शक्तियाँ सँजोयें, खोयें नहीं

April 1979

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मनुष्य शारीरिक, मानसिक, बौद्धिक एवं आत्मिक शक्तियों का भण्डार है। इन्हीं के बलबूते पर आज उसने ज्ञान, विज्ञान में आश्चर्यजनक प्रगति की है-आत्मा, परमात्मा जैसे सूक्ष्म अध्यात्म तत्वों का अनुशीलन किया है। जिन लोगों ने इस शक्ति को अपव्यय से बचाकर एक ही दिशा में लगा दिया, उन्होंने महान सफलताएँ प्राप्त की। वे ऋषि, वैज्ञानिक, विद्वान, महापुरुष तथा समाज सेवी के रूप में प्रसिद्ध हुए और विश्व मानव को बहुत अनुदान दिया।

यह शक्ति सभी मनुष्यों में है। अनजाने में हम उसका अपव्यय करते रहते हैं तथा उसका सदुपयोग नहीं कर पाते। कुछ व्यक्ति बैठे-बैठे यों ही अपनी टाँगें हिलाते रहते है। कुछ बैठे-बैठे टेबल पर या अपने अंगों पर ही तबला बजाने जैसी क्रिया करते रहते हैं। कुछ अपनी उँगलियाँ तोड़ते हैं, कुछ सिर झटकते हैं, कुछ कन्धे उचकाते हैं तो कोई सीटी बजाते हैं। उन लोगों के पास करने को कुछ काम नहीं है, पर उन्होंने अपनी शक्ति को खर्च करने का आवश्यक काम हाथ में ले लिया है। हम में से प्रत्येक में ऐसी आदतें हो सकती हैं, जिनकी ओर कभी हमारा ध्यान नहीं जाता।

यों देखने में यह साधारण-सी बात हो सकती है किन्तु शक्ति का थोड़ा-थोड़ा अपव्यय भी जीवन भर में जाकर के कितना बड़ा हो जाता है। बूँद-बूँद करके घड़ा भर जाता है और बूँद-बूँद करके वह खाली भी हो जाता है। यह क्रिया-कलाप बूँद-बूँद करके घड़ा खाली करने जैसा ही है।

इन क्रिया-कलापों से कितनी शारीरिक तथा मानसिक शक्ति का अपव्यय होता है, इसका हमें भान ही नहीं रहता। यह क्रम अपने आप होता है इस कारण हम उस पर ध्यान न दें किन्तु हम जो कुछ करना चाहते है। उसके लिये सर्वप्रथम मस्तिष्क को क्रियाशील होना पड़ता है। वह ज्ञान तंतुओं को आदेश देता है कि अमुक काम करने के लिये साँस पेशियों तक मेरा आदेश पहुंचाओ। ज्ञान तन्तु उस आदेश को माँस-पेशियों तक पहुंचाते है। फिर उस आदेश की शिरोधार्य करके वह वैसा ही कार्य उपस्थित करती है।

इस प्रकार के कार्य आगे चलकर बार-बार किये जाने से आदत बन जाते हैं। ये आदतें प्राकृतिक न होकर कृत्रिम होती हैं। इनके कारण जिस शक्ति का कोई उप-योग हो सकता था उसे व्यर्थ ही खो दिया जाता है। आवश्यक कार्यों के लिये जब शक्ति का अभाव हो जाता है तो फिर व्यक्ति थकने लगता है। पहले ही अपव्यय न किया जाय तो थकान का प्रश्न ही न उठे।

इस प्रकार मन मस्तिष्क पर भी भावी आशंकाओं तथा निरर्थक कल्पनाओं का भार हम दिन भर ढोते रहते हैं जिनकी आवश्यकता नहीं होती। अपनी कामनाओं को इतना बढ़ा लेते है कि शरीर तन्त्र को एक क्षण का भी विश्राम नहीं मिल पाता। स्नायुविक तनाव बढ़ने का यही कारण होता है।

शारीरिक शक्ति का अपव्यय रोका जा सके तथा मानसिक उद्वेगों से बचा जा सके तथा मनुष्य एक शान्त सरोवर की तरह निस्पन्द बना रहकर थोड़े ही समय में पूर्ण विश्राम कर सके तो खोयी हुई शक्ति पुनः प्राप्त की जा सकती है। उसके लिए यह आवश्यक नहीं कि बिस्तर बिछाकर ही लेटा जाय। रात्रि में तो शयन करके आपनी बैट्री को चार्ज किया ही जाता है, पर दिन में भी ऐसे अवसर कम नहीं आते जब व्यक्ति कुछ समय तक अपने इन अवयवों को पूर्ण विश्राम देकर उनकी शक्ति को पुनः अर्जित कर सकने का अवसर प्रदान कर सकता है।

अनजाने ही हम अपनी इस शक्ति का अपव्यय करते रहते है इससे हमें बचना ही चाहिये।


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