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January 1972

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अपनी बुद्धि से मानसिक क्लेशों को और वनस्पति निर्मित दवाओं से शारीरिक दुःखों को दूर करो। मनुष्य के विज्ञान की यही सामर्थ्य है। इस राह को छोड़कर बालकों के से काम मत करो।

माँस का प्रभाव नपुँसकता सरीखी नई समस्याओं के रूप में सामने आता है। ऐसी अनेक घटनाओं के समाचार कनाडा के ‘वाटर नर किचनर’ तथा इंग्लैण्ड के ‘रायटर’ तथा ‘डेली एक्सप्रेस’ में विस्तार सहित छप चुके हैं।

यह थोड़े से विवरण उन अगणित चिन्ताजनक निष्कर्षों में से कुछ हैं जो आये दिन वर्तमान औषधि विद्या के फलस्वरूप बड़ी मात्रा में उपस्थित हो रहे हैं। आधुनिक औषधि विद्या के अनन्य भक्तों को इन दुष्परिणामों को भी ध्यान में रखना चाहिए और जहाँ तक सम्भव हो इन दवाओं से बचते हुए प्राकृतिक जीवनचर्या अपनाकर ही अपने को रोगमुक्त एवं स्वस्थ रखने का प्रयत्न करना चाहिए।


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