सज्जन, दयालु व उदार हृदय (kahani)

May 1978

Read Scan Version
<<   |   <   | |   >   |   >>

एक राजा बड़ा सज्जन, दयालु व उदार हृदय था। उसके प्रशंसक उसके दरबार में जाते व कुछ न कुछ धन अवश्य ले जाते। बात फैलने लगी, इस तरह राजा की उदारता का लाभ उठा कर अनेक व्यक्ति राज दरबार में आने लगे व धन सम्पत्ति ले जाने लगे। इस बढ़ती भीड़ को देखा राजा को बड़ी हैरानी होने लगी। राजा ने अपने पुरोहित से परामर्श कर ऐसी घोषणा करवा दी कि राजा बीमार हैं वह उनकी प्राण रक्षा तभी हो सकती है जब राज्य के पाँच व्यक्ति अपना रक्त दें। कुछ दिनों के लिए, राजा अज्ञातवास में चले गये। पूरा एक सप्ताह बीत गया परन्तु राजा का कोई भी शुभ चिन्तक, प्रशंसक अथवा भक्त नहीं आया। राजा को वास्तविकता का ज्ञान होने लगा तो वे व्यथित हो उठे। पुरोहित ने राजा से कहा ........”राजन् यह तो संसार की रीति ही है आप व्यथित न हों, आप तो एक छोटे से राज्य के राजा हैं। आपको प्रजाजनों ने ठग लिया तो कोई बड़ी बात नहीं। उस राजाओं के राजा बड़े महाराजा—परमात्मा के दरबार में भी यही होता है। उसके भक्तगण उसे दिन−रात भ्रमित कर ठगते रहते हैं, परन्तु उस परमात्मा के काम करने के लिए कोई त्याग करने, कष्ट सहने को तैयार ही नहीं होता।’

----***----


<<   |   <   | |   >   |   >>

Write Your Comments Here:


Page Titles