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January 1972

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जिस समाज में अधिकाँश अच्छे लोग रहते हैं उसे सभ्य समाज कहा जाता है। पर मेरी दृष्टि में उससे भी सभ्य वे लोग हैं जो बुरे लोगों को भी निबाह लेते हैं और प्रेमपूर्वक उन्हें अच्छा बनाने का प्रयत्न करते रहते हैं।

-अब्राहम लिंकन

की सज्जनता का समुचित समावेश कर सकें और सामूहिक स्वार्थों से अधिक महत्ता दें उसी को धर्मनिष्ठा माना जाय।

जन-जीवन में धर्मनिष्ठा की प्रतिष्ठापनाएँ सदा ही श्रेयस्कर थीं और रहेंगी, पर आज की परिस्थितियों में तो उसे व्यक्ति की सुख-शान्ति और समाज की सुरक्षा समृद्धि की दृष्टि से इतनी अधिक आवश्यक हो गई हैं कि उसकी उपेक्षा तो की ही नहीं जा सकती। इस आवश्यकता की पूर्ति के लिए किया गया प्रयत्न वस्तुतः मानव जाति की महानतम सेवा एवं विश्व को विनाश से बचाने की महती सेवा-साधना मानी जायेगी। हमारा ध्यान इस दिशा में जितना अधिक और जितनी जल्दी जा सके उतना ही उत्तम है।


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