भक्त नामदेव की पत्नी और भागवत नामक व्यक्ति की पत्नी परस्पर सहेलियाँ थीं। भागवत की स्त्री के पास एक पारसमणि थी, वह उसने नामदेव की स्त्री को देकर कहा- ‘ उससे तू अपने काम लायक लोहा सोना बनाले और फिर तुरन्त इसे मुझे लौटा दे। सावधान! किसी को यह बात मालूम न हो।’ नामदेव की पत्नी ने बहुत सा लोहा सोना बना लिया। घर आने पर नामदेव को यह बात मालूम हुई तो उसने पारस ले लिया और चन्द्रभागा में स्नान कर पारसमणि को उसमें डाल दिया।
मालूम होने पर नामदेव की पत्नी ने अपनी सहेली से सब बात कह दी। सहेली ने अपने पति भागवत से सब बात कही तो वह बड़ा कष्ट हुआ। उसने यह बात उड़ा दी कि नामदेव ने पारस मणि चुराली है और वह उसे माँगने के लिए घाट पर गया। देखते-देखते वहाँ भीड़ लग गई। नामदेव ने कहा-’मणि चन्द्र भागा को अर्पण करदी। नहीं मानते तो निकाल कर दिखा दूँ।’ लोग बोले-नदी से मणि निकाल लाना सम्भव नहीं।’ नामदेव ने डुबकी लगाई और कुछ कंकड़ लाकर सामने रख दिये। बोले-’लो, एक बदले पारस मणि।’ व्यंग्य करते हुए भागवत ने उन कंकड़ों से लोहा लगाया तो तुरंत सोना बन गया। लोग नामदेव की जय जयकार कर उठे।