पूजा के फूल

April 1979

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मगध के सिंहासन पर सम्राट इन्द्रगुप्त आसीन थे। महाकौशल से उनकी शत्रुता हो गई। महा कौशल की शक्ति और सैन्यबल उन दिनों यौवन पर था। वहाँ से किसी भी क्षण आक्रमण की पूरी आशंका थी यह बात मगध के एक-एक नागरिक को मालूम थी। इसलिए कोई भी रात में बाहर न निकलता। सारी प्रजा युद्ध की आशंका से भयभीत थी।

मगध के सैनिक पूरी तत्परता के साथ सीमा चौकियों की रक्षा कर रहे थे, पर आपातकालीन स्थिति हो तो किसी भी व्यक्ति को चुप नहीं बैठना चाहिये चाहे वह राजा हो या प्रजा। इन्द्रगुप्त स्वयं इस आदर्श का पालन कर रहे थे। वे रात-रात भर जागकर प्रजा की रक्षा व्यवस्था देखा करते थे।

तब जब मगध के युवक और प्रौढ़जन भी भयवश अन्धकार में बाहर नहीं निकलते थे। एक स्त्री घर से बाहर निकलती। वह राज दरबार की मालिन थी। सम्राट और साम्राज्ञी दोनों प्रातःकाल पीयूष वेला में भगवान् पाशुपत का पूजन किया करते थे उसके लिये शुद्ध और ताजे पुष्पों की आवश्यकता होती थी। मालिन ने अपने इस कर्तव्य पालन में इन गाढ़े दिनों में भी भूल नहीं की। वह प्रतिदिन पूजा के पुष्प नियमित रूप में पहुँचाती रही। किसी को भी उँगली उठाने का अवसर नहीं मिला कि मालिन डरकर अपने कर्त्तव्य का पालन नहीं कर रही।

प्रातःकाल होने में अभी देर थी। महाराज इन्द्रगुप्त भ्रमण करते हुये उधर ही आ निकले जहाँ उस मालिन का निवास था। अन्धकार में कुछ आकृतियाँ उधर घूमती दिखाई दी। महाराज को सन्देह हुआ वह चुपचाप झुरमुट में खड़े होकर स्थिति का अध्ययन करने लगे।

भवन के बाहर पदचाप सुनकर मालिन की निद्रा टूट गई। उसने समझा प्रातःकाल हो गया है सो फूल चुनने की पेटिका उठाकर वह घर से बाहर आई पर यहाँ तो स्थिति कुछ और ही थी। महाकौशल के चार गुप्तचरों ने बाहर आते ही घेर लिया। किसी तरह उन्हें पता चल गया था कि मालिन नियमपूर्वक राज्य-भवन में प्रवेश करती है उसे वहाँ की सारी व्यवस्था का पता होगा इसीलिए प्रातः होने से पूर्व ही यह दल वहाँ पहुँचा था

नारी के कोमल नहीं-कठोर शब्द निकले-कौन हो तुम? इतनी रात गये यहाँ क्या कर रहे हो? “भद्रे! हम आपके अतिथि है आपकी सेवा पाने का अधिकार लेकर आये है यदि यदि यह अधिकार उपलब्ध हो गया तो आप महाकौशल की सम्मानित महिलाओं में होगी। धन, वैभव तुम्हारे चरणों पर ऐसे लौटेगा जैसे नागराज के चरणों में सिन्धु का जल।” एक गुप्तचर ने धीमे स्वर में कहा।

महाकौशल! और में- मेरा महाकौशल से क्या सम्बन्ध? साफ-साफ कहो क्या चाहते हो? मालिन ने पीछे हटते हुए दृढ़ स्वर में पूछा। हम महाकौशल के सैनिक हैं मगध राज्य का रहस्य ज्ञात करने के लिये आये हैं। उसकी जानकारी भर तुम्हें देनी है उसके बदले महान् ऐश्वर्य की स्वामिनी बनोगी।

और इससे पूर्व कि कुछ और कहे-मालिन ने तड़पकर कहा-बस बन्द करो बकवास आगे और कुछ कहा तो जबान काट लूँगा। इस देश के निवासी महत्वकाँक्षाओं के लिए कर्तव्यों की हत्या करना नहीं जानते। हम प्राण दे सकते हैं, पर अपने कर्तव्य से एक इंच भी डिग नहीं सकते। गुप्तचर चिल्लाया! मूर्ख स्त्री- यदि ऐसा ही है तो उसका फल तु ही भुगतेगी। फिर अपने साथियों की ओर देखकर उसने आज्ञा दी- पकड़ लो इसे, डाल दो मुश्कें जब लौह शलाकाओं से छेदा जायगा तब कर्त्तव्यनिष्ठा याद आयेगी।

इससे पूर्व कि सैनिक उसे हाथ लगायें- महाराज इन्द्रगुप्त झुरमुट से बाहर निकल आये। मगध और महाकौशल की पहली झड़प वहीं हुई कर्त्तव्यनिष्ठ मालिन की रक्षा के लिए महाराज इन्द्रगुप्त ने चारों सैनिकों को वही धराशायी कर दिया।


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