विचार- एक अद्भुत प्रचण्ड शक्ति स्रोत

January 1983

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जलती हुई आग के पास बैठकर घोर शीत में भी सर्दी से बचा जा सकता है। आग अपने आसपास के समीपवर्ती क्षेत्र को भी गर्म करती है। वह अपनी ताप किरणें दूर-दूर तक फैलाती है और निकटवर्ती क्षेत्र को गर्म रखती है। यों शरीर में भी गर्मी होती है। साँस के द्वारा उस गर्मी को अनुभव किया जा सकता है और देह के संपर्क में जो वस्त्र आते हैं वे भी गरम हो जाते हैं। सर्दियों में कपड़े पहनकर सर्दी से इसीलिए बचा जा सकता है कि इन वस्त्रों से शरीर की गर्मी बाहर निकलने से बच जाती है और शरीर गर्म रहता है। मनुष्य में रहने वाली तापशक्ति से भी अधिक महत्वपूर्ण और प्रखर शक्ति है- विचार शक्ति। उसकी प्रचण्डता देखते ही बनती है।

इस शक्ति का- विचार शक्ति एवं इच्छा शक्ति का निर्माण मस्तिष्क में होता है। विचार शक्ति और इच्छा शक्ति की प्रचण्डता तथा प्रखरता के अनेक उदाहरण प्रत्यक्ष जगत में देखे जा सकते हैं। कई लोगों ने तो अपनी इस शक्ति का विकास इस स्तर तक किया है कि उनकी मिसाल दी जा सकती है और सामान्यजनों के लिए वे प्रसंग चमत्कारी ही कहे जा सकते हैं। ड्यूक विश्वविद्यालय की परामनोविज्ञान प्रयोगशाला ‘अमेरिकन सोसाइटी फार साइकिक पावर’ तथा कुछ अन्य विश्वविद्यालयों ने इस सम्बन्ध में रुचि दिखाई है और ऐसे अनेक उदाहरण एकत्रित किए हैं। जिनमें विचार या इच्छा शक्ति का महत्व समझा जा सके।

इन प्रसंगों में रेड सीरियस का उदाहरण बहुत चमत्कारी कहा जा सकता है। रेड के सम्बन्ध में पत्र-पत्रिकाओं में बहुत कुछ प्रकाशित हो चुका है। पिछले दिनों अमेरिका के ही एक व्यक्ति आइजक बोर्न ने स्पेन के समुद्र में डूबे जहाजों का पता लगाने के लिए अपनी विचार शक्ति का प्रयोग किया और तमाम उपाय असफल हो जाने के उपरान्त इस पद्धति से सफलता प्राप्त की। अतीन्द्रिय शक्तियों में से अधिकाँश इन्हीं विचार और इच्छा शक्ति का परिणाम है। दूर-दर्शन, दूरानुभूति पूर्वाभास आदि अतीन्द्रिय विशेषताएँ प्रकारान्तर से इसी विचार शक्ति के परिणाम हैं।

यहाँ यह तथ्य समझ लेना चाहिए कि विचार शक्ति और इच्छा शक्ति में बहुत थोड़ा-सा अन्तर है। इन दोनों का निर्माण मस्तिष्क में होता है, यहाँ तक तो कोई विवाद नहीं है, लेकिन यहाँ आकर इच्छा शक्ति विचार शक्ति का पलड़ा भारी हो जाता है कि इच्छा शक्ति का प्राण है। कहा जा सकता है कि इच्छा शक्ति की प्रबलता से मस्तिष्कीय क्षमता बढ़ती है। मस्तिष्कीय उपचारों से कदाचित ही किन्हीं जड़मति लोगों को बुद्धिमान बनाया जा सकता हो पर इच्छा शक्ति की प्रेरणा से वरदराज जैसे अगणित मन्दमति लोग उच्च श्रेणी के विचारवान बुद्धिमान बन सकते हैं। अन्तःप्रेरणा उनके अविकसित मस्तिष्क को विकसित स्तर का बढ़ाने में महत्वपूर्ण भूमिका सम्पादित की है।

यह शक्ति कहाँ से आती है? एक ही उत्तर है, इस शक्ति का स्रोत और निवास स्थान मस्तिष्क है। निश्चित रूप से उसे जादू का पिटारा कहा जा सकता है। यद्यपि इन दिनों विलक्षण कम्प्यूटरों का निर्माण हो रहा है। इनके निर्माण से कठिन बौद्धिक कार्यों को बड़ी सरलता से सम्पादित किया जा सकता है। इस कारण इनकी बड़ी चर्चा प्रशंसा की जाती है। किन्तु मस्तिष्कीय क्रियाकलापों को देखा जाए तो उनकी तुलना में अब तक के बने सभी कम्प्यूटर आविष्कारों को न्यौछावर किया जा सकता है। यह एक ऐसा यन्त्र है जिसका तुलना का या बराबरी का दूसरा उपकरण खड़ा कर सकना कल्पना के बाहर की बात है।

प्रकृति के इस अद्भुत विलक्षण आविष्कार के क्रियाकलापों को केवल जीवनयापन सम्बन्धी गतिविधियों तक ही सीमित समझना या यह सोचना कि यह केवल सोच विचार में ही लगा रहता है और उसकी शक्ति इतने तक ही सीमित रहती है, गलत होगा। मस्तिष्कीय क्रियाकलापों का क्षेत्र इससे बहुत आगे तक व्यापक है। सूर्य जिस प्रकार निरन्तर अपना प्रकाश और ताप चारों ओर बखेरता रहता है, ठीक उसी प्रकार मानव मस्तिष्क से एक विशेष प्रकार की ऊर्जा निःसृत होती रहती है। इसे विचार, संकल्प, भावना, इच्छा आदि किसी भी नाम से अथवा उसके संयुक्त सम्मिश्रण के रूप में सम्बोधित किया या पहचाना जा सकता है। इस विकिरण के द्वारा एक व्यक्ति अपने समीपवर्ती लोगों को अनजाने ही असाधारण रूप से प्रभावित करता रहता है। इसे अनन्त आकाश में भरे ईथर तत्व के माध्यम से सरलतापूर्वक समझा जा सकता है।

तालाब में ढेला फेंकने पर जिस प्रकार चारों ओर पानी की लहरें इकट्ठी होती रहती हैं, उसी तरह विश्वव्यापी ईथर महासागर में हमारे विचार अपने स्तर के प्रहार करते हैं और उनके प्रकाश ध्वनि से भी अधिक ऊँची एवं सूक्ष्म स्तर की किन्तु लगभग उसी प्रकार की तरंगें उठती हैं। वे कुछ दूर आकर ही समाप्त नहीं हो जातीं वरन् अनन्त आकाश में भ्रमण करती हुईं निकल जाती हैं। स्पष्ट है कि किसी गोलक पर सीधी यात्रा आरम्भ करने से उसका अन्त प्रारम्भ किये जाने वाले स्थान पर ही होता है। उसी प्रकार किसी व्यक्ति के मस्तिष्क से निकलने वाली विचार तरंगें अपनी सुदूर यात्रा करती हुईं वापस अपने उद्गम स्रोत पर लौट आती हैं। इस प्रक्रिया का दुहरा प्रभाव होता है। एक तो उसी स्तर की विचार बुद्धि वाले उन कम्पनों से बल तथा प्रोत्साहन पाते हैं और जब वे वापस लौटते हैं तो अपने इस उत्पादन को नये आहार के रूप में पाकर सृजेता मस्तिष्क को भी लाभ पहुँचाते हैं।

किसान अपनी फसल का लाभ स्वयं नहीं उठाता है। उसे लाभ मिलता है परन्तु उसके कृषि कर्म से जो उत्पादन होता है, जो लाभ अर्जित किया जाता है उसमें अन्य अनेकों का भी हिस्सा होता है। किसान द्वारा उत्पादित किये गये अन्न से सैकड़ों व्यक्तियों को भोजन मिलता है। विचारों का उत्पादन भी इसी प्रकार कृषि कार्य है। पशु अपनी शरीर यात्रा सम्बन्धी सोच विचारों में ही लगे रहते हैं इसलिए उनका चिन्तन थोड़ा और विचार प्रवाह अत्यन्त क्षीण होता है। किन्तु मनुष्य में भावना इच्छा, संकल्प, आदर्श आदि की बड़ी शक्तिशाली प्रेरणाएँ चिन्तन क्षेत्र को घेरे रहती हैं। इसलिए उनसे उत्पन्न होने वाली विचार तरंगें भी अति शक्तिशाली होती हैं। जिनका चिन्तन शरीर यात्रा की परिधि में एक ही ढर्रे पर घूमता है उनकी चिन्तन तरंगें दुर्बल होती हैं। उनमें प्रखरता तभी आती है जब किन्हीं विशेष भावनाओं का उभार उनमें सम्मिलित रह रहा है।

किसी तरह की भावनाएँ चिन्तन में- विचार तरंगों में- प्रखरता उत्पन्न करती हैं? एक ही शब्द में यदि इसका उत्तर देना हो तो कहना होगा- आदर्शवादी भावनाएँ। आदर्शवादी भावनाएँ ही मनुष्य को उच्च स्तर का चिन्तन करने के लिए प्रेरित करती हैं। उस स्तर का चिन्तन करने वाले चरित्रवान एवं सेवा भावी लोग अपनी तरंगों के माध्यम से समस्त विश्व को अपनी प्रखर प्रेरणाओं से लाभान्वित करते हैं, भले ही उनका वह अनुदान दूसरों को प्रत्यक्ष न दिखाई पड़ता हो। यही बात दुष्ट दुरात्माओं के सम्बन्ध में भी लागू होती है। वे मन ही मन दुरभि सन्धियों के कुचक्र रचते रहते हैं और इस प्रकार की भयानक विचार तरंगें छोड़ते हैं जिनके कारण अगणित दुर्बल मनोभूमि के लोग उसी प्रकार का चिन्तन आरम्भ कर देते हैं तथा कुमार्गगामिता की ओर बढ़ाने लगते हैं। पतन का एक प्रवाह ही चल पड़ता है।

समान विचार वाले लोगों को अपने स्तर के नये विचार अन्तरिक्ष में व्याप्त ईथर तत्व से मिलते रहते हैं। या कि कहना चाहिए, उन्हें वहाँ से पोषण मिलता रहता है। सजातीय तत्वों के आकर्षण का प्रकृति नियम सर्वविदित है। धातुओं के कण धूलि में बिखरे रहते हैं परन्तु जिधर इन धातुओं की खदानें होती हैं उधर ये कण धीरे-धीरे सहज ही खिसकते तथा खदान में इकट्ठे होते जाते हैं। सभी नदियाँ समुद्र की दिशा में सहज ही बहती हैं। नाले नदियों की तरफ दौड़ते हैं। विचार भी अपने सजातीय विचारों की ओर उसी तेजी से दौड़ते हैं और वहाँ अपना रंग जमाते हैं। चोरी, लबारी, जुआरी, व्यभिचारी अपनी जमात जोड़ लेते हैं तो इसका यही कारण है और सन्त सज्जनों के सत्संग जमे रहते हैं तो इसका कारण भी यही है। अर्थात् जहाँ जिस स्तर के विचार उठ रहे होंगे वहाँ उसी स्तर की अन्य लोगों द्वारा छोड़ी गई विचार तरंगें भी आकर्षित होती हैं और अपना अड्डा जमा लेती हैं।

इस तथ्य को यों भी समझा जा सकता है कि हमारा रेडियो उन्हीं प्रसारणों को पकड़ता है जिन पर उसकी सुई अड़ी होती है। उस समय अन्य रेडियो स्टेशनों से अन्य प्रसारण भी होते रहते हैं, पर हम केवल अपनी रुचि का स्टेशन और प्रोग्राम ही सुनते हैं। अन्य प्रसारण अपनी राह चले जाते हैं, अपने रेडियो यन्त्र से उन्हीं का संपर्क हो पाता है जिन्हें अपना रेडियो पकड़ता है। विचार तरंगों को भी रेडियो तरंगों का सहधर्मी-सहकर्मी माना जा सकता है। वे उठती उमड़ती हैं और सभी को स्पर्श भी करती हैं। सभी पर वे सूक्ष्म प्रवाह भी छोड़ती हैं, पर विशेष प्रवाह अपने सजातियों पर ही डालती हैं। सज्जनों का मस्तिष्कीय चुम्बकत्व प्रायः उन्हीं को आकर्षित करता है, जिनमें सज्जनता के अंकुर पहले से ही मौजूद हों। दुर्जनों के सम्बन्ध में भी यही बात लागू होती है।

शारीरिक पुण्य पापों की तरह मानसिक पुण्य पापों की चर्चा धर्मशास्त्रों में मिलती है और उनके अनेक भले बुरे परिणाम होने की बात भी कही जाती है। इस प्रतिपादन में ठोस तथ्य है। कहा जा चुका है कि हमारा चिन्तन परोक्ष रूप से सारे विश्व को प्रभावित करता है, ऐसी दशा में हमारे क्रिया-कलापों द्वारा न सही, विचारों द्वारा ही कुछ क्षति पहुंचाई गई अथवा सेवा सहायता की गई तो उसका भला-बुरा परिणाम हमें निश्चित रूप से मिलना चाहिए और वह मिलता है। शारीरिक पुण्य-पापों का अपना महत्व है, लेकिन मानसिक पुण्य-पापों को भी काल्पनिक, नगण्य, निरर्थक या विनोद कहकर झुठलाया नहीं जा सकता। जब उनका प्रभाव होता है तो परिणाम क्यों नहीं मिलेगा?

जब चाहे जैसी कल्पनाएँ करने के लिए हर कोई स्वतन्त्र है, परन्तु इसका अर्थ यह नहीं समझना चाहिए कि यह कोई निरर्थक मनोविनोद मात्र है। विचारों की शक्ति और उनका महत्व आग या बिजली की तरह है। उनके साथ मखौलबाजी करना खतरनाक है। दुष्टता और दुराचार की कल्पना भर करते रहें, योजना भर बनाते रहें, उसी स्तर के सजातीय विचार चारों ओर से दौड़ पड़ेंगे और मस्तिष्क पर हावी हो जायेंगे। इसका परिणाम यह होगा कि हमारे प्रादुर्भूत विचार अनेक गुनी शक्ति सामर्थ्य से भर जायेंगे तथा उनके अच्छे-बुरे परिणाम सामने आ उपस्थित होंगे। यदि कोई व्यक्ति बुरे विचारों में निमग्न है तो स्वभावतः उस बुराई की अगणित प्रेरणाएँ योजनाएँ उसके मस्तिष्क के सामने आती चली जायेंगी और उसका मन क्रमशः उसके लिए प्रशिशित होता चला जाएगा।

कहा जा चुका है कि विचारशक्ति को विद्युत शक्ति जैसे अणु शक्ति जैसी- प्रचण्ड सामर्थ्य का माना जाना चाहिए और प्रत्येक व्यक्ति को इस बात का पूरा-पूरा ध्यान रखना चाहिए कि उसका सही सदुपयोग क्या हो सकता है? अपने पास धन सम्पत्ति हो तो उसका ऐसे ही निरर्थक कार्यों में कोई अपव्यय नहीं करता है। धन की बर्बादी करने से लोग क्षतिग्रस्त होते, नुकसान उठाते और उपहासास्पद बनते हैं। यही तथ्य विचारों की सम्पदा पर भी लागू होना चाहिए। जिन विचारों को अपनाया गया है वे प्रेरणाप्रद बनते हैं और अन्ततः अपनी ही दिशा में काम करने के लिए किया शक्ति को सहमत तथा तत्पर कर लेते हैं। अवाँछनीय विचारों को मस्तिष्क में स्थान देने और उन्हें वहाँ जड़े जमाने देने का अर्थ है भविष्य में हम उसी तरह का जीवन जीने की तैयारी कर रहे हैं। भले ही यह सब अनायास या अनपेक्षित रीति से हो रहा है, परन्तु उसका परिणाम तो होगा ही। उचित यही है कि हम उपयुक्त और रचनात्मक विचारों को ही मस्तिष्क में प्रवेश करने दें। यदि उपयोगी और विधायक विचारों का आह्वान करने और उन्हें अपनाने का स्वभाव बना लिया जाए तो निस्सन्देह प्रगति पथ पर बढ़ चलने की सम्भावनाएँ आश्चर्यजनक गति से विकसित हो सकती हैं।


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