जीवात्मा में थोड़ा और ईश्वर में अनन्त गुण हैं

March 1971

Read Scan Version
<<   |   <   | |   >   |   >>

एक महात्मा के पास एक व्यक्ति ने आकर पूछा-’महात्मन् ! आप जीव और ईश्वर में एक ही चैतन्य का वास बताते हैं, परन्तु ईश्वर के समान जीव सर्वज्ञ क्यों नहीं होता ?’ महात्मा ने एक लोटा जल गंगाजी से लाने की आज्ञा दी। वह व्यक्ति एक लोटा जल लाया तो महात्मा बोले-’बच्चा ! गंगाजी जी में जहाज चलते हैं इसमें क्यों नहीं चलते ?’ वह बोला- गंगाजी में अथाह पानी है, लोटे में तो जहाज आवेगा ही नहीं।’ महात्मा ने समझाया-इसी प्रकार जीवात्मा में थोड़ा और ईश्वर में अनन्त गुण हैं।’


<<   |   <   | |   >   |   >>

Write Your Comments Here:


Page Titles