इस संसार में ज्ञान के समान पवित्र करने वाला कुछ भी नहीं है। सद्ज्ञान से हमारे विचारों की शुद्धि होती है। शुद्ध विचार अन्तःकरण को शुद्ध कर सद्कर्म की प्रेरणा देते हैं।
और निरन्तर किए जा रहे सद्कर्म फिर अन्तःकरण की शुद्धि करते हुए आत्मानन्द की अनुभूति कराने वाले होते हैं।
आत्मानुभूति ही सद्ज्ञान है।
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