भक्तराज जयदेव की धर्मपत्नी का राजभवन में बड़ा सम्मान था। एक बार उन्होंने रानी से कहा कि “पति के मरने पर उसकी देह के साथ सती होना निम्न श्रेणी का पतिव्रत धर्म है। सच्ची पतिव्रता तो वे है जो पति का मृत्यु संवाद मिलते ही प्राण त्याग देती हैं।”
रानी को इसमें शंका हुई। एक दिन राजा के साथ जयदेव भी आखेट स्थल पर गये थे। अवसर पाकर रानी ने उनकी पत्नी से कहा कि ‘पण्डित जी को वन में एक शेर खा गया।’ जयदेव की स्त्री श्रीकृष्ण श्रीकृष्ण कहती हुई धड़ाम से भूमिगत हो गई। उनके मरने का रानी को बड़ा दुःख हुआ। बहुत देर तक वे अपने झूठ बोलने पर पछताती रही।
राजा के साथ जयदेव लौटे तो उन्हें पूर्ण समाचार दिया गया। जयदेव ने कहा ‘रानी माँ से कहो कि वे घबराएं नहीं, मेरे मृत्यु संवाद से उनके प्राण गये हैं जो मेरे जीवित लौटने पर लौट भी आयेंगे।’ भक्तराज अपनी पत्नी की मृत देह के पास हरि कीर्तन में विह्वल हो गये एक क्षण उन्हें अपनी पत्नी की मृत्यु का भी ध्यान न रहा ? और तभी उनकी पत्नी की देह में चेतना लौट आई।