समर्थ गुरु की सहनशीलता-
समर्थ गुरु रामदास को सुविधापूर्वक जितनी भिक्षा मिल जाती, उतने में ही काम चला लेते थे। एक दिन प्रातःकाल उन्होंने भिक्षा के लिये एक घर का द्वार खटखटाया तो उन्होंने देखा कि गृहस्वामिनी किसी कारणवश आग-बबूला हो रही हैं और अनाप-शनाप बक रही हैं। उस समय वह अपना चौका पोत रही थी। उसने समर्थ गुरु की आवाज सुनी, तो उसे और गुस्सा आ गया कि सुबह-सुबह कौन भिखारी आ गया। वह उठी, दरवाजा खोला और चौका लगाने का वह पोतना उनके मुँह पर दे मारा।
समर्थ गुरु तनिक भी रुष्ट न हुए। उन्होंने उस चौका लगाने वाले गन्दे कपड़े को अपने कमण्डल में रख लिया और नदी पर स्नान के लिये चले गये, वहाँ उन्होंने उस कपड़े को खूब धोया। अब वह साफ दिखाई देने लगा था। धूप में सुखा लिया, फिर स्नान करके अपनी कुटिया पर लौट आये।
शाम को भगवान की आरती के लिये उसी पोतने की बत्तियाँ बनाई। आरती करते समय भगवान से प्रार्थना की कि जिस प्रकार यह बत्ती प्रकाश दे रही है, उसी प्रकार उस महिला का हृदय भी प्रकाशवान हो।