ति की है जिसने डीजल इंजन का आविष्कार किया। रुडोल्फ डीजल एक दिन किसी आवश्यक कार्यवश अमरीका जा रहा था। 29 सितम्बर 1913 को ड्रेस्डन जहाज से यात्रा के लिए रवाना हुआ। रात्रि भोजन के उपरान्त डीजल अपने इंजीनियर मित्र लुकमान के साथ जहाज पर घूमने निकला। 10 बजे दोनों वापस लौट आये और अपने-अपने केबिन में चले गये। दूसरे दिन सवेरे डीजल लापता था। कमरे की जाँच करने पर ज्ञात हुआ कि उसने सोने की पूरी तैयारी कर ली थी। घड़ा इतनी ऊँचाई पर रखी थी कि वह सोते हुए भी समय ठीक प्रकार देख सके। किन्तु बिस्तर पर किसी प्रकार की सिकुड़न नहीं थी। शायद वह बिस्तर पर लेट नहीं सका था और इससे पहले ही घटना घटी तथा वह गायब हो गया। उसकी काफी खोज-बीन की गई, पर कहीं पता न चला।

सन् 1920 का अक्टूबर माह। ब्रिटिश पार्लियामेंट में लेबर पार्टी के सदस्य विक्टर ग्रेसन लीवर पुल से रवाना होकर एक सभा को सम्बोधित करने जा रहे थे। उन्हें लेने कई लोग स्टेशन पहुँचे, पर वे ट्रेन में थे ही नहीं। पुलिस को जाँच का दायित्व सौंपा गया। खोजबीन से उसका बैग लन्दन के एक होटल मैनेजर के पास पाया गया। मैनेजर ने बताया कि एक व्यक्ति ने यहाँ यह छोड़ दिया है, मगर इसे लेने वह अब तक नहीं आया। उसके सिर में पट्टी बँधी थी, किन्तु मैनेजर के बताये हुलिए से ग्रेसन बिल्कुल ही नहीं मिलता था। ग्रेसन का अब तक कहीं पता नहीं चल सका।

मनुष्य का इस प्रकार अचानक अदृश्य हो जाना क्यों कर होता है? इसका कारण लोकान्तर आवागमन का पथ प्रशस्त करने वाले किन्हीं शोधकर्ताओं का आवश्यकता के साथ जोड़ा जा सकता है अथवा ऐसा भी हो सकता है कि कोई छोटे ब्लैक होल उसी तरह जहाँ-तहाँ पकड़ते-खींचते, घसीटते-फिरते हों, जिस तरह कि विद्युत गेंदें उड़न तश्तरियों का छोटी प्रतिकृति के रूप में यदाकदा दृष्टिगोचर होती हैं।


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