आनन्द की जो बौछार भीतर से होती है, उसे छीनने के लिए कोई झगड़ा नहीं करेगा, क्योंकि वह तो एक भाव विशेष है। योगियों का आनन्द इसी तरह का आनन्द है। महर्षि रमण और गाँधीजी इसी तरह के व्यक्ति थे। उनके पास भौतिक सुख के विशेष सामान नहीं थे। वे तो अकिंचन ही थे, किन्तु उन्हें जो आनन्द प्राप्त था वह संसार में विरले ही पाते है। हम सोचकर देखें कि हमें हृदय की भावना को संतुष्ट करने में जो सुख मिलता है वह क्या जिह्वानंद में मिल सकता है! हमारे यहाँ राजा जनक का उदाहरण दिया जाता है! उन्हें भोग की सारी वस्तुएँ प्राप्त थीं और वह उनका उपभोग करके भी उनसे निर्लिप्त रहते थे। ठीक उसी तरह हम भौतिक पदार्थों को आवश्यक समझकर काम में लावें, किन्तु आज कल के भौतिकवाद के समान उसी में सुखवाद न मान लें। -डॉ. राजेन्द्रप्रसाद