लघुत्तम में महत्तम

March 1971

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बड़े बनने की महत्वाकाँक्षा में मनुष्य इस तरह उलझ जाता है कि वह छोटी के मूल्य और उनकी महत्ता को समझ ही नहीं पाता। वह उनकी अपेक्षा करता है फलतः मनुष्य को छोटा बनना चाहिए, लघुता में प्रभुता अब मात्र साहित्यिक या भावनात्मक उक्ति नहीं रही वह एक वैज्ञानिक सत्य भी सिद्ध हो चुकी है।

लघुता की गतिशीलता विराट् की गति से की जा सकती है। हीरा आदि ठोस पदार्थ दिखाई देते हैं, स्थूल होते हैं उनके अणुओं (मालेक्यूल्स) की गति प्रति घण्टा 960 मील होती है। तरल पदार्थों से थोड़ा और दुगना हो जाता है दि मैकेनिज्म आफ नेचर (एन्ड्राड लिखित) में लिखा है-1 ओंस पानी में इतने परमाणु होते हैं कि उन्हें संसार के सभी स्त्री, पुरुष व बच्चे उन्हें गिनें तो गणना 40 वर्ष में पूरी होती है पर उस तरल को जब और सूक्ष्म छोटे-छोटे टुकड़े में -गैस रूप में कर दिया जाता है तो अणुओं की संख्या और गतिशीलता लक्ष-लक्ष गुना अधिक हो जाती है गैस के अणुओं के बीच की दूरी एक इंच के तीस लाखवें हिस्से से भी कम होती है फिर भी वह एक सेकेण्ड में 6 अरब बार परस्पर टकराते हैं। ठोस देखने में बड़ा लगता है पर उसकी गति स्थूल होती है। गैसें कई तो दिखाई भी नहीं देती पर इतनी क्रियाशील होती हैं कि उनके माध्यम से उनकी गतिशीलता के आधार पर लाखों मील दूर की बात को एक सेकेण्ड में जान लिया जाये आगे इसी विज्ञान के विकास द्वारा लाखों वर्ष पूर्व की घटनाओं का चित्रण चलचित्र की भाँति सम्भव हो जाये तो कुछ असंभव नहीं इसी को कहते हैं लघुता की महत्ता। प्रकाश का अणु आज तक पकड़ में नहीं पर वह सारे संसार को प्रकाश, गर्मी देता है उसकी पहुँच इतनी विकट है कि वह एक सेकेण्ड में 186000 मील पहुँच जाता है। मनुष्य का उतावला मन यदि स्थूल से सूक्ष्म तथा उसे छोटा बनाया जा सके, बड़े होने के अहंकार से बचाकर उसे छोटे बनाया जा सके तो उसमें एक सेकेण्ड के भी लाखवें हिस्से में सारे ब्रह्मांड का भ्रमण कर आने की क्षमता, सक्रियता विद्यमान प्रत्यक्ष देखी जा सकती है। सूक्ष्म बनाया हुआ मन ही त्रिकालदर्शी होता है। उल्लेखनीय है कि भारतीय दर्शन ने मन, आत्मा और परमात्मा को तत्व ही माना हैं।

छोटा बनने से वजन कम नहीं हो जाता। भारतीय दर्शन की मान्यता यह है कि परमाणु आकाश में अपने सदृश परमाणुओं के साथ घनीभूत हो जाता है तो उसकी शक्ति का पारावार नहीं रहता। विज्ञान अभी उस स्थिति तक पहुँचा नहीं जिस दिन वह इस स्थिति में पहुँचेगा पायेगा कि कोई एक अत्यन्त सूक्ष्म किन्तु अत्यन्त घनीभूत सत्ता विश्व में विद्यमान है उसकी महत्ता उसके वजन का पारावार नहीं मानवीय चेतना उस सूक्ष्म चेतना से मिलकर ही अपनी अणिमा को गरिमायुक्त बनाती है। एक स्क्वायर इंच टुकड़े लकड़ी का वजन 1 छटाँक से अधिक होगा। प्लैटिनम लोहे से भी अधिक वजनदार होता है क्योंकि उसके परमाणुओं में सघनता होती है। “ आर्म चेयर साइन्स “ लन्दन से निकलने वाले 1937 के पत्र में बताया गया कि- आकाश के कुछ सितारों के द्रव्य 1 क्यूबिक इंच के हो तो भी उनका वजन 27 मन होगा, एक तारे के इतने ही द्रव्य का वजन 16740 मन पाया गया। ज्येष्ठ तारे के बारे में कहा जाता है कि उसका नग अँगूठी में लगा दिया जाये तो उस अँगूठी का वजन 8 मन होगा।

छोटा बनने में व्यक्ति की सक्रियता बढ़ती है उसका वजन बढ़ता है। मनुष्य छोटे से छोटा हो जाये तो उसे जीतना, उठा सकना कठिन हो जाये वह अपने आपको सारे संसार से बड़ा, वजनदार और विश्वव्यापी बना सकता है।


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