ज्ञान यज्ञ में कला भी सम्मिलित की जा रही है।

March 1971

Read Scan Version
<<   |   <   | |   >   |   >>

ज्ञान-यज्ञ के लिये अब तक लेखों के माध्यम से-साहित्य निर्माण और वाणी के माध्यम से विचार परिष्कार का कार्य किया जाता रहा है। उससे सफलता भी मिली है और वह क्रम आगे भी चलता रहेगा। लेखनी वाणी की ही तरह एक उपयोगी दिशा ‘कला’ की ओर भी है जिसे साधनों के अभाव में अब तक कार्यान्वित न किया जा सका। समय आ गया कि अब इस संदर्भ में अधिक ध्यान दिया जाने और अधिक साहस पूर्ण कदम उठाने के लिए अग्रसर हुआ जा रहा है।

अगले वर्ष - हमारे चले जाने के बाद - जन संपर्क और जन-जागृति का प्रयोजन पूरा करने के लिये - देश भर में गायत्री यज्ञों के साथ जुड़े हुए युग-निर्माण सम्मेलनों का सिलसिला एक सुव्यवस्थित योजना के अनुसार चलाया जायेगा। आशा की गई है कि इस गायत्री जयन्ती - जून 71 से अगली गायत्री जयन्ती जून 72 तक 240 ऐ आयोजन सम्पन्न होंगे। सजीव शाखाओं को इसके लिये प्रेरणा दी गई है और वे निर्णय एवं संकल्प के साथ 17 से 20 जून वाले विदाई सम्मेलन में अपने निर्णय की घोषणा करेंगी। भविष्य में गायत्री यज्ञ छोटे रहा करेंगे। 5 कुण्ड के या अधिक से अधिक 9 कुण्ड के। जिस विशेष प्रयोजन के लिये हमें देश भर में विशाल यज्ञ आयोजनों के लिये निर्देश मिला था वह पूरा हो चुका। 1000 कुण्ड वाले मथुरा के गायत्री महायज्ञ में इस संकल्पित धर्मानुष्ठान का आरम्भ हुआ था उसकी पूर्णाहुति 6 सहस्र कुण्डी गायत्री यज्ञों से कराके हम जा रहे है। गत 12 वर्षों में 24000 गायत्री यज्ञ सम्पन्न हो गये और विशाल युग निर्माण अभियान के शुभारम्भ श्रीगणेश में जितना धर्मानुष्ठान आवश्यक था वह पूरा कर दिया गया। भविष्य में मूल लक्ष्य पर भावनात्मक नव-निर्माण पर ही ध्यान केन्द्रित रखा जायेगा। गायत्री यज्ञ तो अपनी संस्कृति के प्रतीक का स्थान सुरक्षित रखने की दृष्टि से ही आयोजनों में सम्मिलित रखे जायेंगे। उन पर अधिक धन तथा समय खर्च नहीं किया जायेगा। इस दृष्टि से छोटे पाँच कुण्डी या नौ कुण्डी गायत्री यज्ञ तक ही भविष्य में सीमित रहने के निर्देश शाखाओं को जारी कर दिये गये हैं और कहा गया है कि युग-निर्माण सम्मेलनों को ही प्रमुखता दी जाये ताकि बौद्धिक क्रान्ति, नैतिक क्रान्ति और सामाजिक क्रान्ति की रहती आवश्यकता पूरी करने में अपनी सारी शक्ति नियोजित की जा सके।

अगले वर्ष देश भर में ऐसे 240 युग-निर्माण सम्मेलन छोटे गायत्री यज्ञों सहित-सम्पन्न होंगे। उनका संकल्प लेने वाली शाखाएं अपनी प्रतिज्ञा उस 45 कुण्डी यज्ञ पर बैठ कर लेंगी जो विदाई सम्मेलन के अवसर पर सम्पन्न होगा। 17 से 20 जून तक परिजनों का जो विदाई सम्मेलन बुलाया गया है उसमें भारी संख्या में परिजन स्वभावतः एकत्रित होंगे। उस अवसर पर कितनी ही अति महत्व की और अति आवश्यक बातें बतानी हैं और अन्तिम निर्देश देने है। हमारी ममता और परिजनों की श्रद्धा भी इसके लिये विवश करेगी और सम्मेलन बहुत बड़ा हो ही जायेगा। हम जिन्हें अन्तिम समय पर आँखें भरकर देख लेने के लिये लालायित है वे भला क्यों इस अन्तिम मिलन के लिये आतुर न होंगे। जून की गर्मी होते हुए भी सम्मेलन की विशालता असंदिग्ध है। उस अवसर पर बड़ा यज्ञ करने की बात सोची जा रही थी पर वह विचार इसलिये छोड़ दिया गया कि उस थोड़े से समय को परस्पर विचार विमर्श में ही खर्च किया जाना चाहिये। बड़े यज्ञ का काम इतना अधिक फैल जाता है कि उस पर से समय ही नहीं बचता। सो मात्र 45 कुण्ड का ही एक यज्ञ रखा गया है। 45 कुण्ड का इसलिये कि हमारे यज्ञीय जीवन की आयु 45 वर्ष है। 60 से 15 वर्ष तो ऐसे ही बचपन के चले गये। उनकी गिनती क्या की जाये। एक वर्ष को एक यज्ञ कुण्ड मानकर- इन वर्षों में हुए क्रिया-कलाप से प्रकाश और प्रेरणा लेने का प्रतीक यह 45 कुण्डी यज्ञ आयोजन रखा है। 9-9 कुण्डों की पाँच यज्ञ शालाएँ रहेंगी। इससे भविष्य में ऐसी यज्ञ शालाएँ बनाने और उनकी विधि व्यवस्था समझने की आवश्यकता भी इसी से पूरी हो जायेगी।

अगले वर्ष युग-निर्माण सम्मेलनों का संकल्प लेकर आने वाली शाखाओं के प्रतिनिधि ही इन यज्ञों पर बैठेंगे। पूर्णाहुति में झोला पुस्तकालय चलाने वाले और ज्ञान घट रखने वाले सक्रिय कार्यकर्ता भी सम्मिलित होते रहेंगे। आशा की गई है कि इस विदाई सम्मेलन में 240 सम्मेलनों के प्रतिज्ञा संकल्प हो जायेंगे और उनकी तारीख इसी समय नियत करदी जायेंगी। ताकि वे अपनी तैयारी में लौटते ही लग सकें। इन आयोजनों को जन समाज के लिये अधिक आकर्षक बनाने और अधिक जन-समूह एकत्रित करने के लिये संगीत एवं चित्र माध्यमों को प्रधानता दी जायेगी। इस प्रयोजन के लिये तीन माध्यम तैयार किये जा रहे है। 1. युगनिर्माण चित्रावली में प्रस्तुत 24+24=48 तथा अन्य 12 इस प्रकार 60 चित्रों की एक चित्र प्रदर्शनी हर सम्मेलन में लगाई जाया करेगी। 2. स्लाइड प्रोजेक्टरों द्वारा सिनेमा जैसे रंगीन चित्र दिखाते हुये उनकी व्याख्या लाउडस्पीकर से करते हुए मनोरंजन के साथ विचार परम्परा का प्रयोजन जोड़ा जायेगा। 3. संगीत की एक विशेष मंडली रहेगी जिसमें प्रमुख गायक खड़ा होकर धार्मिक एवं ऐतिहासिक कथानक गायन करेगा और उसके साथ-साथ अति मधुर 8-10 बाजों का साज बजता रहेगा। सामान्यतः यह कथानक गायन वाद्य दो घन्टे का होगा। प्रकाश चित्र-एक घण्टे के इस प्रकार रात्रि का तीन घण्टे का यह अति आकर्षक कार्यक्रम चला करेगा। प्रातः चित्र प्रदर्शिनी दर्शकों की ज्ञान वृद्धि किया करेगी। प्रातः 5 या 9 कुण्डी गायत्री यज्ञ उसी के साथ मुण्डन, जनेऊ आदि संस्कार, बुराइयाँ छोड़ने तथा अच्छाइयों के संकल्प किये जाते रहेंगे। जहाँ सम्भव होगा वहाँ बिना दहेज के आदर्श विवाह भी इसी अवसर पर सम्पन्न कराये जाया करेंगे। उपस्थित लोगों को अन्य रचनात्मक एवं संघर्षात्मक प्रवृत्तियाँ अपनाने की प्रेरणा इस अवसर पर नियोजित विचार गोष्ठियों तथा प्रवचनों द्वारा दी जाया करेगी। नवनिर्माण साहित्य के विक्रय और वितरण की व्यवस्था भी साथ साथ रहेगी। इस प्रकार यह सम्मेलन अपने आपमें एक अति महत्वपूर्ण प्रयोजन पूरा कर सकने वाले सिद्ध होते रहेंगे।

तैयारी यह की जा रही है कि 1. चित्र प्रदर्शनी, 2. प्रकाश चित्र यन्त्र, 3. संगीत मंडली लेकर एक बड़ी जीप सारी साधन सामग्री के साथ चले। यज्ञ के आवश्यक उपकरण भी। इस जीप का इंचार्ज तपोभूमि का प्रमुख कार्यकर्ता चला करे और एक यज्ञ से दूसरे यज्ञ की शृंखला पूरी करते हुए अपना कार्यक्रम नियोजित किया करे। यों एक ऐसी साधन सम्पन्न जीप की लागत बहुत पड़ेगी पर किसी प्रकार भगवान उसकी भी पूर्ति करेंगे। सोचा यह जा रहा है कि ऐसी चार जीपें उन 240 युगनिर्माण सम्मेलनों को बनाई जा सकेगी जो विदाई सम्मेलन के अवसर पर संकल्पित एवं नियोजित किये जायेंगे।

एक तीखी आवाज का-प्रभावशाली व्यक्तित्व का गायक-और 5-6 कलानेट पिस्टन, बन्शी, हारमोनियम, तबला, बेन्जों, घुंघरू जैसे वाद्य यन्त्र बजाने वाले कुल 7 व्यक्तियों की यह मंडली चला करेगी और यही प्रकाश चित्र, चित्र प्रदर्शिनी, यज्ञ आयोजन संस्कार, साहित्य विक्रय आदि का प्रयोजन पूरा कर लिया करेगी। देश भर में भ्रमण करती हुई यह जीप मंडली निश्चित रूप से जन जागृति का महान प्रयोजन पूरा करती रह सकेगी।

छह बाजा बजाने वाले प्रत्येक जीप पर रहने से चार जीपों पर 24 की आवश्यकता पड़ेगी। 4 गायक। 28-300 संगीत ज्ञाताओं की यह मंडली स्थायी रूप से रखी जायेगी और उन कार्यकर्त्ताओं को तपोभूमि स्तर का जीवन यापन करने तथा परिवार पालने की आवश्यक सुविधाएँ प्रदान की जायेंगी। इसे वेतन, पारिश्रमिक पुरस्कार आदि नहीं कहा जा सकता क्योंकि वह बाजारू दर से काफी कम होगा। इसलिये उसे निर्वाह ही कहना चाहिए। सेवा-भावना-त्याग वृत्ति-जिनमें नहीं है जो अपनी योग्यता का पूरा मूल्य माँगते हैं ऐसे लोग गली-गली भरे पड़े है। उन्हें कभी भी कहीं से भी कितनी ही बड़ी संख्या में नौकर रखा जा सकता है। पर ऐसे लोगों से काम क्या चलेगा ? उनका प्रभाव भी किस पर क्या पड़ेगा ? इसलिए तलाश उन्हीं की की जा रही है जो गीत वाद्य में रुचि एवं क्षमता रखने के साथ-साथ मिशन का स्वरूप समझ चुके हैं और जिनमें सेवा साधना की उत्कृष्ट भावना जाग चुकी हो। ऐसे व्यक्तियों का प्रशिक्षण तुरन्त किया जाना है ताकि अगले ही दिनों उनका उपयोग किया जा सके।

उपरोक्त प्रचार मंडली का अंग बन सकने और अपनी कण्ठ मधुरता एवं वाद्य योग्यता का लाभ समाज को देने की योग्यता तथा इच्छा जिनमें हो वे मथुरा से संपर्क करलें और पत्र व्यवहार करलें उनका प्रशिक्षण भी तो किया जाना है इसलिये यह संपर्क जल्दी ही किया जाना चाहिए।

अगले वर्ष छोटे गायत्री यज्ञों सहित युग-निर्माण सम्मेलन कर सकने का जिनमें उत्साह हो वे उसकी तैयारी के लिए क्या करना होगा इसकी विस्तृत जानकारी मिल कर या पत्र लिखकर मथुरा से प्राप्त कर सकते हैं।


<<   |   <   | |   >   |   >>

Write Your Comments Here:


Page Titles