प्रज्ञा सम्मेलनों का आयोजन एवं संचालन एक और महत्वपूर्ण दायित्व

January 1983

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व्यक्तिगत रूप से हर प्रज्ञा परिजनों को बसन्त की इस बेला में करने के लिए जो कहा जा रहा है उसकी चर्चा पिछले लेख में हो चुकी। इसी प्रयोजन के लिए दूसरा सामूहिक कार्यक्रम है- प्रज्ञा सम्मेलनों की व्यापक व्यवस्था। इस आधार पर परिजनों को संगठित होने, मिल-जुलकर काम करने, अन्यमनस्कता को सक्रियता में बदलने का अवसर मिलता है और जन-मानस को प्रशिक्षित करने का असाधारण अवसर भी प्रज्ञा पीठों के लिए यह एक अनिवार्य कर्तव्य घोषित किया गया है कि वे वर्ष में एक बार वार्षिकोत्सव के रूप में एक उमंग भरा आयोजन किया करें। इसके लिए शांति-कुंज में प्रचार मण्डलियाँ जीप गाड़ियों द्वारा भेजी जाती हैं। इसमें पाँच प्रचारकों का एक जत्था होता है जो संगीत मंडली की तरह उद्बोधन करते और युगान्तरीय चेतना से लोक-मानस को अनुप्राणित करते हैं। इसी जीप में एक चित्र प्रदर्शनी भी रहती है जो आगंतुकों के लिए एक आकर्षण का चर्चा का विषय रहती है। इस वर्ष जहां भी ये सम्पन्न हुए हैं निष्क्रियता के स्थान पर गतिशीलता उभरी है। सर्वत्र इनकी उपयोगिता समझी गई और उनके हर वर्ष होते रहने का सुनिश्चित निर्धारण बन गया है। यह शृंखला अब सदा सर्वदा चलती रहने वाली है। इन आयोजनों के साथ प्रज्ञा पुराण कथा क्रम रहने में उन्हें हर वर्ष होते रहने की बात में और भी अधिक आकर्षण बना रहेगा।

प्रज्ञा पीठों की तुलना में स्वाध्याय मंडल प्रायः 10 गुने अधिक होंगे। वार्षिक आयोजन उनके भी होने चाहिए। इसके लिए जीपों के स्थान पर टैम्पो खरीदे जा रहे हैं और पाँच प्रचारकों के स्थान पर तीन गायक वक्ताओं के मंडल गठित किये जा रहे हैं। एक छोटी चित्र प्रदर्शनी भी तैयार की गयी है जो टैम्पो में भेजी जा सकेगी। जहाँ स्वाध्याय मंडल बन चुके हैं या बनने जा रहे हैं उनके सूत्र संचालकों से कहा गया है कि अपनी स्थापना का उद्घाटन आयोजन इसी वर्ष रखें और भविष्य में उन्हें वार्षिकोत्सवों के रूप में सम्पन्न करते रहें।

इस समूचे आयोजन अभिमान के लिए ऐसे युग गायकों की कमी पड़ रही है जो मिशन से संबद्ध भी रहे हों साथ ही गायन वादन में प्रचारक स्तर की योग्यता भी रखते हों। जीपों वाले बड़े सम्मेलनों में और टैम्पो वाले छोटे आयोजनों में इस स्तर के परिजनों का विशेष रूप से आह्वान किया गया है। उन्हें मात्र संगीत ही नहीं गाना है वरन् वार्तालाप में मुखर होने के अतिरिक्त अन्यान्य प्रसंगों को भी सफल बनाने योग्य सक्रियता एवं प्रतिभा से युक्त होना है।

कहना न होगा कि इस स्तर के उत्साही और सक्षम लोगों की अपने परिवार में कमी नहीं जो उपरोक्त उत्तरदायित्व का भली प्रकार निर्वाह न कर सकें। पाठकों, परिजनों में से जो ऐसे हों अथवा उनके निकट संपर्क में भी इस स्तर के व्यक्ति हों वे शान्ति कुंज हरिद्वार से पत्र व्यवहार संपर्क साधें। आवश्यक ट्रेनिंग के उपरान्त प्रचारक मंडलियों में सम्मिलित करके उन्हें देशव्यापी कार्यक्रमों पर भेजा जायगा।

जिनके पास अपनी निर्वाह व्यवस्था नहीं है उनके लिए औसत भारतीय स्तर की ब्राह्मणोचित व्यवस्था का भी प्रबन्ध है। छोटा परिवार होने पर शांति-कुँज में उसके रहने तथा सद्गृहस्थ जैसी अन्य आवश्यकताओं की पूति की व्यवस्था व्यक्तिगत परामर्श के आधार पर यहां बना दी जाती है कोई वेतनमान तो नहीं है पर निर्वाह क्रम का एक स्तर निर्धारित होना आवश्यक है। इन पंक्तियों में जहाँ बसन्त पर्व पर स्वाध्याय मंडलों की स्थापना- उनके उद्घाटन आयोजनों की व्यवस्था करने के लिए प्राणवान परिजनों को प्रेरणा दी जा रही है वहाँ एक अनुरोध उनसे यह भी किया जा रहा है कि प्रचारक स्तर के प्राणवानों की आवश्यकता पूरी करने जैसी सामयिक आवश्यकता पर भी अविलम्ब ध्यान दें।


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