साँसारिकता और वास्तविकता-
नट खेल दिखाकर लौटा तो पीछे-पीछे एक साधु भी अपने शिष्य के साथ चल पड़े। मार्ग में नदी पड़ी। नट किनारे बैठकर नाव वाले को पुकारने लगा। सन्त ने पूछा- “क्यों भाई! तुम तो ऐसे-ऐसे करतब दिखा रहे थे- यह छोटी सी नदी भी पार नहीं कर सकते?”
नट ने कहा- “भगवन्! नट-कला और बात है, नदी पार करना और। इन दोनों में कोई संगति नहीं।”
साधु ने अपने शिष्य की ओर संकेत करके कहा- ‘तात! ऐसे ही आध्यात्मिक उन्नति के लिये साँसारिक दृष्टि से चतुर होना ही पर्याप्त नहीं, उसके लिये तो साधन ही काम आते हैं।”