ईश्वर पर विश्वास

January 1972

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महाराष्ट्र में अकाल की स्थिति। पानी के अभाव में मनुष्य और बेचैन होने लगे। कितने ही किसानों ने गाँव छोड़ दिये और अपने पशुओं को लेकर पानी और घास के लिए इधर-उधर निकल पड़े।

देश पर आई हुई इस आकस्मिक विपत्ति से सभी लोग अत्यन्त दुःखी और चिन्तित हो रहे थे, किस प्रकार इस विपत्ति से छुटकारा मिले देश भक्तों को यही चिन्ता थी, आखिर सबने मिलकर कोई कारगर युक्ति सोचने का निश्चय किया -

काफी सोच-विचार के बाद निश्चय हुआ कि यदि पूर्ण श्रद्धा, विश्वास और भक्तिपूर्वक सामूहिक रूप से उस परम पिता परमात्मा की प्रार्थना करें तो अवश्य इस प्रयत्न से सफलता मिल सकती है।

लोग एक स्थान पर प्रार्थना के लिए एकत्रित हुए। प्रार्थना प्रारम्भ हुई। उसी समय एक बालक जूता पहने और छाता लगाये हुए वहाँ पर आया। उसे छाता लगाये देख सभी लोग हँसने लगे।

किसी ने कहा ‘पानी कहाँ बरस रहा है, तू व्यर्थ में ही छाता लगाकर आया।

बालक ने कहा ‘जब आप सब लोग एकत्रित होकर वर्षा के लिए प्रार्थना करने आये हैं तो भला पानी क्यों न बरसेगा? और जब पानी बरसेगा तो यहाँ खड़े लोग भीग न जायेंगे।’ जब साधारण सा व्यक्ति माँगने पर कुछ न कुछ दे देता है फिर सर्वशक्ति सम्पन्न ईश्वर इतने व्यक्तियों की प्रार्थना को कैसे ठुकरा सकता है? सच्चे हृदय से की गई सामूहिक प्रार्थना कदापि व्यर्थ नहीं जा सकती, आप लोग विश्वास रक्खें, सर्वांतर्यामी वह परमपिता प्रार्थना पूर्ण होते ही अभिलाषित वर्षा अवश्य करेगा।

बालक को ईश्वर पर विश्वास था। भगवान ने उसी समय खूब जल बरसाया। बाकी सब लोग पानी में भीग गये और बालक खुशी-खुशी छाता लगाकर अपने घर चला गया।


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