अरब निवासी एक सज्जन श्री नाहेर के पास एक अच्छा−सा अश्व था। एक अन्य दाहेर नामक व्यक्ति को वह अश्व पसन्द आया व उसने अश्व बेच देने का प्रस्ताव नाहेर के समक्ष रखा। नाहेर अपने अश्व को अत्यधिक चाहते थे अतः उन्होंने मना कर दिया।
श्री दाहेर ने एक षड्यन्त्र रचा। वह एक फकीर का वेष बनाकर उस मार्ग पर बैठ गया जहाँ से श्री नाहेर गुजरने वाले थे जब श्री नाहेर पास आये तो दाहेर ने उनसे याचना की वह उसे अगले गाँव तक घोड़े पर बिठाकर ले जायें। नाहेर को फकीर की हालत पर तरस आया व उन्होंने दाहेर को घोड़ा दे दिया। दाहेर घोड़े पर चढ़कर चलने लगा व नाहेर पैदल। थोड़ी देर बाद दाहेर ने घोड़े को दौड़ाना प्रारम्भ किया व श्री नाहेर से कहा, देखो−तुमने सीधे रास्ते से अश्व नहीं दिया तो मैंने किस तरकीब से पा लिया। श्री नाहेर ने शान्त चित्त से दाहेर से कहा “खुदा की मर्जी, तुम घोड़ा लो जाना चाहो तो ले जाओ परन्तु यह धोखे−धड़ी की बात किसी से न कहना नहीं तो जो भी सुनेगा वह आइन्दा जरूरतमन्दों, दीन-दुःखियों की सहायता करने में हिचकिचाहट करेगा तथा उसकी राय फकीरों के बारे में यह बन जायगा कि फकीरी वेष में भी छली, कपटी व्यक्ति फिरा करते हैं।”
नाहेर की इन बातों का दाहेर पर बड़ा असर हुआ उसने घोड़ा लौटा दिया व अपने आपको उसने सुधार लिया।
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