अन्धविश्वास-सृजेता को भी खाता है।

January 1972

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अमेरिका में तब तक गोरे लोगों का पदार्पण नहीं हुआ था। मूल निवासी ही वहाँ रहते थे।

सन् 1533 के करीब दक्षिणी अमेरिका के सुविस्तृत क्षेत्र में-जहाँ आजकल पेरु, इक्वाडोर, चिली, अर्जेन्टाइना हैं-एक राजा राज्य करता था उसका नाम था-’अताहुआल्या’ राज्य का नाम था-’तवानतिन मुदू’ यह राज्य कोई 3500 मील के परिधि में फैला हुआ है।

राजा के पूर्वज ‘इन्का’ कहे जाते थे। राज्य सम्पदा का कोई ठिकाना न था। सोने की लंका का जैसा वर्णन किया जाता है, वैसी ही कुछ उस राजा की निजी सम्पत्ति तथा भवन, उद्यान, विलास साधनों के बारे में कहा जाय तो कुछ बहुत अत्युक्ति न होगी।

प्रजा नितान्त अशिक्षित थी। प्रजाजनों में से कोई फूटा अक्षर भी न जानता था, पर थे सभी कठोर परिश्रमी भोले और ईमानदार। जो कमाते थे उसमें से गुजारे भर को रखकर शेष सारी बचत राज्यकोष में जमा करनी पड़ती थी।

राज्य परिवार ने प्रजा में एक किंवदंती प्रचलित कर रखी थी कि उनका यह राजवंश सूर्य भगवान का अंश है। इसकी पीठ पर सूर्य देवता है। जो राज्य परिवार का विरोध करेगा उसका सूर्यदेव प्राण हरण कर लेंगे और कठोर दण्ड देंगे। भोली प्रजा ने यह बात अक्षरशः सत्य मानी और उस पर पूरी निष्ठा के साथ अमल किया। राजा जो कुछ भी उचित-अनुचित कहे या करे उसे ईश्वर की आज्ञा ही मानकर चला जाता था। प्रजा प्राणपण से अपने राजा की इच्छा पूरी करती थी। राजा के कुपित होने के भय से कहीं चोरी चाण्डाली भी नहीं होती थी। गरीब होते हुए भी यह रैड इण्डियन लोगों की प्रजा राजाज्ञा का पालन प्राण-पण से करती थी।

स्पेन के सामन्तों को इस राज्य की विपुल सम्पदा का पता चला तो पिंडारी नाम का एक स्पेनी सरदार अपने साथ कुल दो सौ सिपाही लेकर चढ़ दौड़ा और बेखबर राजा को बात की बात में गिरफ्तार कर लिया। सरदार पूरी स्थिति की जानकारी प्राप्त कर चुके थे। उन्होंने राज्य भर में राजा की ओर से मुनादी करा दी कि मुझे पिंडारी सरदार ने गिरफ्तार कर लिया है। कोई उस सरदार को छेड़े नहीं अन्यथा मैं मारा जाऊँगा और सूर्य देव छेड़ने वालों को ही नहीं - सारी प्रजा को ही भस्म कर देंगे।

प्रजाजन क्या करते। चुप बैठने और प्रतीक्षा करने के सिवाय कोई रास्ता उनके पास नहीं था। पिंडारी अपने सैनिकों के साथ समस्त राज्य में शान से घूमा और सारी राज्य सम्पदा पर कब्जा कर लिया।

यह धन भी सरदार को कम प्रतीत हुआ। उसने राजा के दूतों द्वारा समस्त राज्य में राजाज्ञा कहकर घोषणा कराई कि जिसके पास जो सोना, चाँदी, कीमती वस्तुयें हैं वह राज्य के कोष में जमा करें। आनाकानी करने वालों को सूर्यदेव भस्म कर देंगे। भोली प्रजा के पास जो कुछ था राई-रत्ती भी स्पेनी सरदार के सामने लाकर रख दिया।

पिंडारी ने राजा के इच्छित धन मिल जाने पर उसे छोड़ देने का वचन दिया था पर जब उसे यह मालूम हुआ कि अभी उसके पास और भी छिपा हुआ धन है तो उसने उसकी भी माँग की। राजा ने आनाकानी की तो उसे फाँसी लगवा दी। और जो धन हाथ लगा उसे स्पेन ले आया।

छिपे धन को पिंडारी के साथियों ने ढूँढ़ निकाला और उसे कहीं अन्यत्र छिपा दिया। कहते हैं कि वह विपुल सम्पदा अभी भी कहीं जमीन में छिपी पड़ी है।

अन्ध-विश्वास फैलाकर राजा ने प्रजा का शोषण किया जरूर पर वही अन्ध-विश्वास उसके विनाश का कारण बना। भ्रम-जंजाल फैलाने वाले शिक्षा लें कि भ्रम में डालकर शोषण करने की दुधारी तलवार उलट कर अपने ही ऊपर पड़ती है।


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