वाल्टर अपनी पत्नी के साथ चाय की टेबल पर बैठा हुआ था। श्रीमती मैसी कप में चाय छान रही थीं। चाय उड़ेल कर उसने दूध मिलाया ही था कि वह बड़बड़ाने लगी-’किसी होटल के मैनेजर को गोली से मार कर एक हत्यारा कार में चढ़ कर भागा जा रहा है। दो मोटर साइकिलें उसका पीछा कर रही हैं। हत्यारे ने पीछा करने वालों पर भी गोली चलायी उनमें से एक सवार मारा गया। हत्यारा मोटर छोड़ कर अधबनी झोंपड़ी में घुस गया......।’
‘यह बुदबुदाना जारी ही था कि श्रीमती मैसी के हाथ से दूध का बर्तन छूट गया और वह अर्धमूर्छित होकर टेबल पर ही लुढ़क-सी गयीं। वाल्टर को कुछ भी समझ में न आया कि क्या करें? उपलब्ध चिकित्सा उपचार के बाद जब उसकी पत्नी होश में आयी तो उसने बताया कि वह ठीक यही दृश्य किसी फिल्म की तरह चाय की प्याली में देख रही थी।’
यह घटना मार्टिन इबोन ने अपनी पुस्तक “डू एकस-पीरिन्स इन प्रोफेसी” में लिखी है। लेखक ने इस तरह की और भी कई प्रामाणिक घटनाओं का उल्लेख करते हुए यह सिद्ध किया है कि मनुष्य के भीतर अद्भुत, अलौकिक और विलक्षण क्षमतायें हैं। उन क्षमताओं के माध्यम से भूत,भविष्य, वर्तमान को देश काल की सीमाओं से परे जा कर भी देखा व जाना जा सकता हैं।
वाल्टर ने इस घटना को कोई विशेष महत्व नहीं दिया, पर मैसी के मस्तिष्क पर इसका प्रभाव ज्यों का त्यों बना हुआ था। वह अपने पति से बार-बार यही कहती कि या तो यह घटना हो चुकी है अथवा घटने वाली है। अतएव इस बारे में पुलिस को सूचित कर देना चाहिए। वाल्टर इसे भ्रम या मनोग्रंथि का विकार कह रहा था जबकि मैसी बार-बार कर रही थी। दो दिन तक दोनों में विवाद हुआ, अन्ततः वाल्टर ने मैसी की बात रख कर इस विवाद से छुटकारा पा लेने का निर्णय किया। वे लोग पुलिस दफ्तर पहुंचे और स्वप्न में देखे हत्यारे की हुलिया तथा पोशाक बताते हुए सारी बात कह दी। पुलिस अधिकारियों ने वाल्टर और मैसी को सनकी समझा तथा रिपोर्ट फाइलों में दबा दी गयी।
अभी दो सप्ताह भी न बीत पाये थे कि ठीक ऐसी ही घटना का विवरण दैनिक समाचार पत्रों में छपा। कैलीफोर्निया के एक होटल मैनेजर की तिजोरी लूटने और गोली मार देने का विवरण सचमुच से अक्षरशः मेल खाता था। हत्यारा कार में बैठ कर ही भागा था। दो पुलिस मैनों ने मोटर साइकिल पर उसका पीछा किया जिनमें से एक हत्यारे की गोली से मारा गया। बाद में वह हत्यारा लूट के धन समेत एक अधबनी झोपड़ी में पकड़ा गया।
यह समाचार भी बाद में अखबारों ने प्रकाशित किया कि किस प्रकार श्रीमती मैसी को इस हत्या की दुर्घटना का पूर्वाभास हो गया था तथा वह घटना अक्षरशः सत्य निकली। इस घटना से मार्टिन इबोन ने यही निष्कर्ष निकाला है, कि मनुष्य ने अतींद्रिय शक्तियाँ की सम्भावनायें बीज रूप से विद्यमान हैं जो कभी-कभी इस रूप में भी प्रस्फुटित हो जाती हैं। मनुष्य यों अन्य प्राणियों की तरह ही एक जीवित पशु मात्र है उसमें बोलने और सोचने की अतिरिक्त विशेषतायें भर विद्यमान हैं।
कितनी ही बातों में तो वह अन्य जीवों की तुलना में पिछड़ा हुआ भी है, फिर भी उसे सृष्टि का मुकुटमणि परमात्मा का युवराज बनने का सौभाग्य प्राप्त हुआ है उसका प्रधान कारण यही है कि परमात्मा ने अपने इस पुत्र में कितनी ही अलौकिक शक्तियाँ और अद्भुत विशेषतायें रोम-रोम में कूट-कूट कर भर दी है। इन्हीं शक्तियों ने उसे स्नेह, सहकारिता, सद्भाव,संयम, परमार्थ जैसे सद्गुण प्रदान किये और उन्हीं के बल पर वह अनेक भौतिक तथा आन्तरिक समृद्धियों तथा सिद्धियों का अधिपति बन सका है। सृष्टि के अन्य प्राणियों में इस प्रकार के सद्गुण कहीं-कहीं नाम मात्र को ही देखे जाते हैं। वह मनुष्य ही है जो इनके बल पर मनस्विता तथा तेजस्विता अर्पित करता है। परमात्मा ने मनुष्य में ही इस प्रकार की सम्भावना कूट-कूट कर भर रखी है कि वह आदर्शवादी उत्कृष्टता अपनाकर-उपासना और साधना का सहारा लेकर चाहे तो इतना ही ऊँचा उठ सकता है जहाँ पहुँचने पर उसे सिद्ध पुरुष एवं देवात्मा कहा जा सकता हैं।
अतीन्द्रिय शक्तियों के यदा-कदा दिखाई पड़ने वाले चमत्कार भी मनुष्य को अन्य प्राणियों की तुलना में श्रेष्ठ सिद्ध करते हैं। दूसरे प्राणी खाना, सोना और जगना भर जानते हैं अतः उनके क्रिया-कलाप भी वही तक सीमित रहते है जितनी कि उनकी क्षमता होती है; परन्तु मनुष्य के भीतर निहित उच्चस्तरीय जागृत आत्मा इन महिमामय झलकियों के रूप में बिजली की तरह कौंधती भी रहती है।
यदि इस शक्तियों का विधिवत् विकास किया जा सकें तो जो कुछ मनुष्य ने भौतिक व मानसिक दृष्टि से उपार्जित विकसित या है उससे कही अधिक सिद्धियाँ, सफलतायें और सामर्थ्य अर्जित कर सकता है। अभ्यास और साधनाओं के द्वारा इन सामर्थ्यों को विकसित करने के उदाहरण भारतीय योगी ऋषियों में सामान्य रूप से देखने को मिलते हैं। परन्तु चेतना और मानवीय सत्ता की शक्ति सामर्थ्य किसी देश-प्रदेश तक सीमित नहीं हैं सृष्टि के नियम जिस प्रकार सर्वत्र लागू होते हे उसी प्रकार चेतना भी अपना प्रभाव व सामर्थ्य हर कहीं दिखाती है। आवश्यकता उसे विधिवत् विकसित करने भर की है।
हाल ही में इंग्लैंड में चमत्कारी क्षमता सम्पन्न जादूगर राबर्ट हडची की जन्म शताब्दी मनायी गयी। उन्नीसवीं शताब्दी के अन्तिम तथा बीसवीं शताब्दी के प्रारंभिक दशकों में राबर्ट हडची अपने समय का अद्भुत व्यक्ति था। पूरी सावधानी और मजबूती के साथ जकड़ी गयी बेड़ियों को वह उसी क्षण कच्चे धागे की तरह तोड़ फेंकता था। कमरे में बन्द करके बाहर से ताला लगाने पर भी वह सबके सामने बाहर निकल आता था। इंग्लैंड में जब उसके इन करतबों की धूम मच रही थी तो तब के प्रख्यात समाचार पत्र ‘डैलीमिरर’ ने उसकी इन शक्तियों के प्रति आशंका व्यक्त की तथा कुछ प्रश्न उठाये। राबर्ट हडची ने इन आपत्तियों की चुनौती को स्वीकार किया और हजारों लोगों की उपस्थिति में एक सुरंग में घुसकर पूरी तरह बन्द हो जाने के बाद बाहर निकलने का प्रदर्शन किया। इस पर भी कतिपय आशंकाएँ शेष रहीं तो तुरन्त एक ताजा गड्ढा खुदवाया गया और हडची उसमें उतर गया। उतर जाने के बाद घण्टे भर में ही उस गड्ढे को मिट्टी से अच्छी तरह पाट दिया गया तथा ऊपर से बन्द कर दिया गया। हडची ने पूर्व निर्धारित कार्यक्रम के अनुसार अच्छी तरह सीमेण्ट कर देने के बाद तीस सेकेंड में ही बाहर आ जाने की घोषणा की थी। सचमुच वह इससे भी कम समय में बाहर आ गया। गड्ढे के ऊपर किये गये सीमेण्ट में कहीं भी कोई दरार या छिद्र तक नहीं था। पुनः उस गड्ढे को खोदा गया तो वहाँ केवल वह संदूक मिला जिसमें हडची को बन्द कर गड्ढे में उतारा गया था।
राबर्ट हडची ने मरने से पूर्व एक वसीयत लिखी थी और कहा था कि इसमें उसकी तमाम चमत्कारी क्षमताओं के रहस्य उसने बता दिये हैं। प्रतिबंध यह था कि इस वसीयत को सन 1974 में खोला जाय। इसी वर्ष हडची की सौवीं वर्ष गाँठ मनायी गयी और वह वसीयत प्रकाशित की गयी तो उसमें इतना भर लिखा था कि-योग साधनाओं के अभ्यास द्वारा इस प्रकार करतब कोई भी कर सकता है।
योग विद्या के प्राचीन ग्रन्थों में इस प्रकार की सिद्धियों के अनेकानेक विवरण मिलते हैं। उपासना साधना द्वारा इस प्रकार की सिद्धियाँ अनायास ही मिल जाने के उल्लेख भी मिलते है। निस्सन्देह साधना तपस्या से कोई भी व्यक्ति इस प्रकार की असाधारण शक्ति प्राप्त कर सकता है। परन्तु इस बात के कोई कारण नहीं मिल सकें हैं कि किन्हीं-किन्हीं व्यक्तियों में ये विशेषतायें अनायास ही क्यों उत्पन्न हो जाती हैं?
स्वप्नों के द्वारा भविष्य के पूर्वाभास को घटनायें आमतौर पर प्रकाश में आती हैं। प्रसिद्ध विज्ञानवेत्ता जे.वी. राइन और उनकी पत्नी लुई ईण्टाइन ने मिल कर इस सम्बन्ध में वर्षों तक शोध की कि कईबार स्वप्नों में इस प्रकार के संकेत क्यों मिलते हैं जिनमें भावी घटनाओं का आभास होता है। डा. राउन विज्ञान अन्वेषण के दूसरे क्षेत्र में कार्यरत थे; परन्तु जब उनकी पत्नी ने ऐसी दर्जनों घटनाओं का विवरण सुनाया जिनसे स्वप्नों की सार्थकता सिद्ध होती थी तो उनने अपने अन्वेषण का क्षेत्र बदल कर स्वप्नों में पूर्वाभास को अपना विषय बना लिया और लगभग 4000 ऐसी घटनाओं का संग्रह प्रकाशित किया जिनमें स्वप्नों के माध्यम से लोगों की भवितव्यता की पूर्व सूचना प्राप्त हुई थी।
डा. राउन ने अपने अन्वेषण पर कितनी विज्ञान गोष्ठियों में भाषण दिये और इस संदर्भ में और अधिक शोध करने की आवश्यकता प्रतिपादित की। ब्रिटिश ब्राडकास्टिंग कारपोरेशन ने उनके कई भाषण भी प्रकाशित किये। उनके भाषणों में मुख्यतः तीन शोध निष्कर्ष रहते थे। एक यह कि मनुष्य के भीतर ऐसी कोई अविज्ञात चेतना विद्यमान है जो सुदूर क्षेत्र तक अपना सम्बन्ध सूत्र बनाये हुए है और वह उपयुक्त अवसरों पर रहस्य-मयी घटनाओं का उद्घाटन करती है। दूसरा यह कि परस्पर घनिष्ठ व्यक्तियों में सहज ही यह आदान-प्रदान हो सकता है। तीसरा यह कि इस प्रकार की अतीन्द्रिय शक्तियाँ महिलाओं को अपेक्षा पुरुषों में अधिक रहती हैं। विशेष रूप से उनमें जो धार्मिक रुचि लेती हैं।
यह चमत्कारी क्षमतायें अद्भुत, विलक्षण हैं और कोई भी इन्हें प्राप्त करने का लोभ संवरण नहीं कर सकेगा। परन्तु भारतीय ऋषियों ने इस सिद्धियों को दूसरे दृष्टिकोण से देखा है। महर्षि पातंजलि ने योगदर्शन में इस प्रकार की सिद्धियाँ का उल्लेख करते हुए कहा है कि “ये सिद्धियाँ समाधि में विघ्न हैं तथा व्युत्थान में सिद्धि है, (विभूतिपाद 39)
अर्थात्-ये जीवन का अन्तिम लक्ष्य नहीं है। जैसे दरिद्र मनुष्य थोड़ा-सा द्रव्य पाकर ही सन्तुष्ट हो जाता है उसी प्रकार विभ्रम ग्रस्त पुरुष ज्ञान से पहले प्राप्त होने वाली इन सिद्धियों में रम जाता है और हर्ष, गौरव तथा गर्व से अभिभूत होकर अपने अन्तिम लक्ष्य-समाधि, परमशान्ति से विमुख हो जाता है। इन सिद्धियों की एक ही उपयोगिता बतायी गयी है कि मनुष्य इनके माध्यम से अपनी अद्भुत सामर्थ्य को पहचाने और विराट् चेतना का ही एक अंश होने की अनुभूति करे। उसे प्राप्त करने के लिए प्रेरित हो
उसी से शास्त्रकारों ने इन सिद्धि सामर्थ्यों में न उलझते हुए सत्य की खोज में अनवरत लगे रहने का निर्देश दिया है यदा-कदा यह चमत्कारी क्षमतायें झलकती दिखाई देती हैं तो उसका भी कुल इतना ही उपयोग है कि मनुष्य अपने आपको परमपिता परमात्मा का उत्तराधिकारी होने की बात अनुभव कर सके और स्वयं भी उतना ही समर्थ, शक्तिमान तथा संसिद्ध होने की बात स्वीकार कर सके।
परमात्मा ने मनुष्य को परिपूर्ण और सामर्थ्यवान शरीर दिया हैं। उसे अलौकिक एवं अतींद्रिय क्षमताओं की सम्भावनायें भी बीज रूप में प्रदान की हैं तथा इस सम्भावना के द्वार भी हर किसी के लिए खोल दिये हैं कि वह उन दिव्य शक्तियों को प्रयत्नपूर्वक अर्जित कर सकता है। इतने पर भी कोई व्यक्ति अपने यथार्थ स्वरूप को न पहचान सके तो दोष किसका है। कोई सम्पन्न और प्रभावशाली व्यक्ति अपनी सन्तान में आत्म-विश्वास जगाने के लिए बार-बार अपनी साधन सम्पदा के बारे में बताता रहता है तथा हिम्मत न हारने की-निरन्तर आगे बढ़ते रहने की-प्रेरणा देता रहता है। परमात्मा भी उसी प्रकार अपने पुत्र की इन सिद्धियों की झलक बताकर उसमें आत्म-विश्वास उत्पन्न करना चाहता हैं। ताकि वह अपने मूल स्वरूप को पहचान सकें और जिस उद्देश्य से उसे इस संसार में भेजा गया है उसे प्राप्त करने के लिए कटि-बद्ध हो सके।