खिलखिलाएँ नहीं तो मुस्कराएँ अवश्य

April 1979

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पेरिस के एक सभा भवन में प्रति रविवार को 10 बजे एक गोष्ठी आयोजित होती है। जिसमें वहाँ के वैज्ञानिक हँसी परभाषण देते हैं। अन्त में सभी कक्षों में अन्ध-कार हो जाता है और लोगों के कहकहे गूँजने लगते हैं। मन के सुखद भावों को बाहर लाने के लिए हँसी सर्वोत्तम उपाय है। जो स्वयं को ही प्रसन्न नहीं करती वरन् आस-पास के लोगों और मित्रों को भी प्रफुल्ल कर देती है। हास्य शरीर की स्वाभाविक तथा आवश्यक क्रिया है जो दैनन्दिन जीवन में आने वाले व्याघातों का कुप्रभाव नष्ट करती है।

जब किसी के व्यवहार से दुःख पहुँचता है, कोई नैराश्यपूर्ण स्थिति आ जाती है और संयोग से उसी समय हँसी आ जाय तो सारा क्रोध और चिन्ता दूर होकर मन झूम उठता है। यह प्रत्यक्ष अनुभूत किया जा सकता है। मुस्कान और हँसी के द्वारा अंतर्जगत् में एक ऐसा स्निग्ध वातावरण बनता है जो अन्दर ही अन्दर हृदय को शीतलता प्रदान करता है।

इस शुभ प्रभाव का कारण हँसी की मनोवैज्ञानिक प्रतिक्रिया है। व्यथा, क्रोध, चिड़चिड़ापन थके हुए मन में ही ज्यादा उत्पन्न होता है। जबकि हास्य, मन के सारे तनावों और ग्रन्थियों को दूर कर देता है, खोल देता है। एक फ्रांसीसी मनोविज्ञान रोग चिकित्सक डॉ. पौस्क्डि ने लम्बे समय तक इस विषय में अन्वेषण किया। लगभग 140 प्रयोगों के द्वारा वह इस निष्कर्ष पर पहुँचे कि हँसने से मनुष्य के मन और सज्जा तन्तुओं को स्फूर्ति और संजीवता प्राप्त होती है तथा थकान और चिन्ता का भार कम हो जाता है। हँसी एक ऐसा मनोवैज्ञानिक व्यायाम है जो मन को ही नहीं शरीर के अवयवों तथा माँसपेशियों को अनावश्यक दबाव से मुक्त कर देता है।

हँसी के बाद में सर्व सम्मत सिद्धान्त है कि इसमें खून बढ़ता है। यह केवल कल्पना मात्र ही नहीं है। अमेरिका के डॉक्टरों ने इस सिद्धान्त की सचाई को परखने के लिए बालकों के दो समूह किए और दोनों को अलग-अलग रखा। एक समूह को दोपहर के भोजन के बाद एक मस-खरा तरह-तरह से हँसाता रहता। दूसरे समूह के लिए कोई व्यवस्था नहीं की गई। एक मास बाद दोनों समूह के बच्चों का परीक्षण किया गया तो पता चला कि हँसने वाले बच्चों का स्वास्थ्य पहले की अपेक्षा और अच्छा हो गया है। वे पढ़ने-लिखने में भी और तेज हो गये हैं।

परन्तु यह सब होता तब है जब दिल खोल कर हँसा जाय। बहुत से अवसरों पर हम औपचारिक रूप से ही हँस पाते है। अपने साथी मित्रों का मन रखने के लिए अथवा आसपास के लोगों का साथ देने के लिए ऐसी हँसी का कोई परिणाम नहीं होता।

मुस्कान भी हँसी का ही एक स्वरूप है। यह सदा बनी रहने वाली स्थिति है। चौबीसों घण्टे खिलखिलाते रहना असम्भव हो सकता है परन्तु सदा मुस्कराते रहना ज्यादा कठिन नहीं है। दर्पण में खिला हुआ मुख कमल देखकर मन आह्लादित हो उठता है। मुस्कुराते हुए व्यक्तियों के समीप क्रोध, ईर्ष्या और प्रतिहिंसा फटकती तक नहीं। प्रतिहिंसा की अग्नि को शान्त करने वाली यह अचूक औषधि है। कभी-कभी घर में पति-पत्नी के बीच कलह होता है, या कोई मित्र रूठ जाता है तो मुस्कराने का नुस्खा आजमा कर इस दुःस्थिति को आसानी से सम्हाला जा सकता है। मन पर जमा हुआ सारा मैल मुस्कान के जल-प्रवाह में बह जाता है।

मनोवैज्ञानिक का मत है कि मुस्कान के द्वारा आन्तरिक मन को एक स्वस्थ संकेत मिलता है, विद्युत प्रभाव पड़ता ह। इसका दूसरा अर्थ यह है कि हमारा मन मधुर कल्पनाओं, सद्भावनाओं तथा पवित्र विचारों से ओत-प्रोत है। मानसिक स्वास्थ्य का प्रभाव शरीर, आयु और आरोग्य पर निस्सन्देह पड़ता है। इसी तथ्य की और इंगित करते हुए श्रीमती एलिजाबेथ सैफोर्ड ने लिखा है कि, सौ वर्ष जीने के लिए चारों और से जवान और हँसमुख मित्रों से घिरे रहो।”


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