“आचार्य श्रीराम शर्मा का व्यक्तित्व और कृतित्व”

April 1979

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प्रो. लोकेश द्वारा पी.एच.डी. प्रयास आरम्भ परिचितों से सहयोग की अपेक्षा

विश्व विद्यालय अनुदान आयोग नई दिल्ली के तत्वावधान में में समस्त सम्बद्ध महाविद्यालयों में ‘‘संकायस्तरोन्नयन कार्यक्रम’’ के अंतर्गत पाँच लाख परियोजना नामक अनुदान आरम्भ किया गया है। इस निधि का कतिपय अंश संकाय सुधार के अतिरिक्त महाविद्यालयीन शिक्षकों की योग्यता अभिवृद्धि अर्थात् अध्यापन क्षमता में गुणात्मक परिपक्वता लाने की दृष्टि से पी. एच. डी. उपाधि अर्जित करने हेतु (जो अब महाविद्यालयीन शिक्षक की अनिवार्य योग्यता निर्धारित की जा चुकी है) टीचर फैलोशिप के रूप में प्राचार्य की संस्तुति पर व्यय करने का प्रावधान है। उक्त टीचर फैलोशिप 3 वर्ष के लिए दीर्घ अवधि फैलोशिप तथा एक वर्ष के लिए अल्पावधि फैलोशिप क्रमशः 35 वर्ष से कम एवं 45 वर्ष से कम आयु के प्राध्यापकों को जिनकी शैक्षिणिक योग्यता सतत् उच्च श्रेणी एवं मेरिट स्तर की होती है प्रदान की जाती है।

युग निर्माण मिशन के सूत्र संचालन से निकट से संबद्ध चि. प्रो. लोकेश जो शासकीय विज्ञान महा-विद्यालय जबलपुर (पुराना रावर्टसन कालेज) में हिन्दी विभाग में प्राध्यापक थे को भी त्रिवर्षीय टीचर फैलोशिप मेरिट के आधार पर उपलब्ध हो गई है जिसे उनके महाविद्यालय के प्राचार्य ने प्रस्तावित मध्यप्रदेश शासन, महाविद्यालय शिक्षा विभाग के अनुमोदित जबलपुर विश्वविद्यालय ने अग्रसित तथा विश्वविद्यालय अनुदान आयोग ने स्वीकृत किया है।

ज्ञातव्य है कि प्रो. पूर्णसिह लोकेश आरम्भ से ही मेधावी एवं अनुशासन प्रिय छात्र रहे है। उन्होंने एम. ए. की परीक्षा प्रथम श्रेणी में विशेष योग्यता सहित उत्तीर्ण की, साथ ही विधि स्नातक की उपाधि भी अर्जित की है। शासकीय विज्ञान महाविद्यालय में लगभग दो वर्षों तक हिन्दी विभाग के अध्यक्ष पद पर कार्यरत रहने वाले विगत 6 वर्षों से स्नातक एवं स्नातकोत्तर कक्षाओं के अध्यापन अनुभव से पूर्ण प्रो. लोकेश ने अनेक बार वेदमूर्ति तपोनिष्ठ आचार्य प्रवर जिन्हें चलता-फिरता विश्व कोश (इनसाइक्लोपीडिया) कहा जाता है जिनने समस्त आर्ष साहित्य के भाष्य के साथ अनेक पन्नों का सम्पादन एवं लगभग 650 के लगभग छोटे-बड़े ग्रंथों की रचना की है उनके व्यक्तित्व एवं कृतित्व पर शोध कार्य करने की विगत चार वर्षों से लगातार इच्छा अभिव्यक्त की, किन्तु आचार्यजी ने उनके अनुरोध को स्वीकार नहीं किया। विगत नवम्बर 78 में जब प्रो लोकेश ने शिष्य वत्सल पूज्यवर से पुनः हठपूर्ण विशेष आग्रह एवं निवेदन किया तो उन्होंने सहमति दे दी। फलस्वरूप मेरठ विश्वविद्यालय से शोध कार्य के पंजीयन हेतु संपर्क साधा। मेरठ विश्वविद्यालय की “शोध उपाधि समिति द्वारा डा द्वारिका प्रसाद सक्सेना अध्यक्ष, हिन्दी विभाग खुर्जा महाविद्यालय, के संयोजकत्व में एवं डा उदयभानु सिंह अध्यक्ष हिन्दी विभाग दिल्ली विश्वविद्यालय तथा डा जयचन्द राय अध्यक्ष, हिन्दी विभाग गाजियाबाद महाविद्यालय, प्रभृति अधिकारी विद्वानों तथा मूर्धन्य हिन्दी सेवियों की सहमति से” आचार्य श्रीराम शर्मा व्यक्तित्व एवं कृतित्व विषय पर शोध कार्य हेतु सहर्ष स्वीकृति दी गई।

यह शोध दो प्राध्यापकों के निर्देशन में चलेगा एक है डा गोविन्द जी प्रसाद मेरठ विश्वविद्यालय (आन्तरिक निर्देशक) तथा दूसरे हैं (वाह्य निर्देशक) डा विष्णुदत्त राकेश गुरुकुल काँगड़ी विश्वविद्यालय।

चि. प्रो. लोकेश, ने अपना शोध कार्य गुरुकुल काँगड़ी विश्वविद्यालय में आकर करना आरम्भ कर दिया है। चूँकि आचार्यजी ने अपने जीवन के समस्त महत्वपूर्ण कार्य माँ वीणापाणि के पावन पर्व वसन्त से ही शुभारम्भ किये हैं फलतः यह पर्व उनके आध्यात्मिक जन्मदिवस के रूप में सर्वत्र मनाने की पुनीत परम्परा आरम्भ हो गई है। आचार्य श्री के व्यक्तित्व एवं कृतित्व पर होने जा रहा शोध कार्य किसी भी दृष्टि से कम महत्वपूर्ण नहीं है।

आचार्यजी के द्वारा संचालित रचनात्मक प्रवृत्तियाँ, साहित्य, क्रिया-कलाप, वैचारिक अभियान तथा व्यक्तिगत, सन्निद्ध संपर्क आदि से परोक्ष अथवा प्रत्यक्ष रूप से लाभान्वित ज्ञात अज्ञात परिजन अपनी अनुभूतियाँ भी भेजें।

विचित्र किन्तु सत्य, जिसे नकारा नहीं जा सकता, जो परिजन आचार्यजी के संपर्क में आर्य हैं अथवा उनके परिसर में प्रवेश कर उनके द्वारा को जिस-जिसने खट-खटाया है वे खली हाथ नहीं लौटे हैं, इस संदर्भ में भी तथा अपनी समस्याओं के समाधान विषयक विवरण भी भेज सकते है।

शोधार्थी अभी तो मात्र आचार्यजी द्वारा रचित, अनूदित, संपादित, कृतियों के संकलन में ही संलग्न है। इस समय जो असुविधा हो रही है वह यह है आचार्य श्री द्वारा लिखित उनके आरंभिक साहित्य के न मिल पाने की। जो साहित्य अब प्रकाशन से परे है, प्राचीन परिजन अच्छी तरह सुपरिचित है, 6 आने सीरीज वाली 50 पुस्तकें एवं एक रुपये सीरीज वाली 200 पुस्तकें यहाँ उपलब्ध नहीं है। साहित्य सर्जना के विकास क्रम के निर्धारण एवं अनुशीलन हेतु, उक्त साहित्य की महती आवश्यकता अनुभव हो रही है। जिन परिजनों के पास यह साहित्य उपलब्ध हो शीघ्र भेजें।

भेजना कहाँ है-

चि. प्रो. लोकेश वैसे तो शान्तिकुंज में रहकर ही अपना शोध कार्य पूर्ण करेंगे, क्षेत्रीय कार्य (फील्ड वर्क) की से दृष्टि आचार्यजी के कृतित्व के अनुशीलनार्थ उन्हें देश-विदेश की शाखाओं में जाना भी पड़ सकता है। बाहर रहने पर भी उनका मुख्यालय यहाँ का ही रहेगा। इसलिए प्रो. लोकेश, शान्तिकुंज हरिद्वार उ. प्र. के पते पर वाँछित सामग्री प्रेषित कर सकते है।

कहा जा चुका है कि शोध विषय “आचार्य श्रीराम शर्मा का व्यक्तित्व एवं कृतित्व” है। इसमें उनके अद्यावधि जीवनक्रम का-लिखित साहित्य का-नव निर्माण के लिए किये गये महान रचनात्मक प्रयासों का उल्लेख होगा। साथ ही उन प्रयासों में आते रहे उतार-चढ़ावों, तथा संशोधन, परिवर्तनों के साथ जुड़ी हुई मनःस्थिति एवं परिस्थिति पर भी चर्चा होगी। इस समस्त प्रसंग की तुलना देश-विदेश के अन्यान्य महामानवों, सद्ग्रन्थों एवं रचनात्मक प्रयासों के साथ भी की जायगी और इस तथ्य पर प्रकाश डाला जायगा कि नव सृजन के लिए अन्यत्र होते रहे ऐसे ही प्रयत्नों का पारस्परिक तारतम्य क्या है? सृजन परम्पराओं की किन धाराओं ने आचार्यजी को कितनी मात्रा में किस प्रकार प्रभावित किया है। आचार्यजी के व्यक्तित्व और कृतित्व में संसार के महामानवों एवं उनके सत्प्रयत्नों की जो गहरी छाया है उसका न तो अनुपान कम है और न प्रभाव ही नगण्य कहा जा सकता है। ऐसी दशा में उस आलोक की चर्चा करना भी आवश्यक समझा गया है जिसकी ऊर्जा ने इतनी बड़ी उपलब्धि सामने प्रस्तुत कर दी जिस पर शोध करने का श्रम प्रयास आवश्यक बन गया। स्पष्ट है कि संसार की युगान्तकारों विचारधाराओं और सृजनात्मक सत्प्रवृत्तियों के सार तत्वों का असाधारण समन्वय प्रस्तुत व्यक्तित्व एवं कृतित्व में भली प्रकार समाविष्ट देखा जा सकता है।

उपरोक्त शोध प्रयोजनों में जिन परिजनों को जान-कारी, कल्पना हों। जिनकी स्मृति इस संदर्भ में कुछ उपयोगी सुझाव दे सके उन्हें भी आमन्त्रित किया जा रहा है।

अपेक्षा क्या हैं?

इसके बाद परिजनों से, जो शोधार्थी की अपेक्षा है, इन पंक्तियों द्वारा व्यक्त की जा रही है-कि निम्नलिखित (सिनाप्सिम) रूप रेखा के अनुसार जिस प्रकार का सहयोग “आचार्यजी से सम्बद्ध परिजन दे सकने में समर्थ हों। उनका सहयोग एवं विचार आमन्त्रित है।

आचार्यजी के जीवन वृत्त एवं जीवन दर्शन से सम्बन्धित सामग्री जिसमें उनके (परिजनोँ के) निजी, संस्मरण घटनायें, महत्वपूर्ण, शोधोपयोगी पत्र, सान्निध्य लाभ विषयक अनुभूतियाँ सुवाच्य लिपि में या टाइप करा-कर भेजें। चूँकि आचार्यजी ने व्यक्ति, परिवार एवं समाज के परिष्कार में एक अहम् भूमिका सम्पादित की है उसकी प्रतिक्रिया में एक अहम् भूमिका सम्पादित की है उसकी प्रतिक्रिया वातावरण में सर्वत्र परिलक्षित हो रही है इससे सम्बन्धित जो परिवर्तन एवं परिष्कार आपने अनुभव किया हो उसे भी संक्षिप्त में भेजें।


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