औषधि रुपये एक की, स्वस्थ रहे संसार
नानक ने सोचा कबीर की बुद्धि की परीक्षा करनी चाहिये। उन्होंने एक चवन्नी कबीर के पास भेजी और कहला भेजा कि इस चवन्नी की कोई ऐसी वस्तु लेनी चाहिये जिसे खाकर एक सौ व्यक्ति तृप्त हो जायें ?
कबीर ने चवन्नी ले ली, बाजार गये और चार आने की बढ़िया वाली हींग लाये। उसी दिन नगर के एक सेठ भोज कर रहे थे। चार आने की हींग कबीर लेकर सेठ के पास पहुँचे और उसकी छोंक लगवा दी। वह दाल जिस-जिसने खाई हींग की बघार ने सब को तृप्त किया। कबीर की हींग की सबने प्रशंसा की।
अब कबीर ने सोचा नानक की बुद्धि की परीक्षा लेनी चाहिये। उन्होंने एक रुपया नानक के पास भेजा और कहलवा भेजा एक रुपये की औषधि से सारे संसार के रोगियों को अच्छा कर दो। नानक ने गम्भीरता पूर्वक विचार किया सारे संसार में 3 अरब तो मनुष्य ही हैं उन्हीं को एक स्थान पर बुलाना कहाँ सम्भव है ? फिर भेड़, बकरी, चूहे, खरगोश, मछली, कछुए न जाने कितने जन्तु इस पृथ्वी पर हैं एक रुपये में सब की औषधि किस प्रकार हो ? उन्होंने एक रुपये की गुग्गल, छा छबीला, तालीस पत्र, कपूर कचरी, पृष्ठपर्णी आदि औषधियाँ मंगाई हवन करने लगे। औषधियाँ जल कर कर नष्ट नहीं हुई वायुभूत होकर सारे संसार में फैल गई। जलचर, थलचर, नभचर, सबने साँस ली औषधि सब के शरीर में पहुँची सबके शरीरों के कीटाणु नष्ट हो गये। सब स्वस्थ हो गये।
कबीर ने नानक की भूरि-भूरि प्रशंसा की तो नानक ने कहा- कबीर यह श्रेय तो उन ऋषियों का है जिन्होंने संसार के स्वास्थ्य के लिये यज्ञ जैसे महान् विज्ञान की शोध की थी।