मनुष्य अपनी छाया को देखकर उसे पकड़ने दौड़ा छाया भी उतने वेग से भागी मनुष्य उसे पकड़ न सका।
आकाश से आवाज आई। मूर्ख ! माया आज तक किसी ने पकड़ पाई है ? तू इस भ्रम के पीछे मत दौड़, प्रकाश की और जीवात्मा का कल्याण कर।
मनुष्य लौट पड़ा प्रकाश की ओर, प्रकाशपुंज ज्यों-ज्यों पास आता गया छाया पुरुष के पीछे-पीछे भागती आई और प्रकाश की प्राप्ति के साथ वह भी मनुष्य में समा गई।