याद रखो, सम्पूर्ण जगत् एक शरीर है। तुम्हारे शरीर में हाथ, नख एवं उँगली की तरह ही एक महत्वपूर्ण अवयव है। यदि हाथ उँगली या नाक शरीर से प्रथक होकर अलग कट जाते हैं तो फिर उनका सारा महत्व ही नष्ट हो जाता है। आत्मा तभी सच्चे अर्थों में आत्मा है, जब वह अपने को परमात्मा का एक अंश अनुभव करे। विराट् विश्व का एक कण ही तो मनुष्य है।
अखिल विश्व की आत्मा से हम अपने को प्रथक न समझें। हाथ का कल्याण इसी में है कि वह अपना हित समस्त शरीर के हित के साथ जुड़ा रखे। किसी भी अंग को अभाव या कष्ट हो तो उसके निराकरण का उपाय करे। यदि हाथ अपना कर्त्तव्य छोड़ दे और कलाई तक ही अपने को सीमित कर ले तो वह स्वयं भी नष्ट होगा और सारे शरीर को नष्ट करेगा। संकीर्णता ही पतन और विशालता ही उत्थान है। कोई विराना नहीं, सब अपने ही हैं। सबके कल्याण में अपना कल्याण समाया हुआ है। यही शिक्षाएं अध्यात्म का सार हैं - स्वामी रामतीर्थ