महावीर स्वामी उन दिनों जंगल में घोर तप कर रहे थे। जंगल के ग्वाले उन्हें समाधिस्थ देख उनका उपहास किया करते थे। कुछ दुष्ट तो लांछन लगा कर उन्हें तंग भी करने लगे! महावीर इन व्यवधानों से विचलित न हो तपस्या करते रहे।
तपस्या में विघ्न डालने वालों की बात पास के व्यक्तियों तक पहुँची, वहाँ के धनिक लोग महावीर के पास आए व कहने लगे, “देव आपको ये नादान व्यर्थ कष्ट दे असुविधा में डाल रहे हैं, हमारा निवेदन है हम आपके लिए एक भवन यहाँ बनवा दें तथा ऐसी सुरक्षा व्यवस्था करा दें जिससे आप निश्चिंत हो तपस्या−साधना करते रहें।”
तात! साधनों का अनुचित मोह की मनुष्य को सांसारिक बनाता है एक बार उससे निकल आने के बाद जो आत्म−शक्ति मिली है उसकी तुलना में यह व्यवधान तुच्छ है। आप लोग मेरी चिन्ता न करें। उनकी इस दृढ़ता से ग्वाले भी पराभूत हो उठे उन्होंने फिर सताने की हिम्मत नहीं की।
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