व्हाइट हाउस में मरणोत्तर जीवन

March 1971

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टेलीविजन सेट आन (चालू) हुआ और राष्ट्रपति ट्रूमैन अपनी पुत्री मार्गरेट से बातचीत करने लगे- अनुमान से सर्वथा भिन्न का संदर्भ- ट्रूमैन कहने लगे- एक दिन रात के लगभग तीन बज रहे थे जिस कमरे में हम सो रहे थे किसी ने दस्तक दी। बिस्तर से उठकर द्वार खोले तो दृश्य दिखाई दिया उससे तो मैं विस्मित और अवाक् ही रह गया। मैंने देखा- भूतपूर्व राष्ट्रपति लिंकन का भूत सामने टहल रहा है। आगे बढ़ने का साहस नहीं हुआ द्वार बन्द किये और बिस्तर पर आ लेटा।”

घटना उनके राष्ट्रपति काल की ही है और है भी व्हाइट हाउस की ही। प्रायः सभी अमरीकी राष्ट्रपति अपनी संवेदन शीलता, परिश्रम शीलता, साहस और उद्यमशीलता के लिये सदैव सारे संसार के आकर्षण बिन्दु रहे है हजारों लोगों ने उससे अपनी-अपनी तरह की प्रेरणायें ग्रहण की हैं पर बहुत कम लोग होगे जो 18 एकड़ में बने इस भव्य प्रसाद, “व्हाइट हाउस“ जिसमें अमरीका का हर राष्ट्रपति निवास करता है, के सम्बन्ध में कुछ ऐसे कथ्य व तथ्यों से परिचित होगे जो मनुष्य की चिन्तन की दिशाओं को बलात् एक अन्तरंग मरणोत्तर जीवन की ओर खींच ले जाते हैं। यह भी विलक्षण बात है कि सारे अमरीका में व्हाइट हाउस को मरणोत्तर अस्तित्व का प्रमाण माना जाता है जबकि वहाँ की सभ्यता से प्रभावित अन्य देशों में लोगों का विश्वास है कि मृत्यु के पश्चात् जीवन का कुछ अस्तित्व शेष नहीं रहता है।

मन में दुर्बलता न आये, भय पैदा न हो इस दृष्टि से भूत-प्रेत का चिन्तन न करें यह किसी हद तक ठीक भी है किन्तु अधिकतम सौ वर्ष के जीवन के भौतिक सुख भौतिक चिन्तन में पड़कर करोड़ों अरबों वर्षों से भी अधिक शाश्वत एवं अनन्त अन्त जीवन की अपेक्षा आत्मा के लिये कभी भी हितकारी नहीं कही जा सकती ? भूत है तो क्यों है ? उसका स्वरूप क्या है ? यदि व्हाइट हाउस के ऐसे प्रभावशील और विशिष्ट व्यक्ति मानते हैं कि मृत्यु के बाद भी जीवन का अस्तित्व बना रहता है तो यह जानना ही चाहिये कि वह क्यों बना रहता है और क्या उस स्थिति में भी आत्मा सुख-शाँति की अनुभूति कर पाती होगी जो मनुष्य जीवन का यथार्थ लक्ष्य है।

व्हाइट हाउस की यह घटनायें दिलचस्प ही नहीं गम्भीर भी है एक बार हालैंण्ड की महारानी विल्हेल्मिना ने अमेरिका का भ्रमण किया तब वे विशिष्ट सम्मानित अतिथि के रूप में व्हाइट हाउस में ही ठहराई गई। एक दिन उनके कमरे के दरवाजे को किसी ने खटखटाया। उन्होंने दरवाजे को खोला तो देखा सामने काली छाया के समान अब्राहम लिंकन का भूत खड़ा है अब्राहम लिंकन की हत्या की गई थी। वे महान् व्यक्ति थे जब वे राष्ट्रपति थे तब भी विलास और ऐश्वर्य की उन्हें कोई कमी क्यों रही होगी। फिर उनका भूत क्यों ? भारतीय दर्शन के अनुसार उनमें आसक्ति का भाव रहा होगा उसी से उनकी आत्मा व्हाइट हाउस को छोड़ना नहीं चाहती होगी। ठीक इसी समय भौतिक विज्ञान की इस मान्यता का भी खण्डन हो जाता है कि जीवन की चेतना रासायनिक है यदि जीवन विद्युत, चुम्बक आदि के समान कोई स्थूल और रासायनिक चेतना होती है तो लिंकन की मृत्यु के बाद उनका अस्तित्व क्यों बना रहता ?

श्रीमती विंल्हेल्मिना ने उस समय के राष्ट्रपति रुजवेल्ट से उस घटना का जिक्र किया तो वे बोले- मैडम ! हम तो लिंकन के कारण पहले ही परेशान रहे है अब जो मेरी पत्नी का अध्ययन कक्ष है वह पहले सोने का कमरा था पर लिंकन का भूत उसी कमरे में हमेशा आता रहता, इसी कारण अपनी पत्नी को इच्छानुसार उसे बदलना पड़ा। कुमारी मेरी नामक मेरी सेक्रेटरी ने लिंकन को कई बार कई मुद्राओं में देखा हम कह नहीं सकते यह सब क्या है। इन भूतपूर्व राष्ट्रपतियों को मृत्यु के बाद भी व्हाइट हाउस से क्यों लगाव बना रहा है।

राष्ट्रपति क्वीवलैण्ड की पत्नी ने राष्ट्रपति भवन में एक बच्चे को जन्म दिया था। बच्चा कुछ ही दिन में चल बसा। उस बच्चे से सम्भवतः उनका मोह मृत्यु के बाद भी नहीं छूटा था इसी कारण उनकी आत्मा भी व्हाइट हाउस में लिंकन की तरह ही भटकती है। उनकी विचित्र प्रकार चीख कई बार सुनी गई। राष्ट्रपति बिल्सन की पत्नी ......... में एक बार ऐसा हुआ कि गुलाब के बगीचे का स्थान बदल दिया जाये तो उससे राष्ट्रपति भवन की सुन्दरता ओर भी बढ़ जायेगी। एतदर्थ उन्होंने माली को बुलाकर कहा इस बगीचे का स्थान बदल दो। गुलाब का यह बाग राष्ट्रपति मैडीसन की धर्मपत्नी ने लगवाया था। व्हाइट हाउस में किसी परिवर्तन या नई व्यवस्था का अधिकार राष्ट्रपति की पत्नी को ही होता है। जब माली बगीचे के पास आया तो वह वहाँ खड़े हुए श्रीमती मैडीसन के भूत को देखकर घबरा उठा। लौटकर उसने सारी बात श्रीमती विल्सन से कही। विल्सन भूत-प्रेतों पर विश्वास नहीं करती थीं पर उन्होंने स्वीकार किया जब मैं बगीचे के पास स्वयं गई तो श्री मैडीसन का भूत वहाँ था, मुझे ऐसा लगा कि वह कह रही हैं कि यदि बगीचा बदला तो भला न होगा डरकर श्रीमती विल्सन ने अपनी सारी योजना रद्द कर दी।

क्या यह घटनायें हमें यह सोचने को विवश नहीं करती कि इस वर्तमान जीवन की तमाम उपलब्धियाँ भी आत्मिक सुख, शाँति और स्वर्ग की आकाँक्षा को परिपूर्ण नहीं कर सकती वरन् उनसे आसक्ति बढ़ने का एक गम्भीर संकट तब तक बना रहता है जब तक हम स्वयं ही आत्म-कल्याण की परिस्थितियों का अन्वेषण और प्राप्ति के प्रयत्न न करें। यदि उसे ही है तो हमें आत्म-कल्याण के साधनों का अध्ययन गम्भीरतापूर्वक करना होगा जो बड़े वैज्ञानिक ढंग से भारतीय दर्शन में समझाई गई हैं।

लिंकन का भूत तो अमेरिका के राष्ट्रपति भवन का विशिष्ट अपवाद है अन्यथा वहाँ के भी लोग यह मानते हैं कि कुछ एक राष्ट्रपतियों को छोड़कर प्रायः सभी की रूहें अब भी वहाँ विद्यमान हैं और यही कारण है कि जब भी कोई नया राष्ट्रपति चुनकर आता है और परम्परा के अनुसार वर्तमान राष्ट्रपति की पत्नी उसकी पत्नी को राष्ट्रपति भवन (व्हाइट हाउस) का परिचय कराती हैं तब वह भूतों के अस्तित्व और स्थानों की भी पूरी जानकारी अवश्य दे देती है।

फिर भी ऐसी घटनायें वहाँ आये दिन होती रहती है। राष्ट्रपति एडम्स की पत्नी को वहाँ कपड़े सुखाते देख गया, लिंकन को जूतों के फीते खोलते देखा गया। क्वीवलैण्ड की श्रीमती को हँसते और चिल्लाते सुना गया। इस अतीन्द्रिय अस्तित्व और अनुभूति का कारण क्या हो सकता है यह शोध व अध्ययन का लम्बा विषय है पर इस बात से इनकार नहीं किया जा सकता है कि मनुष्य का मृत्यु के बाद भी अस्तित्व बना रहता है। भारतीय दर्शन की इस मान्यता को निराधार कहने वालों को पहले अमरीकी राष्ट्रपतियों, उनकी पत्नियों और सहकर्मियों को अनुत्तरदायी और झूठा कहना होगा पर यदि उनकी विशिष्टता पर विश्वास हो तो हमें भारतीय दर्शन के इन आधारभूत तथ्यों पर भी विश्वास करना और अपने जीवन को आध्यात्मिक पद्धति से ढालने का अभ्यास करना होगा।


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