कृष गात गौतम (kahani)

May 1978

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स्थान−स्थान, निर्जन वन, पर्वत, कन्दरा में घूमते रहने−विभिन्न साधु−सन्तों से सम्पर्क सान्निध्य करते रहने पर भी गौतम को जब सद्ज्ञान की प्राप्ति न हुई तो वे एक स्थान पर वट वृक्ष के नीचे एकाग्र चित्त हो चिन्तन करने के लिए बैठ गए। उन्होंने अन्न जल सभी छोड़ दिया।

कृष गात गौतम एक दिन जब चिन्तन मग्न बैठे विचार कर रहे थे कि इतनी तपस्या कर, शरीर को सुखा डालने के उपरान्त भी उन्हें सद्ज्ञान प्राप्त नहीं हुआ—तभी उनके पास से ग्राम्य बालाओं का एक समूह गाना गाते हुए निकला। गौतम के कानों में आए इन सुरीले शब्दों का आशय इस प्रकार था,”अपनी सितार के तारों को ढीला न छोड़—कस कर रख, पर इतना भी न कस कि वे टूट ही जायं।”

और उस दिन उन्हें मम्झिम मार्ग (मध्य मार्ग) का ज्ञान मिला। उन्होंने उस दिन अन्न ग्रहण कर जो समाधि लगाई तो वह पूर्णता तक पहुँचा कर ही टूटी।

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