सम्पदाएँ नहीं विभूतियाँ

April 1979

Read Scan Version
<<   |   <   | |   >   |   >>

सम्पदाएँ दूसरों को चमत्कृत करती हैं और अपने पर भार बनकर लदती हैं। विभूतियाँ दूसरों को दिखाई नहीं पड़ती, पर अपने में आनन्द और उल्लास भर देती हैं।

धन, वैभव, पद बड़प्पन को देखकर दूसरे लोग यह अनुमान लगाते हैं कि जिनके पास यह सम्पदाएँ हैं वे बहुत सुखी होते है, पर असल में बात ऐसी हैं नहीं। कोल्हू में बैल को चलते देखकर यह अनुमान लगाया जा सकता है कि यह तेल पीता होगा, खली खाता होगा और तेल के व्यापार से लाभ कमाता होगा तो यह मान्यता सही नहीं है। दूर से देखने पर अक्सर ऐसे ही भ्रम हो जाते हैं। अँधेरी रात में जंगली झाड़ हाथी जैसा लगता हैं, पर पास जाने पर असलियत खुल जाती है। सम्पदाएँ चन्द्रमा की तरह दूर से चमकती तो खूब हैं, पर कोई वहाँ चला जाय तो वायु, जल, जीवन रहित एक निष्प्राण नीरव और अण्ड-खण्ड पिंड ही दृष्टिगोचर होगा।

वैभव संग्रह कर सकना सहृदय व्यक्ति के लिए सम्भव नहीं, संसार में इतना दुःख भरा पड़ा है कि उसे दूर करने के लिए सम्पदा तो क्या सहृदय व्यक्ति अपना प्राण भी देना चाहता है। जो सब ओर से आँख बन्द किये रहे-अपने और अपने बेटे की अमीरी ही सोचता रहे, केवल उसी कठोर हृदय कन्जूस के लिए अमीर बन सकना सम्भव हैं न्यायोपार्जित आजीविका स्वल्प होती है, उससे गुजारा भर हो सकता है-संग्रह नहीं। संग्रहित संपदा-समीपवर्तियों में ईर्ष्या, द्वेष-उत्पन्न करती हैं। ठग पीछे पड़ते है और उनकी घात न लगे तो शत्रु बनते हैं। संग्रह की सुरक्षा और और भी कठिन हैं। मधुमक्खी के छत्ते पर न जाने कितनों का दाँव रहता है, फिर वह सम्पदा मदोन्मत्त बनाती है, अहंकार बढ़ाती है और व्यसनी, विलासी बनाकर पतन के गर्त में धकेल देती है। जब तक वह संग्रह रहता है उत्तराधिकारी भी यह दण्ड दुष्परिणाम भोगते हैं।

विभूतियां आन्तरिक सद्गुणों को कहते हैं। अमली सम्पदाएँ यही हैं। वे जहाँ भी होगी व्यक्तित्व में श्रेष्ठता का समावेश करेंगी। सम्मान और सहयोग का क्षेत्र बढ़ायेंगी। मित्रों का क्षेत्र विस्तृत होता चला जायेगा प्रशंसकों की कमी न रहेगी।

सद्गुणों के आधार पर ही ठोस, चिरस्थायी, उच्च, कोटि की सफलतायें मिलती है। श्रमशीलता, साहस, धैर्य लगन, संयम और अध्यावसाय के आधार पर ही इस संसार में विविधविधि, उपलब्धियाँ प्राप्त होती हैं और प्रगति का पथ प्रशस्त होता है। सच्चरित्रता और प्रमाणिकता के आधार पर ही विश्वास प्राप्त किया जाता है और विश्वासी को ही समाज में अपनाया जाता है, उसे ही महत्वपूर्ण काम सौंपे जाते हैं और सहयोगी दिये जाते हैं। अप्रमाणिक व्यक्ति अपना विश्वास खो बैठता है और उस कमी के कारण उसे कहीं भी सच्चा सहयोगी नहीं मिलता। फलस्वरूप महत्वपूर्ण प्रगति से उसे आजीवन वंचित ही रहना पड़ता है।

सद्भावना सम्पन्न-सद्गुणी व्यक्तित्व अपने आपमें एक वरदान है। ऐसा व्यक्ति अपने भीतर सन्तोष, उल्लास और हलकापन अनुभव करता है। उसे न किसी से डर होता है न दुराव। जिसमें न भीरुता है न दुष्टता वह किसी से क्यों डरेगा? जिसके मन में पा दुराव नहीं है उसे किसी के आगे झेंपने, झिझकने की आवश्यकता क्यों पड़ेगी? सदाचारी व्यक्ति निर्भय रहता है और निर्द्वन्द्व। अपनी न्यायोपार्जित आजीविका से गरीबों जैसा गुजारा करते हुए भी उसे इतना सन्तोष रहता है जितना अनीति उपार्जित विपुल सम्पदा के स्वामी को कभी स्वप्न में भी नहीं मिल सकता। हमें सम्पदाओं के लिए लालायित नहीं होना चाहिए। विभूतियों का महत्व समझना चाहिए। जहाँ विभूतियाँ होगी वहाँ सम्पदाएँ भी रहेंगी। पर आँख मूँद कर सम्पदा के पीछे भागने से खाली हाथ रहना पड़ता है। न सुख मिलता है न सन्तोष।


<<   |   <   | |   >   |   >>

Write Your Comments Here:


Page Titles