मस्तिष्क में स्मरण क्षमता का विपुल भाण्डागार

January 1983

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मस्तिष्क में अगणित क्षमताओं और विशेषताओं के भाण्डागार भरे पड़े हैं। विचित्रताओं और विविधताओं को देखते हुए उसके लिए भानुमती का पिटारा, जादू का झोला की उक्ति सार्थक ही प्रतीत होती है। संसार की वरिष्ठ प्रतिभाओं में उनकी परिस्थितियों ने कम और मनःस्थिति की विशिष्टताओं ने अधिक भूमिका निभाई है।

मस्तिष्कीय क्षमताएँ ईश्वर प्रदत्त हैं। उनके उपार्जन अभिवर्धन में अपना कोई हाथ नहीं ऐसा सोचना गलत है। मस्तिष्कीय संरचना में भी शरीर संरचना की तरह नगण्य सा अन्तर रहता है। किसी को समर्थ-असमर्थ देखकर इसी निष्कर्ष पर पहुँचना चाहिए कि प्रसुप्ति को जगाने के संदर्भ में कहीं कम कहीं अधिक प्रयत्न हुए। जागा हुआ चूहा भी चकित करने वाली उछलकूद दिखाता है। इसके विपरीत निद्राग्रस्त होने पर बलिष्ठ से बलिष्ठ की स्थिति भी मृतक तुल्य हो जाती है। यही बात मस्तिष्क के सम्बन्ध में भी है। उसकी क्षमताओं में जो अन्तर पाया जाता है, उसे संरचना का नहीं वरन् प्रसुप्ति एवं जागृति का भेद माना जाना चाहिए।

मस्तिष्कीय क्षमताओं में ‘स्मरण शक्ति’ का बहुत बड़ा योगदान है। जो आज पढ़ता-सुनता है और कल भूल जाता है, उसे अशिक्षित एवं अनगढ़ जैसी स्थिती में रहना पड़ेगा। भूतकालीन स्मरणों के आधार पर ही आज की समस्याओं के सम्बन्ध में किसी सही निष्कर्ष पर पहुँच सकना सम्भव होता है। प्राचीन काल में स्मरण शक्ति की उपयोगिता आवश्यकता अधिक अच्छी तरह समझी जाती थी, तब उसके लिए प्रयत्न भी होते थे। वेद मन्त्रों की श्रुति कहते हैं। शास्त्र संहिताओं की स्मृति। यह श्रुति- स्मृति पुस्तकों तक सीमित नहीं रहने दी जाती थी वरन् कण्ठस्थ करके- स्मरण कर अविच्छिन्न अंग बनाई जाती थी। गीता रामायण आदि को अभी भी कितने ही लोग कण्ठस्थ करते हैं।

स्मृति स्मरण शक्ति कितनों में ही जन्मजात रूप में असाधारण मात्रा में पायी जाती है। पर इसका अर्थ यह नहीं दूसरे लोग यदि चाहें तो उस विशेषता के अधिकारी नहीं बन सकते हैं। जो काम एक कर सका, जो एक को उपलब्ध हुआ वह सिद्धान्ततः दूसरे को भी मिल सकता है। असफलता- सफलता की न्यूनाधिकता की बात पुरुषार्थ पर ही टिकती है। पुरुषार्थों में अध्यात्म क्षेत्र के पराक्रम भी हैं, जो साधारण उपाय विदित होने पर उन असाधारण अवलम्बनों के सहारे सफलता के उच्च शिखर तक पहुँचने में समर्थ हो सकते हैं।

सुप्रसिद्ध वैज्ञानिक प्रोफेसर फर्डिनेण्ड वान न्यूट्राइटर ने एक ऐसे ल्यूनिथियन लड़के की रहस्यमय सामर्थ्य का वर्णन किया है जो विश्व की किसी भी भाषा के गद्य अथवा पद्य को सुनकर उसी भाषा में पूर्ण विराम, अर्द्ध विराम सहित दुहरा सकता है। अपने निष्कर्षों में उनने लिखा है कि जिन शक्तियों को सौ साल पूर्व तक हम काल्पनिक मानते थे, वही आज हमारी आँखों के सामने सत्य सिद्ध हो रही हैं।

एक बार फ्रांस की एक अदालत में एक मुकदमा पेश हुआ। अपराधी के बचने की कोई उम्मीद नहीं थी, तथापि उसकी पैरवी करने वालों ने सुप्रसिद्ध एटार्नी लुईस बनार्ड को अपना वकील चुनकर मुकदमा लड़ा। सैनिक अदालत से उसे सजा हो गई। एटार्नी ने अदालत से याचना की कि उसे मुकदमा राजा के सामने ले जाना है, अतएव सजा पाँच दिन के लिए रोक दी जाय क्योंकि राजा पाँच दिन के लिए बाहर थे। अदालत ने यह बात अस्वीकार कर दी। एटार्नी ने इस पर तर्क उपस्थित करने की आज्ञा माँगी और वह मिल गयी। उसने अपना तर्क जूरी के सामने लगातार एक सौ बीस घण्टे तक अर्थात् पूरे पाँच दिन- पाँच रात तक जारी रखा। इस बीच उसने कानून शास्त्र के दुनिया भर के पन्ने जवाबी अदालत के सामने रखकर अपनी आश्चर्यजनक बौद्धिक क्षमता का सिक्का जमा दिया। सम्भव है वह और भी बोलता पर इसी बीच राजा साहब आ गये और इस प्रकार उन्हें महाराज के सामने पेश होने का अवसर मिल गया और उसके बाद क्षमादान भी। जर्मनी के म्यूनिख नगर में एक साथ-साथ तीन हाई स्कूलों में यहूदी भाषा पढ़ाने वाले अध्यापक फ्रंज एक्सावररिक्टर 77 भाषाओं के विद्वान थे।

लार्ड मैकाले 19वीं शताब्दी के विश्व विख्यात ब्रिटिश इतिहास लेखक ने इंग्लैण्ड का इतिहास आठ जिल्दों में लिखा। उसके लिए उन्होंने दूसरी पुस्तक उठाकर नहीं देखी। सैकड़ों घटनाओं की तिथियों और घटना से सम्बन्धित व्यक्तियों के नाम उन्हें जबानी याद थे। यहाँ नहीं स्थानों के परिचय, दूसरे विषय और अब तक जितने भी व्यक्ति उनके जीवन में उनके संपर्क में आ चुके थे, उन सबके नाम उन्हें बाकायदा कण्ठस्थ थे। लोग उन्हें चलता-फिरता पुस्तकालय कहते थे।

पोर्सन ग्रीक भाषा का अद्वितीय पण्डित था, उसने ग्रीक भाषा की सभी पुस्तकें और शेक्सपियर के नाटक मुख जबानी याद कर लिये थे। ब्रिटिश संग्रहालय के सहायक अधीक्षक रिचर्ड गार्नेट बारह वर्ष तक एक संग्रहालय के मुद्रित पुस्तक विभाग के अध्यक्ष थे, इस संग्रहालय में पुस्तकों की हजारों अलमारियां और उनमें करोड़ों की संख्या में पुस्तकें थीं। श्री गार्नेट अपनी कुर्सी पर बैठे-बैठे न केवल प्रत्येक पुस्तक का ठिकाना बता देते वरन् पुस्तक की जानकारी भी देते थे। अमराकी प्रेसीडेन्ट रुजवेल्ट का सेक्रेटरी जेम्स ए. फेचरली ने अपनी याददाश्त का इतना विकास किया था कि वह 20 हजार व्यक्तियों से परिचित था और सबके बारे में सैकड़ों बातें जानता था।

स्मरण शक्ति के धनी लोगों का विवरण गिनीज बुक आफ वर्ल्ड रिकार्डस (1981) पुस्तक में छपा है। उसमें अब तक के तीव्र गणित स्मरणकर्ताओं में अग्रणी व्यक्ति ने नौ घण्टे 14 मिनट में 18013 अंकों तक की संख्या सुनाई। अब इस कीर्तिमान को बेंगलोर के एक छात्र महादेवन ने तोड़ा है। वह 3 घण्टे 40 मिनट में 31811 अंकों तक की संख्या सुनाने की विलक्षणता प्रस्तुत कर चुका है।

अरब के एक कोश लेखक अलीइब्न बगदाद में हुए। इन्होंने आँखें चले जाने के बाद भी अपना ग्रन्थ जारी रखा और केवल स्मरण शक्ति के सहारे 32 खण्ड वाला कोश तैयार किया।

प्रसिद्ध फ्राँसीसी तत्ववेत्ता आर्गेस्ट कॉमटे (19वीं सदी) अपने विचारों को लिपिबद्ध करने से पूर्व स्मृति में संग्रह कर लेते थे। सात लाख शब्दों की 4,712 पृष्ठों में छह जिल्दों वाली ‘पॉजिटिव फिलॉसफी’ नामक अपनी पुस्तक उन्होंने 1830 से लेकर 1842 ई. तक लगातार बारह वर्षों तक लिखकर पूरा किया। इस अवधि में उन्हें किसी प्रकार के नोट्स या संदर्भ ग्रन्थ देखने की आवश्यकता नहीं अनुभव हुई। मानो उनके मस्तिष्क में विचार किसी ‘प्रीरिकार्डेड कैसेट’ में अंकित करके रखे हुए थे। इस बीच न तो उनका कोई विचार खोया और न ही लिखते हुए प्रवाह का क्रम भंग हुआ। यह समूचा ग्रन्थ स्याही और कलम से कागज पर अंकित करने के पूर्व एक सुसंबद्ध क्रम में उनने अपने मस्तिष्क में अंकित कर लिया था।

मनःशास्त्री वार्टलेट का कथन है कि जिन तथ्यों को भविष्य में याद रखने की आवश्यकता समझी जाय उनमें गहरी रुचि उत्पन्न करनी चाहिए और यह विचार करना चाहिए कि स्मरण से क्या लाभ और विस्मरण से क्या हानि होने की सम्भावना है। इतना सोच-विचार कर लेने के उपरान्त यदि किन्हीं तथ्यों की परत मस्तिष्क पर जमायी जायेगी तो देर तक स्थिर बनी रहेगी और उन प्रसंगों को भूल की कठिनाई उत्पन्न प्रायः नहीं ही होगी।

विद्वान गेट्स वर्ग ने पुनरावृत्ति पर बहुत जोर दिया है। वे प्राचीन काल की तोता-रटन्त पद्धति का मजाक नहीं उड़ाते वरन् स्मरण को चिरस्थायी बनाने के लिए उपयोगी मानते हैं।

प्रो. इवेगार्ड्स का कथन है कि प्रसंगों को न केवल कल्पना चित्र के रूप में वरन् उनके तात्पर्य और फलितार्थ को भी ध्यान में रखते हुए यदि मानस पटल पर जमाया जाय तो जल्दी याद भी हो जायेंगे और देर तक टिकाऊ भी बने रहेंगे। आवश्यकतानुसार उनको स्मरण करने में किसी प्रकार की कठिनाई न होगी।

मिश्र के बादशाह नासर के पास 20 हजार गुलाम थे। उसे उनके नाम ही नहीं जन्म स्थान, जाति उम्र और पकड़े जाने का स्थान भी जबानी याद रहता था। कब कौन-सा गुलाम कितने दाम का खरीदा बेचा गया था, यह भी उन्हें बिना भूल-चूक के याद था।

राजा भोज के दरबारी एक श्रुतिधर नामक विद्वान् का उल्लेख मिलता है, जो एक घड़ी (24 मिनट) तक सुने हुए प्रसंग को तत्काल ज्यों का त्यों सुना देते थे।

मनोविज्ञानी कार्ल सीशोर का कथन है कि औसत व्यक्ति अपनी स्वाभाविक स्मरण शक्ति का मात्र दस प्रतिशत प्रयोग करता है। 90 प्रतिशत तो ऐसे ही मूर्छित और अस्त-व्यस्त स्थिति में पड़ी रहती है। फलतः मनुष्य मन्द बुद्धि और मूर्ख स्तर का बना रहता है। यदि प्रयत्न किया जाय तो ऐसे लोग अपने को बौद्धिक दृष्टि से कहीं अधिक सक्षम बना सकते हैं। विकसित मस्तिष्क वालों को भविष्य में और भी अधिक तीक्ष्णता उत्पन्न कर लेने की पूरी-पूरी गुँजाइश है।

दक्षिण अफ्रीका के फील्ड मार्शल स्मट्स भी ऐसे ही विलक्षण स्मृति के धनियों में से एक थे। उनकी लाइब्रेरी में अन्यन्त उच्चकोटि की दस हजार पुस्तकें संग्रहित थीं। स्मट्स को वे सभी पुस्तकें अक्षरशः याद थीं। बात-चीत के बीच-बीच में वे अक्सर उनके कई अंश पृष्ठ संख्या, पुस्तक संख्या, लेखक आदि को पूर्ण विवरण सहित प्रस्तुत करते रहते थे।

डेनमार्क शहर में एक बार भयंकर आग लगी। वहाँ के एक बैंक के सारे बही-खाते तथा कागजी नोट भी इसी अग्निकाण्ड में स्वाहा हो गये। केवल सोने-चाँदी जैसी धातुएँ ही बची रह गईं। बैंक के सामने जमाकर्ताओं की भीड़ लग गयी। तभी उक्त बैंक के एक क्लर्क ने उस बैंक के सभी 2000 जमाकर्ताओं की सही-सही जमा राशि का मुँह जबानी हिसाब-किताब कर दिया। इतना ही नहीं उसके द्वारा बताये गये विवरण इतने सही थे कि सभी व्यक्ति बैंक के भुगतान से पूर्णतः सन्तुष्ट होकर गये। इस कार्य के पुरस्कार स्वरूप उसे उस बैंक समूहे का डायरेक्टर बना दिया गया।

थॉमस कार्लाइल ने “दि फ्रेंच रिवोल्यूशन” नामक बहुत बड़ा हस्तलिखित पुस्तक लिखी थी। उसे वह पुस्तक संशोधन के लिए जॉन स्टुअर्ट मिल को दी। वह पुस्तक मिल के घर में नौकर ने लापरवाही से चूल्हे में जला दिया। जब यह बात मिल ने कार्लाइल को बतायी तो कार्लाइल बिना रोष, चिन्ता या हताश हुए उस पुस्तक के पुर्नलेखन में जुट गये तथा उसको संशोधित रूप में लिखकर तैयार कर दिया।

इंग्लैंड निवासी एक अन्धे व्यक्ति फिल्डिंग को दस हजार व्यक्तियों के नाम याद थे। इतना ही नहीं वह आवाज सुनकर उस व्यक्ति का नाम बता देता था। इसी प्रकार की विलक्षणता एक और माण्टुगुनस नामक अँग्रेज में थी। वह जन्माध था। पच्चीस वर्ष तक उसने पोस्टमैन का काम किया घर-घर जाकर चिट्ठी बाँटता था। उसके बाँटने में कभी गलती नहीं पकड़ी गई। वह पत्रों को सिलसिले से लगाता था और बाँटने से पहले दूसरों की सहायता से नाम और क्रम मालूम कर लेता था। इतने भर से हर दिनों सैकड़ों चिट्ठियाँ बांटने में उसकी स्मरण शक्ति सही काम दे जाती थी।

जर्मन इतिहास में स्मरण शक्ति की प्रखरता के लिए विद्वान नेबूर प्रसिद्ध है। यह ख्याति सर्व प्रथम तब मिली जब वे एक दफ्तर में क्लर्क थे। कागजों में संयोगवश आग लग गई। इस पर नेबूर ने सारे रजिस्टर और जरूरी कागज-पत्र मात्र स्मरण शक्ति के आधार पर ज्यों के त्यों बना दिये। इसके बाद वे अपनी स्मृति की विलक्षणता के एक से एक बड़े प्रमाण देते चले गये और उस देश के प्रख्यात लोगों में गिने गये।

जर्मनी में ही म्यूनिख की नेशनल लाइब्रेरी के डायरेक्टर जोनफ वर्नवर्ड डोकन को भी ऐसी ही ख्याति है। उन्हें आती तो कितनी ही भाषाएँ थीं, पर 9 भाषाओं पर उनका पूरा अधिकार था। उन्हें पत्र व्यवहार बहुत करना पड़ता था। इसके लिए उनके पास नौ विभिन्न भाषाओं के नौ अलग-अलग सेक्रेटरी थे। वे सबको एक साथ बिठा लेते थे और सभी को पत्र लिखाते जाते थे। इतना ही नहीं उन्हें पूरी बाइबिल अक्षरशः कण्ठस्थ थी। प्रसंग के अनुसार वे कहीं से भी उसे सुना सकते थे।

लिथूयानिया निवासी रेबी एलिजा के सम्बन्ध में कहा जाता है कि उसे विचित्र मानसिक शक्ति प्राप्त थी, पर नियन्त्रण न होने के कारण वह शक्ति जीवन में कुछ काम न आई। उसने अपने जीवन में दो हजार से अधिक पुस्तकों को एक बार पढ़कर याद कर लिया था। कोई भी पुस्तक लेकर किसी भी पन्ने को खोलकर पूछने पर वह उसके एक-एक अक्षर को दोहरा देता था।

जर्मनी के राजा की एक लाइब्रेरी प्रसा में थी। इसके लाइब्रेरियन मैथुरिन बेसिरे की आवाज सम्बन्धी याददाश्त अद्भुत थी। एक बार उसकी परीक्षा के लिए बारह देशों के राजदूत पहुँचे और उन्होंने अपनी-अपनी भाषा में बारह वाक्य कहे। जब वे चुप हो गये तो बेसिरे ने बारहों भाषाओं के बारहों वाक्य ज्यों के ज्यों दोहरा दिये।

बेंजामिन शुल्स ने बाइबिल का अनुवाद तीन भारतीय भाषाओं में किया। उन्हें सौ भाषाओं को पढ़ना बोलना आता था। ईसाई प्रार्थना स्रोत के उन्हें 215 भाषाओं के गीत अनुवाद याद थे। वे यथा अवसर उन्हें भावनापूर्वक गाते थे और उन भाषाओं के जानकारों पर अपने भाषा ज्ञान की छाप डालते थे।

फ्राँस का प्रधान मन्त्री लियान मैम्ब्रेज स्मरण शक्ति का धनी था। उसे विद्रोही नेताओं के अनेक भाषण जबानी याद थे। वह पिछले दस साल के बजटों में कोई भी बात अंक गणनाओं के साथ सुना सकता था।

हैरो स्कूल- इंग्लैंड के एक अध्यापक हेमरी जोसफ डूरी ने विद्वान लूकान के लैटिन भाषा में लिखे हुये सम्पूर्ण ग्रन्थ कण्ठस्थ कर रखे थे। इन ग्रन्थों की पृष्ठ संख्या 2600 थी, एक बार 16 मील का सफर करते समय साथियों के मनोरंजन के लिए फरसेलिया नामक काव्य ग्रन्थ के 8000 छन्द स्मरण शक्ति के आधार पर यथावत् सुनाये थे।

बारहवीं सदी में फ्रांस की सेना का वार्षिक विवरण वहाँ के अफसरों के नाम और स्तर तथा जन्म तिथियों समेत प्रकाशित होता था। यह बड़ा ग्रन्थ हर साल छपता था। सन् 1856 की वार्षिक रिपोर्ट मिलिट्री होटल के एक बैरा को अक्षरशः याद थी। उसका नाम था- फैलिक्स मार्टिनी। उस वर्ष के विवरण पुस्तक में 16208 अफसरों के विस्तृत विवरण छपे थे। पूछने पर मार्टिनी किसी भी अफसर का पूरा उल्लेख यथावत् सुना देता था।

जेनेवा स्विट्जरलैण्ड के पियरे माउशोज नामक व्यक्ति ने 17 जिल्दों में प्रकाशित फ्रेंच इनसाइक्लोपीडिया पूरी तरह याद कर रखी थी। उसमें 18 लाख शब्द थे।

इटली (रोम) का राजा हैडियन बहुमुखी प्रतिभा का धनी था। वह एक साथ बातचीत करते हुए लिखता भी जाता था लिखाता भी जाता। तीनों सिलसिले में कहीं चूक नहीं होती थी। उसे अपने राज्य के सभा पेन्शन प्राप्त कार्यकर्ताओं के पूरे पते याद थे।

इटली के फारेन्स कस्बे का रहने वाला मैग्लयाविने पुस्तकालयाध्यक्ष था। उसे अपने पुस्तकालय के 30 हजार पुस्तकों के नाम, मूल्य, प्रकाशक ही नहीं यह भी याद था कि वह पुस्तकालय के किस आलमारी में किस नम्बर पर रखी है।

दिल्ली के प्रसिद्ध न्यायाधीश जस्टिस हरनामदास को भारतीय दण्ड संहिता की सभी धारायें आदि से अन्त तक कॉमा, पूर्ण विराम सहित अक्षरशः याद थीं।

अब मस्तिष्क की अद्भुत स्मरण शक्ति की तुलना में इलेक्ट्रानिक मस्तिष्क (कम्प्यूटर ब्रेन) बहुत आगे हो रहे हैं किन्तु भारत की शकुंतला देवी नामक महिला जटिल गणनाओं के सवाल को पूरा होते ही हल करके रख देती हैं। तेज से तेज कम्प्यूटर भी उसकी विलक्षणता के आगे-पीछे होते देखे गये हैं। विश्व के मूर्धन्य गणक उनकी समता को विश्व का अद्वितीय नमूना मानते हैं।

मानवी मस्तिष्क असीम क्षमताओं का भण्डार है। इतना सशक्त साधन उपलब्ध होते हुए भी कोई विरले ही उसका कहने लायक उपयोग कर पाते हैं। अधिकाँश तो पेट-प्रजनन में काम आने वाले क्षेत्र को ही सक्षम रख पाते हैं। विस्मृति के कारण अनेक प्रकार की हानियाँ उठाने वाले यह भी समझें कि अपने असीम शक्ति भण्डार मनःसंस्था के महत्व को विस्मृति किये रहना उसे जागृत एवं सक्षम बनाने के लिए प्रयत्न न करना परले सिरे का दुर्भाग्य है। जिनके लिए सम्भव हो वे मानसिक क्षमताएँ जगायें और उस स्तर का लाभ कमायें जिसके लिए लोग तरसते रहते हैं।


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