गुरु-भक्ति-
स्वामी दयानन्द ने अपने गुरु विरजानन्दजी की कुटिया में प्रतिदिन की भाँति झाड़ू लगाई और कूड़ा दरवाजे के निकट लगाकर किसी दूसरे काम में लग गये।
गुरु विरजानन्द प्रज्ञाचक्षु थे। उनके पाँव कूड़े से लगे। बस, वे उबल पड़े और दयानन्द को दो-चार थप्पड़ मार दिये। जब गुरु का क्रोध शान्त हुआ, तो दयानन्द गुरु के पाँव पकड़ कर बोले- “गुरुदेव आप बहुत कमजोर हैं। मुझे आप डण्डे से पीटिये, क्योंकि मैं तो मोटा-ताजा हूँ। आपके हाथों को कष्ट होता रहा होगा।”
अपने दोष स्वीकारने और उनका प्रायश्चित्त करने की दयानन्द की इस निश्छलता पर गुरु विरजानन्द की आँखों में आँसू आ गये।