जाने वाले से माँग चुके अनुदान बहुत।
अब तुम भी तो प्रतिदानों की कुछ बात करो॥
तुम दुःखी हुए- दृग-नीर बहाया है उसने,
भीषण संकट से सदा बचाया है उसने,
जब-जब उदभ्रान्त हुए- समझाया है उसने,
उत्कृष्ट प्रगति का मार्ग बताया है उसने।
पर आज कह रहा है वह ‘मेरे साथ चलो’।
तो, मोह त्याग- बलिदानों की कुछ बात करो॥
द्रव्यार्जन किया बहुत- खुद से छल किया करे,
तृष्णा से क्षुधा मिटाई- दृग-जल पिया करे,
चाँदी के तारों से आत्मा को सिया करे,
जैसे पशु जीते हैं- तुम भी तो जिया करे।
वह सिखा रहा तुमको- ‘मानव बनकर जी लो’।
तो तुम भी नव सोपानों की कुछ बात करो॥
तुम अन्धकार में थे- वह ज्योति जला लाया,
देवत्व सिखाया- मार्ग मुक्ति का बतलाया,
हर दुखती रग को बड़े प्यार से सहलाया,
अपना अमूल्य तप भी तुम पर है बरसाया।
मैं कहती हूँ- ‘इतने कृतघ्न मत बनो सखे!’
उसके अमूल्य अहसानों की कुछ बात करो॥
यह विश्व आज दिग्भ्रान्त हुआ है दिशा भूल,
जन-जन के उर में चुभा हुआ अज्ञान शूल,
जीवन कानन रस-हीन हुआ- उड़ रही धूल,
वह कहता तुमसे ‘सखे! खिलादो वहाँ फूल’।
जिस स्वर को सुनकर रोता हृदय विहँस जाये।
बस, ऐसे ही रस-मय गानों की बात करो॥
तुमने सीखा है केवल लेना-ही-लेना,
मैं कहती हूँ- ‘बेहद सन्तोषजनक- ‘देना’,
मन की संतृप्ति मिटाते दो मीठे बयना,
उल्लासपूर्ण- भंवरों में नैया को खेना।
जिनकी न पूर्ण हो सकी साधना-उनके हित।
अपने सञ्चित वरदानों की कुछ बात करो॥
-माया वर्मा
-माया वर्मा
*समाप्त*