जितने सितारे उतने रहस्य

May 1978

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ऐसी अजनबी परिस्थितियों में फौजी निर्णयों से काम नहीं चलता, उसके लिये विचार मन्थन के बाद किसी निष्कर्ष पर पहुँचना आवश्यक होता है, पर यहाँ अवसर होता तब न? उस समय फ्लाइट लेफ्टिनेंट आर विल्सन अपने एक−86 जेट हवाई जहाज के साथ प्रशिक्षण उड़ान पर थे। उन्हें बेतार के तार (वायरलैस) से इस अजनबी वस्तु का पीछा करने और वह है क्या? इसकी खोज खबर लेने का निर्देश दिया गया। अब तक वस्तु (आब्जेक्ट) पश्चिमोत्तर दिशा में मुड़ चुका था। आर. विल्सन ने उसका तेज गति से पीछा किया और 160 मील तक पीछे लगे रहे। इस बीच उनने जो सन्देश दिये वह इस प्रकार है—1−यह कोई गोलाकार यान लगता है पर वह किस धातु से बना हो सकता है कुछ समझ में नहीं आता। 2− उसके भीतर कोई दिखाई नहीं दे रहा पर उसकी गति, मुड़ना, दिशा नियन्त्रण इस बात के प्रतीक हैं कि अन्दर या बाहर कोई अत्यन्त कुशल बुद्धि उसका नियन्त्रण कर रही है।

अभी ये शब्द पूरी तरह समाप्त नहीं हो पाये थे कि ऐसा लगा कि वह वस्तु और आर−विल्सन का जेट दोनों परस्पर मिल गये और एक−दूसरे में आत्मसात हो गये। कन्ट्रोलर बहुतेरा हलो विल्सन! हलो विल्सन!! चिल्लाते रहे; पर कोई प्रत्युत्तर नहीं आया। वह वस्तु और भी तेज गति से अन्तरिक्ष पार क्षितिज के पेट में जा समाई।

हवाई अड्डे का खोजी दल वाहनों में भागा, फायर ब्रिगेड सक्रिय हुई, दूसरे जहाज उड़ाये गये, जिस स्थान पर इस घटना का रडार ने संकेत दिया था वहाँ से बीसियों वर्ग किलोमीटर क्षेत्र का चप्पा−चप्पा छान मारा गया किन्तु विल्सन तो दूर जहाज का रत्ती भर टुकड़ा तक कहीं नहीं मिला। इस खोज का क्रम कई दिनों तक चला। अन्त में विशेषज्ञ समिति ने “आर−विल्सन कहाँ गये यह एक रहस्य भरी पहेली बन गया है।” कह कर अपनी असमर्थता और हार स्वीकार ली।

इस दुर्घटना के बाद से कई ऐसे रहस्य उभरते हैं जिनका आज तक कोई समाधान नहीं निकल सका। क्या यह अन्तरिक्ष के विकिरण का कोई “बगूला” या “भँवर” था जिसने विलसन को आकाश के गहरे विकिरण सागर में डुबो दिया या फिर किसी अन्य ग्रह से आया कोई यान था जो पृथ्वी वासियों के रहस्यों का पता लगाने के लिये योजना बद्ध ढंग से भेजा गया हो? दोनों ही तरह से पाठक सोच सकते हैं और जी में आये वह निष्कर्ष निकाल सकते हैं क्योंकि तथ्य किसी को ज्ञात नहीं, यदि कोई एक बात तथ्य रूप में सामने आती है तो वह मात्र यह कि इस ब्रह्माण्ड में जितने सितारे चमक रहे हैं, रहस्य उससे भी अनेक गुने अधिक है? क्या मनुष्य उनमें से कुछ जान सकता है? इतनी दूर की क्यों मनुष्य शरीर ही विलक्षण शक्ति केन्द्रों की, सामर्थ्यों की चलती−फिरती रहस्यमय मशीन है यदि वह इसी को भली प्रकार जान ले सो ही बहुत है।

अमेरिका, फिलीपीन्स, रूस, प. जर्मनी, मैक्सिको आदि देशों में यह उड़न तश्तरियाँ देखी गई है, यदि यह मान लिया जाये कि 98 प्रतिशत व्यक्तियों को यह भ्रम बाल लाइटनिंग, मौसम विभाग द्वारा छोड़े गये गुब्बारे देखकर अजब तरह के बादल और उन पर पड़ी किरणें देखकर, धुँधलके में प्रकाश व छाया से बने दृश्य या किसी नये तरह के हवाई जहाज को देखकर हुआ होगा तो भी 2 प्रतिशत लोग तो ऐसे हैं ही जिनके कथन असत्य नहीं कहे जा सकते उनकी जानकारियाँ प्रामाणिक होनी चाहिये इन लोगों में एअर क्रैफ्ट (हवाई जहाज के लोग) मौसम विज्ञान के लोग आते हैं। दूसरा भूल कर सकता है पर अनुभवी पायलट जो उड़ान के समय शराब नहीं पीते, व्यर्थ बात नहीं करते, ऐसा करें तो उन्हें सर्विस से हाथ धोना पड़े। झूठ क्यों बोलेंगे। तब फिर इन रहस्यों का कोई समाधान हो सकता है क्या? उसके लिये तब तक प्रतीक्षा करने के अतिरिक्त और कोई चारा नहीं जब तक सारे ब्रह्माण्ड के स्वरूप और स्थिति की जानकारी नहीं मिल जाती।

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