बहुत सुना है रूढ़िवाद को, कान थक गए सुनते-सुनते, कब तक सहन करेंगे यह सब ऊब गया मन गुनते-गुनते!! रटी रटाई, रोली चंदन, धूप अगर की बात पुरानी, व्यष्टि भावना भरी साधना, जगह-जगह पर यही कहानी!!
गंगा ज्ञान शुष्क है भाई निष्ठा को हम कैसे जानें हर घर में है निशा अंधेरी, सही राह कैसे जानें
सद्विचार, सद्कर्म, धारणा, सद् है इस कलियुग में रोया, मानव-मानव का ही दुश्मन, अंतराल तू भी है सोया
करो प्रतिज्ञा परिष्कार की,- उनमें प्राण भरेंगे अब हम-
युग निर्माण करेंगे अब हम!!
गंगा ज्ञान तभी आवेगी, भागीरथ जब बन पायेंगे, अपने श्रम, सौरभ की जब हम, नव बसंत श्री दिखलायेंगे!!
नई दिशा निर्धारित होगी नए मार्ग ही चुनना होगा, दुष्प्रवृत्ति, मद, लोभ, मोह के कांटों को मुड़ना होगा!!
महा वासना के पर्वत को निग्रह से तोड़ा जाना है, अन्तः में धर शमन, दमन को-इच्छा को मोड़ा जाना है!!
धवल साधना, नव उपासना, महाशक्ति की अब करनी है, नई शक्ति, अभिव्यक्ति, प्रेरणा, जगती के मरु में भरनी है!!
अब तो केशरिया वाना है, निश्चित त्राण करेंगे अब हम!
युग निर्माण करेंगे अब हम!!
बलिदानों की परम्परा में, नव इतिहास बनाएंगे हम, भारतीय गरिमा ललाट पर गौरव चांद लगाएंगे हम!!
हर घर गली, कुटी राहों पर ज्ञान धर्म के दीप जलाना, है कर्तव्य हमारा पहिला- सच्ची मानवता अपनाना!!
यही पुण्य व्रत, यही तपस्या, यही साधना अब है मेरी उठो सभी परिजन अब जागो बजती महाकाल की भेरी!!
नव युग के इस ब्रह्म काल में, गति का प्राण भरेंगे अब हम
युग निर्माण करेंगे अब हम!!
-राजेन्द्रकुमार पाण्डेय
*समाप्त*